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'''मेहदी हसन''' (जन्म: [[18 जुलाई]] [[1927]] [[राजस्थान]]; मृत्यु: [[13 जून]] [[2012]] [[कराची]] ([[पाकिस्तान]] | '''मेहदी हसन''' (जन्म: [[18 जुलाई]] [[1927]] [[राजस्थान]]; मृत्यु: [[13 जून]] [[2012]] [[कराची]] ([[पाकिस्तान]]) एक प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक थे। इन्हें 'ग़ज़ल का राजा' माना जाता है। इन्हें ख़ाँ साहब के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो ग़ज़ल के इस सरताज पर पाकिस्तान फ़ख़्र करता था मगर [[भारत]] में भी उनके मुरीद कुछ कम न थे। इसकी वजह ये थी कि मेंहदी हसन मूलत: [[राजस्थान]] के थे। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
ग़ज़ल सम्राट मेहदी हसन का जन्म 18 जुलाई 1927 को [[राजस्थान]] के झुंझुनू के लूणा गाँव में हुआ था। मेहदी हसन को संगीत विरासत में मिला। हसन मशहूर कलावंत संगीत घराने के थे। इन्हें संगीत की तालीम अपने वालिद उस्ताद अज़ीम ख़ाँ और चाचा उस्ताद इस्माइल ख़ाँ से मिली। [[भारत]]-[[पाकिस्तान|पाक]] के बँटवारे के बाद मेहदी हसन का परिवार पाकिस्तान चला गया था। मेहदी हसन के दो विवाह हुए थे। इनके नौ बेटे और पाँच बेटियाँ हैं। उनके छह बेटे ग़ज़ल गायकी और संगीत क्षेत्र से जुड़े हैं। | ग़ज़ल सम्राट मेहदी हसन का जन्म 18 जुलाई 1927 को [[राजस्थान]] के झुंझुनू के लूणा गाँव में हुआ था। मेहदी हसन को संगीत विरासत में मिला। हसन मशहूर कलावंत संगीत घराने के थे। इन्हें संगीत की तालीम अपने वालिद उस्ताद अज़ीम ख़ाँ और चाचा उस्ताद इस्माइल ख़ाँ से मिली। इन दोनों की छत्रछाया में हसन ने संगीत की शिक्षा दीक्षा ली। मेंहदी हसन ने बहुत छोटी उम्र में ही ध्रुपद गाना शुर कर दिया था। ग़ज़ल की दुनिया में योगदान के लिए उन्हें शहंशाहे ग़ज़ल की उपाधि से नवाजा गया था। [[भारत]]-[[पाकिस्तान|पाक]] के बँटवारे के बाद मेहदी हसन का परिवार पाकिस्तान चला गया था। मेहदी हसन के दो विवाह हुए थे। इनके नौ बेटे और पाँच बेटियाँ हैं। उनके छह बेटे ग़ज़ल गायकी और संगीत क्षेत्र से जुड़े हैं। | ||
====गायकी की शुरुआत==== | ====गायकी की शुरुआत==== | ||
ख़ाँ साहब को सन 1935 में जब उनकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी फ़ज़िल्का के एक समारोह में पहली बार गाने का अवसर मिला था। इस समारोह में इन्होंने [[ध्रुपद]] और [[ख़याल]] की गायकी की। | ख़ाँ साहब को सन 1935 में जब उनकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी फ़ज़िल्का के एक समारोह में पहली बार गाने का अवसर मिला था। इस समारोह में इन्होंने [[ध्रुपद]] और [[ख़याल]] की गायकी की। | ||
==कार्यक्षेत्र== | ==कार्यक्षेत्र== | ||
जीवन चलाने के लिए उन्होंने पहले एक साइकिल की दुकान में काम किया और बाद में बतौर कार मैकेनिक का काम किया। परंतु इन दिक्कतों के बावजूद ख़ाँ साहब का ग़ज़ल गायकी के प्रति लगाव कम नहीं हुआ। ख़ाँ साहब दिनभर की मेहनत के बाद रोजाना ग़ज़ल का अभ्यास करते थे। मेहदी हसन को [[1957]] में एक गायक के रूप में पहली बार रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक की पहचान मिली। यहीं से उनकी क़ामयाबी का सफ़र शुरू हुआ। उनके ग़ज़ल कार्यक्रम दुनियाभर में आयोजित होने लगे। सन [[1980]] के बाद उनके बीमार होने से उनका गायन कम हो गया। मेहदी हसन ने क़रीब 54,000 ग़ज़लें, गीत और ठुमरी गाईं। इन्होंने [[ग़ालिब]], फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अहमद फ़राज़, [[मीर तक़ी मीर]] और [[बहादुर शाह ज़फ़र]] जैसे शायरों की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी। | जीवन चलाने के लिए उन्होंने पहले एक साइकिल की दुकान में काम किया और बाद में बतौर कार मैकेनिक का काम किया। परंतु इन दिक्कतों के बावजूद ख़ाँ साहब का ग़ज़ल गायकी के प्रति लगाव कम नहीं हुआ। ख़ाँ साहब दिनभर की मेहनत के बाद रोजाना ग़ज़ल का अभ्यास करते थे। मेहदी हसन को [[1957]] में एक गायक के रूप में पहली बार रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक की पहचान मिली। यहीं से उनकी क़ामयाबी का सफ़र शुरू हुआ। इस ग़ज़ल को मेहंदी हसन ने शास्त्रीय पुट देकर गाया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनके ग़ज़ल कार्यक्रम दुनियाभर में आयोजित होने लगे। 1980 के दशक में तबीयत की खराबी के चलते ख़ान साहब ने पार्श्वगायकी छोड़ दी और काफ़ी समय तक संगीत से दूरी बनाए रखी। [[अक्टूबर]], [[2012]] में एचएमवी कंपनी ने उनका एल्बम 'सरहदें' रिलीज किया जिसमें उन्होंने पहली और आखिरी बार [[लता मंगेशकर]] के साथ डूएट गीत भी गाया।<ref>{{cite web |url=http://www.amarujala.com/international/Pakistan/Int/Ghazal-king-Mehdi-Hassan-passes-away-in-a-Karachi-hospital-12308-3.html |title=गजल गायकी के बेताज बादशाह मेहदी हसन नहीं रहे |accessmonthday=14 जून |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=अमर उजाला |language=हिन्दी }} </ref> | ||
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==मशहूर ग़ज़लें== | ==मशहूर ग़ज़लें== | ||
* ज़िंदगी में तो सभी प्यार करते हैं... | * ज़िंदगी में तो सभी प्यार करते हैं... | ||
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* न किसी की आंख का नूर | * न किसी की आंख का नूर | ||
* शिकवा ना कर, गिला ना कर | * शिकवा ना कर, गिला ना कर | ||
* गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले | * गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले | ||
==सम्मान और पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
मेहदी हसन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जनरल अयूब ख़ाँ ने उन्हें तमगा-ए-इम्तियाज़, जनरल ज़िया उल हक़ ने प्राइड ऑफ़ परफ़ॉर्मेंस और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा भारत ने 1979 में सहगल अवॉर्ड से सम्मनित किया। | मेहदी हसन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जनरल अयूब ख़ाँ ने उन्हें तमगा-ए-इम्तियाज़, जनरल ज़िया उल हक़ ने प्राइड ऑफ़ परफ़ॉर्मेंस और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा भारत ने 1979 में सहगल अवॉर्ड से सम्मनित किया। | ||
==अंतिम समय== | ==अंतिम समय== | ||
मेहदी हसन का आख़िरी समय | मेहदी हसन का आख़िरी समय काफ़ी तकलीफ़ में गुजरा। 12 सालों से लगातार बीमारी से जूझ रहे थे और उनका काफ़ी वक्त अस्पताल में गुज़रता था। मेहदी हसन का निधन [[कराची]] में सन 13 जून 2012 को फेंफड़ों में संक्रमण के कारण हो गया। | ||
<blockquote>मशहूर लेखक जावेद अख्तर ने मेहदी हसन के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उनके जाने के साथ ही ग़ज़ल गायकी का एक दौर खत्म हो गया। ग़ज़ल तो पहले भी गाई जाती थी लेकिन मेहदी हसन ने ग़ज़ल गायकी को एक नया अंदाज दिया था। मेहदी हसन ने गायकी का अपना ही एक रंग पैदा किया था। जावेद अख्तर ने कहा कि उनकी गजलें, खास तौर से ‘रंजिश ही सही…’ 70 के दशक में भारत में खासी लोकप्रिय हुईं। [[उर्दू]] को न जानने वाले भी ये ग़ज़लें सुनकर खो जाया करते थे।</blockquote> | |||
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==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://www.youtube.com/watch?v=cgKDqh2ccuU रंजिश ही सही.. (यू-ट्यूब वीडियो)] | *[http://www.youtube.com/watch?v=cgKDqh2ccuU रंजिश ही सही.. (यू-ट्यूब वीडियो)] | ||
*[http://www.youtube.com/watch?v=4C03gLRHn6s गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले (यू-ट्यूब वीडियो)] | |||
*[http://www.youtube.com/watch?v=CwpAPtNzGyA मोहब्बत करने वाले (यू-ट्यूब वीडियो)] | |||
*[http://www.youtube.com/watch?v=8mD8y0k-rkU ज़िन्दगी में सभी प्यार करते हैं (यू-ट्यूब वीडियो)] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ग़ज़ल गायक}} | {{ग़ज़ल गायक}} |
12:27, 14 जून 2012 का अवतरण
मेहदी हसन
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पूरा नाम | मेहदी हसन ख़ान |
प्रसिद्ध नाम | मेहदी हसन |
अन्य नाम | ख़ान साहब |
जन्म | 18 जुलाई 1927 |
जन्म भूमि | झुंझुनू, राजस्थान |
मृत्यु | 13 जून 2012 |
मृत्यु स्थान | कराची, पाकिस्तान |
संतान | नौ बेटे और पाँच बेटियाँ |
कर्म भूमि | ब्रिटिश भारत और पाकिस्तान |
कर्म-क्षेत्र | संगीत |
मुख्य रचनाएँ | रंजिश ही सही.., ज़िंदगी में तो सभी प्यार करते हैं..., गुलों में रंग भरे आदि |
पुरस्कार-उपाधि | तमगा-ए-इम्तियाज़, हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार, सहगल अवॉर्ड |
नागरिकता | पाकिस्तान |
अद्यतन | 17:43, 14 जून 2012 (IST)
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मेहदी हसन (जन्म: 18 जुलाई 1927 राजस्थान; मृत्यु: 13 जून 2012 कराची (पाकिस्तान) एक प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक थे। इन्हें 'ग़ज़ल का राजा' माना जाता है। इन्हें ख़ाँ साहब के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो ग़ज़ल के इस सरताज पर पाकिस्तान फ़ख़्र करता था मगर भारत में भी उनके मुरीद कुछ कम न थे। इसकी वजह ये थी कि मेंहदी हसन मूलत: राजस्थान के थे।
जीवन परिचय
ग़ज़ल सम्राट मेहदी हसन का जन्म 18 जुलाई 1927 को राजस्थान के झुंझुनू के लूणा गाँव में हुआ था। मेहदी हसन को संगीत विरासत में मिला। हसन मशहूर कलावंत संगीत घराने के थे। इन्हें संगीत की तालीम अपने वालिद उस्ताद अज़ीम ख़ाँ और चाचा उस्ताद इस्माइल ख़ाँ से मिली। इन दोनों की छत्रछाया में हसन ने संगीत की शिक्षा दीक्षा ली। मेंहदी हसन ने बहुत छोटी उम्र में ही ध्रुपद गाना शुर कर दिया था। ग़ज़ल की दुनिया में योगदान के लिए उन्हें शहंशाहे ग़ज़ल की उपाधि से नवाजा गया था। भारत-पाक के बँटवारे के बाद मेहदी हसन का परिवार पाकिस्तान चला गया था। मेहदी हसन के दो विवाह हुए थे। इनके नौ बेटे और पाँच बेटियाँ हैं। उनके छह बेटे ग़ज़ल गायकी और संगीत क्षेत्र से जुड़े हैं।
गायकी की शुरुआत
ख़ाँ साहब को सन 1935 में जब उनकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी फ़ज़िल्का के एक समारोह में पहली बार गाने का अवसर मिला था। इस समारोह में इन्होंने ध्रुपद और ख़याल की गायकी की।
कार्यक्षेत्र
जीवन चलाने के लिए उन्होंने पहले एक साइकिल की दुकान में काम किया और बाद में बतौर कार मैकेनिक का काम किया। परंतु इन दिक्कतों के बावजूद ख़ाँ साहब का ग़ज़ल गायकी के प्रति लगाव कम नहीं हुआ। ख़ाँ साहब दिनभर की मेहनत के बाद रोजाना ग़ज़ल का अभ्यास करते थे। मेहदी हसन को 1957 में एक गायक के रूप में पहली बार रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक की पहचान मिली। यहीं से उनकी क़ामयाबी का सफ़र शुरू हुआ। इस ग़ज़ल को मेहंदी हसन ने शास्त्रीय पुट देकर गाया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनके ग़ज़ल कार्यक्रम दुनियाभर में आयोजित होने लगे। 1980 के दशक में तबीयत की खराबी के चलते ख़ान साहब ने पार्श्वगायकी छोड़ दी और काफ़ी समय तक संगीत से दूरी बनाए रखी। अक्टूबर, 2012 में एचएमवी कंपनी ने उनका एल्बम 'सरहदें' रिलीज किया जिसमें उन्होंने पहली और आखिरी बार लता मंगेशकर के साथ डूएट गीत भी गाया।[1] सन 1980 के बाद उनके बीमार होने से उनका गायन कम हो गया। मेहदी हसन ने क़रीब 54,000 ग़ज़लें, गीत और ठुमरी गाईं। इन्होंने ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अहमद फ़राज़, मीर तक़ी मीर और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे शायरों की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी।
मशहूर ग़ज़लें
- ज़िंदगी में तो सभी प्यार करते हैं...
- अब के हम बिछड़ के
- बात करनी मुझे
- रंजिश ही सही..
- यूं जिंदगी की राह में..
- मोहब्बत करने वाले
- हमें कोई ग़म नहीं था
- रफ्ता रफ्ता वो मेरी
- न किसी की आंख का नूर
- शिकवा ना कर, गिला ना कर
- गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले
सम्मान और पुरस्कार
मेहदी हसन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जनरल अयूब ख़ाँ ने उन्हें तमगा-ए-इम्तियाज़, जनरल ज़िया उल हक़ ने प्राइड ऑफ़ परफ़ॉर्मेंस और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा भारत ने 1979 में सहगल अवॉर्ड से सम्मनित किया।
अंतिम समय
मेहदी हसन का आख़िरी समय काफ़ी तकलीफ़ में गुजरा। 12 सालों से लगातार बीमारी से जूझ रहे थे और उनका काफ़ी वक्त अस्पताल में गुज़रता था। मेहदी हसन का निधन कराची में सन 13 जून 2012 को फेंफड़ों में संक्रमण के कारण हो गया।
मशहूर लेखक जावेद अख्तर ने मेहदी हसन के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उनके जाने के साथ ही ग़ज़ल गायकी का एक दौर खत्म हो गया। ग़ज़ल तो पहले भी गाई जाती थी लेकिन मेहदी हसन ने ग़ज़ल गायकी को एक नया अंदाज दिया था। मेहदी हसन ने गायकी का अपना ही एक रंग पैदा किया था। जावेद अख्तर ने कहा कि उनकी गजलें, खास तौर से ‘रंजिश ही सही…’ 70 के दशक में भारत में खासी लोकप्रिय हुईं। उर्दू को न जानने वाले भी ये ग़ज़लें सुनकर खो जाया करते थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गजल गायकी के बेताज बादशाह मेहदी हसन नहीं रहे (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अमर उजाला। अभिगमन तिथि: 14 जून, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
- रंजिश ही सही.. (यू-ट्यूब वीडियो)
- गुलों में रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले (यू-ट्यूब वीडियो)
- मोहब्बत करने वाले (यू-ट्यूब वीडियो)
- ज़िन्दगी में सभी प्यार करते हैं (यू-ट्यूब वीडियो)
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