"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/4": अवतरणों में अंतर
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-[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | -[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | ||
||[[चित्र:Kathak-Dance.jpg|right|100px|कत्थक नृत्य]]'कत्थक नृत्य' की शैली का जन्म [[ब्राह्मण]] [[पुरोहित|पुरोहितों]] द्वारा [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की पारम्परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्हें 'कथिक' कहते थे, जो नाटकीय अंदाज में हाव-भावों का उपयोग करते थे। क्रमश: इसमें कथा कहने की शैली और अधिक विकसित हुई, जिससे यह एक [[ | ||[[चित्र:Kathak-Dance.jpg|right|100px|कत्थक नृत्य]]'कत्थक नृत्य' की शैली का जन्म [[ब्राह्मण]] [[पुरोहित|पुरोहितों]] द्वारा [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की पारम्परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्हें 'कथिक' कहते थे, जो नाटकीय अंदाज में हाव-भावों का उपयोग करते थे। क्रमश: इसमें कथा कहने की शैली और अधिक विकसित हुई, जिससे यह एक [[नृत्य]] रूप बन गया। इस नृत्य को 'नटवरी नृत्य' के नाम से भी जाना जाता है। [[उत्तर भारत]] में [[मुग़ल|मुग़लों]] के आने पर इस नृत्य को शाही दरबार में ले जाया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कत्थक]] | ||
{[[कत्थक नृत्य]] प्रारम्भ करने के तरीके को क्या कहते हैं?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 248) | {[[कत्थक नृत्य]] प्रारम्भ करने के तरीके को क्या कहते हैं?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 248) | ||
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-सलामी | -सलामी | ||
-आमद | -आमद | ||
||[[सप्तक]] के 12 [[स्वर (संगीत)|स्वरों]] में से 7 क्रमानुसार मुख्य स्वरों के उस समुदाय को '[[ठाट]]' कहते हैं, जिससे [[राग]] उत्पन्न होते है। स्वर सप्तक, मेल, थाट अथवा ठाट एक ही अर्थवाचक हैं। हिन्दुस्तानी [[संगीत]] पद्धति में आजकल 10 ठाट माने जाते हैं। इन ठाटों से समस्त राग उत्पन्न माने गये हैं। [[आधुनिक काल]] में स्वर्गीय विष्णु नारायण भातखण्डे ने ठाट-पद्धति को प्रचार में लाने की कल्पना की और ठाटों की संख्या को 10 माना है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ठाट]] | |||
{[[दक्षिण भारत]] के किस राजवंश से [[भरतनाट्यम नृत्य]] सम्बन्धित रहा है?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 257) | {[[दक्षिण भारत]] के किस राजवंश से [[भरतनाट्यम नृत्य]] सम्बन्धित रहा है?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 257) | ||
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-[[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्य]] | -[[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्य]] | ||
-[[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] | -[[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] | ||
||चोलों के विषय में प्रथम जानकारी [[पाणिनी]] कृत '[[अष्टाध्यायी]]' से मिलती है। [[चोल वंश]] के विषय में जानकारी के अन्य स्रोत हैं- [[कात्यायन]] कृत 'वार्तिक', '[[महाभारत]]', '[[संगम साहित्य]]', 'पेरिप्लस ऑफ़ दी इरीथ्रियन सी' एवं [[टॉलमी]] का उल्लेख आदि। [[चोल साम्राज्य]] आधुनिक [[कावेरी नदी]] की घाटी, [[कोरोमण्डल मैदान|कोरोमण्डल]], [[त्रिचनापल्ली]] एवं [[तंजौर]] तक विस्तृत था। इस राज्य की कोई एक स्थाई राजधानी नहीं थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चोल राजवंश|चोल]] | |||
{निम्नलिखित में से कौन-सा एकल [[नृत्य]] है?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 264) | {निम्नलिखित में से कौन-सा एकल [[नृत्य]] है?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 264) | ||
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-[[कत्थक]] | -[[कत्थक]] | ||
+[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | +[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | ||
||[[चित्र:Mohini-Attam-Dance.jpg|right|100px|मोहिनीअट्टम नृत्य]]'मोहिनीअट्टम' [[केरल]] की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला अर्ध-शास्त्रीय नृत्य है, जो [[कथकली]] से अधिक पुराना माना जाता है। 'मोहिनी' शब्द का अर्थ है- 'एक ऐसी महिला, जो देखने वालों का मन मोह ले या उनमें इच्छा उत्पन्न करे।' यह अनिवार्यत: एकल नृत्य है, किन्तु वर्तमान समय में इसे समूहों में भी किया जाता है। [[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअटट्म]] की विषय वस्तु प्रेम तथा भगवान के प्रति समर्पण है। इस नृत्य की परम्परा [[भरतनाट्यम नृत्य|भरतनाट्यम]] के काफ़ी क़्ररीब चलती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | |||
{भगवान [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ]] को कौन-सा [[नृत्य]] समर्पित किया गया है?(भा.क.सं., पृ. 280, प्र. 274) | {भगवान [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ]] को कौन-सा [[नृत्य]] समर्पित किया गया है?(भा.क.सं., पृ. 280, प्र. 274) | ||
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+[[ओडिसी]] | +[[ओडिसी]] | ||
-[[कत्थक]] | -[[कत्थक]] | ||
||[[चित्र:Odissi-Dance-7.jpg|right|100px|ओडिसी नृत्य]]'ओडिसी नृत्य' को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सबसे पुराने जीवित [[शास्त्रीय नृत्य]] रूपों में से एक माना जाता है। [[उड़ीसा]] राज्य के पारम्परिक [[नृत्य|नृत्य]], [[ओडिसी नृत्य|ओडिसी]] का जन्म मंदिर में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य से हुआ था। ओडिसी नृत्य में [[श्रीकृष्ण]] के भगवान [[विष्णु]] के आठवें [[अवतार]] के बारे में कथाएँ बताई जाती हैं। इस नृत्य में सर्वाधिक लोकप्रिय [[देवता]] भगवान [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ]] की महिमा का गान किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ओडिसी]] | |||
{[[मणिपुरी नृत्य]] किस [[धर्म]] से सम्बन्धित है?(भा.क.सं., पृ. 280, प्र. 289) | {[[मणिपुरी नृत्य]] किस [[धर्म]] से सम्बन्धित है?(भा.क.सं., पृ. 280, प्र. 289) | ||
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-[[बौद्ध]] | -[[बौद्ध]] | ||
-[[शैव]] | -[[शैव]] | ||
||'वैष्णव धर्म' या [[वैष्णव सम्प्रदाय]] का प्राचीन नाम [[भागवत धर्म]] या [[पांचरात्र मत]] है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव [[वासुदेव (कृष्ण)|वासुदेव]] हैं, जिन्हें छ: गुणों- ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण 'भगवान' या 'भगवत' कहा गया है और भगवत के उपासक 'भागवत' कहलाते हैं। इस सम्प्रदाय की पांचरात्र संज्ञा के सम्बन्ध में अनेक मत व्यक्त किये गये हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वैष्णव]] | |||
{[[दुर्गा|दुर्गामाता]] की आराधना हेतु [[गरबा नृत्य|गरबा]] नामक [[लोक नृत्य]] किस राज्य में प्रचलित है?(भा.क.सं., पृ. 280, प्र. 299) | {[[दुर्गा|दुर्गामाता]] की आराधना हेतु [[गरबा नृत्य|गरबा]] नामक [[लोक नृत्य]] किस राज्य में प्रचलित है?(भा.क.सं., पृ. 280, प्र. 299) | ||
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-[[बिहार]] | -[[बिहार]] | ||
-[[राजस्थान]] | -[[राजस्थान]] | ||
||[[चित्र:Garba-Dance.jpg|right|120px|गरबा नृत्य, गुजरात]]'गुजरात' में अधिकांश जनसंख्या [[हिन्दू धर्म]] को मानती है, जबकि कुछ संख्या [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]], [[जैन]] और [[पारसी धर्म]] मानने वालों की भी है। [[गुजरात]] की अधिकांश [[गुजरात की संस्कृति|लोक संस्कृति]] और लोकगीत [[हिन्दू]] धार्मिक साहित्य [[पुराण]] में वर्णित भगवान [[कृष्ण]] से जुड़ी किंवदंतियों से प्रतिबिंबित होती है। कृष्ण के सम्मान में किया जाने वाला रासनृत्य और [[रासलीला]] प्रसिद्ध [[लोकनृत्य]] "[[गरबा नृत्य|गरबा]]" के रूप में अब भी प्रचलित है। यह नृत्य देवी [[दुर्गा]] के [[नवरात्र]] पर्व में किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुजरात]] | |||
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{जो विद्यार्थी अपना सम्पूर्ण जीवन शिक्षा में लगा देते हैं, उन्हें क्या कहा जाता है?(भा.क.सं., पृ. 288, प्र. 440) | {जो विद्यार्थी अपना सम्पूर्ण जीवन शिक्षा में लगा देते हैं, उन्हें क्या कहा जाता है?(भा.क.सं., पृ. 288, प्र. 440) | ||
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-अमीर खुर्द | -अमीर खुर्द | ||
+[[अमीर ख़ुसरो]] | +[[अमीर ख़ुसरो]] | ||
||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|right|100px|अमीर ख़ुसरो]]'अमीर ख़ुसरो' [[हिन्दी]] की [[खड़ी बोली]] के पहले लोकप्रिय [[कवि]] हैं, जिन्होंने कई गज़लें, [[ख़याल]], [[कव्वाली]], [[रुबाई]] तथा तराना आदि की रचना की हैं। कहा जाता है कि [[तबला]] हज़ारों साल पुराना [[वाद्य यंत्र]] है, किन्तु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में बताया जाता है कि 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा संगीतज्ञ [[अमीर ख़ुसरो]] ने [[पखावज]] के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]] | |||
{निम्नलिखित में से किसने कभी संन्यास ग्रहण नहीं किया?(भा.क.सं., पृ. 293, प्र. 547) | {निम्नलिखित में से किसने कभी संन्यास ग्रहण नहीं किया?(भा.क.सं., पृ. 293, प्र. 547) | ||
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-[[रामानुज]] | -[[रामानुज]] | ||
-[[ज्ञानेश्वर]] | -[[ज्ञानेश्वर]] | ||
||'वल्लभाचार्य' भक्ति कालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं, जिनका प्रादुर्भाव ई. सन 1479 ई. वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ था। वल्लभाचार्य को 'वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार' कहा गया है। वे वेद शास्त्र में पारंगत थे। वल्लभाचार्य के अनुसार जीव ब्रह्म ही है। यह भगवत्स्वरूप ही है, किन्तु उनका आनन्दांश-आवृत रहता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभाचार्य]] | |||
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07:42, 8 जुलाई 2012 का अवतरण
अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान
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