"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/4": अवतरणों में अंतर
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-पंडित रमाबाई | -पंडित रमाबाई | ||
-मुकुन्द दास | -मुकुन्द दास | ||
{[[कत्थक नृत्य]] प्रारम्भ करने के तरीके को क्या कहते हैं?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 248) | |||
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-तत्कार | |||
+[[ठाट]] | |||
-सलामी | |||
-आमद | |||
||[[सप्तक]] के 12 [[स्वर (संगीत)|स्वरों]] में से 7 क्रमानुसार मुख्य स्वरों के उस समुदाय को '[[ठाट]]' कहते हैं, जिससे [[राग]] उत्पन्न होते है। स्वर सप्तक, मेल, थाट अथवा ठाट एक ही अर्थवाचक हैं। हिन्दुस्तानी [[संगीत]] पद्धति में आजकल 10 ठाट माने जाते हैं। इन ठाटों से समस्त राग उत्पन्न माने गये हैं। [[आधुनिक काल]] में स्वर्गीय विष्णु नारायण भातखण्डे ने ठाट-पद्धति को प्रचार में लाने की कल्पना की और ठाटों की संख्या को 10 माना है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ठाट]] | |||
{जिस [[जैन]] ग्रंथ में [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] के जीवन चरित हैं, उसका नाम क्या है?(भा.क.सं., पृ. 297, प्र. 630) | {जिस [[जैन]] ग्रंथ में [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] के जीवन चरित हैं, उसका नाम क्या है?(भा.क.सं., पृ. 297, प्र. 630) | ||
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-[[कल्पसूत्र]] | -[[कल्पसूत्र]] | ||
+भगवती सूत्र | +भगवती सूत्र | ||
{[[दक्षिण भारत]] के किस राजवंश से [[भरतनाट्यम नृत्य]] सम्बन्धित रहा है?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 257) | |||
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+[[चोल राजवंश|चोल]] | |||
-[[चेर वंश|चेर]] | |||
-[[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्य]] | |||
-[[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] | |||
||चोलों के विषय में प्रथम जानकारी [[पाणिनी]] कृत '[[अष्टाध्यायी]]' से मिलती है। [[चोल वंश]] के विषय में जानकारी के अन्य स्रोत हैं- [[कात्यायन]] कृत 'वार्तिक', '[[महाभारत]]', '[[संगम साहित्य]]', 'पेरिप्लस ऑफ़ दी इरीथ्रियन सी' एवं [[टॉलमी]] का उल्लेख आदि। [[चोल साम्राज्य]] आधुनिक [[कावेरी नदी]] की घाटी, [[कोरोमण्डल मैदान|कोरोमण्डल]], [[त्रिचनापल्ली]] एवं [[तंजौर]] तक विस्तृत था। इस राज्य की कोई एक स्थाई राजधानी नहीं थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चोल राजवंश|चोल]] | |||
{[[सरोद]] नामक [[वाद्य यंत्र]] मुख्यत: किस लकड़ी का बना होता है?(भा.क.सं., पृ. 276, प्र. 176) | {[[सरोद]] नामक [[वाद्य यंत्र]] मुख्यत: किस लकड़ी का बना होता है?(भा.क.सं., पृ. 276, प्र. 176) | ||
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+पोली | +पोली | ||
-खैर | -खैर | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा एकल [[नृत्य]] है?(भा.क.सं., पृ. 279, प्र. 264) | |||
|type="()"} | |||
-[[भरतनाट्यम]] | |||
-[[कुचिपुड़ी]] | |||
-[[कत्थक]] | |||
+[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | |||
||[[चित्र:Mohini-Attam-Dance.jpg|right|100px|मोहिनीअट्टम नृत्य]]'मोहिनीअट्टम' [[केरल]] की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला अर्ध-शास्त्रीय नृत्य है, जो [[कथकली]] से अधिक पुराना माना जाता है। 'मोहिनी' शब्द का अर्थ है- 'एक ऐसी महिला, जो देखने वालों का मन मोह ले या उनमें इच्छा उत्पन्न करे।' यह अनिवार्यत: एकल नृत्य है, किन्तु वर्तमान समय में इसे समूहों में भी किया जाता है। [[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअटट्म]] की विषय वस्तु प्रेम तथा भगवान के प्रति समर्पण है। इस नृत्य की परम्परा [[भरतनाट्यम नृत्य|भरतनाट्यम]] के काफ़ी क़्ररीब चलती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | |||
{[[संगीत]] के किस [[ग्रंथ]] को वैदिक संगीत का व्याकरण माना जाता है?(भा.क.सं., पृ. 277, प्र. 199) | {[[संगीत]] के किस [[ग्रंथ]] को वैदिक संगीत का व्याकरण माना जाता है?(भा.क.सं., पृ. 277, प्र. 199) | ||
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-[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | -[[मोहिनीअट्टम नृत्य|मोहिनीअट्टम]] | ||
||[[चित्र:Kathak-Dance.jpg|right|100px|कत्थक नृत्य]]'कत्थक नृत्य' की शैली का जन्म [[ब्राह्मण]] [[पुरोहित|पुरोहितों]] द्वारा [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की पारम्परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्हें 'कथिक' कहते थे, जो नाटकीय अंदाज में हाव-भावों का उपयोग करते थे। क्रमश: इसमें कथा कहने की शैली और अधिक विकसित हुई, जिससे यह एक [[नृत्य]] रूप बन गया। इस नृत्य को 'नटवरी नृत्य' के नाम से भी जाना जाता है। [[उत्तर भारत]] में [[मुग़ल|मुग़लों]] के आने पर इस नृत्य को शाही दरबार में ले जाया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कत्थक]] | ||[[चित्र:Kathak-Dance.jpg|right|100px|कत्थक नृत्य]]'कत्थक नृत्य' की शैली का जन्म [[ब्राह्मण]] [[पुरोहित|पुरोहितों]] द्वारा [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की पारम्परिक पुन: गणना में निहित है, जिन्हें 'कथिक' कहते थे, जो नाटकीय अंदाज में हाव-भावों का उपयोग करते थे। क्रमश: इसमें कथा कहने की शैली और अधिक विकसित हुई, जिससे यह एक [[नृत्य]] रूप बन गया। इस नृत्य को 'नटवरी नृत्य' के नाम से भी जाना जाता है। [[उत्तर भारत]] में [[मुग़ल|मुग़लों]] के आने पर इस नृत्य को शाही दरबार में ले जाया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कत्थक]] | ||
{भगवान [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ]] को कौन-सा [[नृत्य]] समर्पित किया गया है?(भा.क.सं., पृ. 280, प्र. 274) | {भगवान [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ]] को कौन-सा [[नृत्य]] समर्पित किया गया है?(भा.क.सं., पृ. 280, प्र. 274) | ||
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+नैष्ठिक | +नैष्ठिक | ||
-विद्या-व्रत-स्नातक | -विद्या-व्रत-स्नातक | ||
{निम्नलिखित में से किसने कभी संन्यास ग्रहण नहीं किया?(भा.क.सं., पृ. 293, प्र. 547) | |||
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-[[चैतन्य महाप्रभु|चैतन्य]] | |||
+[[वल्लभाचार्य]] | |||
-[[रामानुज]] | |||
-[[ज्ञानेश्वर]] | |||
||'वल्लभाचार्य' [[भक्ति काल|भक्ति कालीन]] सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं, जिनका प्रादुर्भाव ई. सन 1479 ई. [[वैशाख मास|वैशाख]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[एकादशी]] को [[दक्षिण भारत]] के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग [[ब्राह्मण]] श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से [[काशी]] के समीप हुआ था। [[वल्लभाचार्य]] को 'वैश्वानरावतार अग्नि' का [[अवतार]] कहा गया है। वे वेदशास्त्र में पारंगत थे। वल्लभाचार्य के अनुसार जीव ब्रह्म ही है। यह भगवत्स्वरूप ही है, किन्तु उनका आनन्दांश-आवृत रहता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभाचार्य]] | |||
{किस सूफ़ी ने [[भारत]] को 'पृथ्वी का स्वर्ग' कहा?(भा.क.सं., पृ. 292, प्र. 541) | {किस सूफ़ी ने [[भारत]] को 'पृथ्वी का स्वर्ग' कहा?(भा.क.सं., पृ. 292, प्र. 541) | ||
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+[[अमीर ख़ुसरो]] | +[[अमीर ख़ुसरो]] | ||
||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|right|100px|अमीर ख़ुसरो]]'अमीर ख़ुसरो' [[हिन्दी]] की [[खड़ी बोली]] के पहले लोकप्रिय [[कवि]] हैं, जिन्होंने कई गज़लें, [[ख़याल]], [[कव्वाली]], [[रुबाई]] तथा तराना आदि की रचना की हैं। कहा जाता है कि [[तबला]] हज़ारों साल पुराना [[वाद्य यंत्र]] है, किन्तु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में बताया जाता है कि 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा संगीतज्ञ [[अमीर ख़ुसरो]] ने [[पखावज]] के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]] | ||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|right|100px|अमीर ख़ुसरो]]'अमीर ख़ुसरो' [[हिन्दी]] की [[खड़ी बोली]] के पहले लोकप्रिय [[कवि]] हैं, जिन्होंने कई गज़लें, [[ख़याल]], [[कव्वाली]], [[रुबाई]] तथा तराना आदि की रचना की हैं। कहा जाता है कि [[तबला]] हज़ारों साल पुराना [[वाद्य यंत्र]] है, किन्तु नवीनतम ऐतिहासिक वर्णन में बताया जाता है कि 13वीं शताब्दी में भारतीय कवि तथा संगीतज्ञ [[अमीर ख़ुसरो]] ने [[पखावज]] के दो टुकड़े करके तबले का आविष्कार किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]] | ||
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14:04, 8 जुलाई 2012 का अवतरण
अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान
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