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+[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | +[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
-[[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] | -[[ग़यासुद्दीन तुग़लक़]] | ||
||'फ़िरोजशाह तुग़लक़' के शासन काल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 तक पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान ने 'दीवान-ए-बंदग़ान' की स्थापना की। कुछ दास प्रांतों में भेजे गये तथा शेष को केन्द्र में रखा गया। दासों को नकद वेतन या भूखण्ड दिए गये। दासों को दस्तकारी का प्रशिक्षण भी दिया गया। सैन्य व्यवस्था के अन्तर्गत [[फ़िरोजशाह तुग़लक़|फ़िरोज]] ने सैनिकों को पुनः जागीर के रूप में वेतन देना प्रारम्भ कर दिया। उसने सैन्य पदों को वंशानुगत बना दिया, इससे सैनिकों की योग्यता की जाँच पर असर पड़ा। 'खुम्स' का 4/5 भाग फिर से सैनिकों को देने के आदेश दिए गये। कुछ समय बाद उसका भयानक परिणम सामने आया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | |||
{[[सल्तनत काल]] में शाही पत्र व्यवहार किस मंत्री का कार्य था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 165, प्र. 02) | {[[सल्तनत काल]] में शाही पत्र व्यवहार किस मंत्री का कार्य था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 165, प्र. 02) | ||
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-काजी | -काजी | ||
+[[दीवान-ए-इंशा]] | +[[दीवान-ए-इंशा]] | ||
||'दीवान-ए-इंशा' [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में [[सल्तनत काल]] का एक महत्त्वपूर्ण पद था। इस पद पर कार्य करने वाला व्यक्ति 'दबीर-ए-मुमालिक' विभाग के अन्तर्गत आता था। शाही पत्र व्यवहार के लिए कार्य करने का भार इस विभाग द्वारा होता था। यह सुल्तान की घोषणाओं एवं पत्रों का मसविदा तैयार करता था। सभी राजकीय [[अभिलेख]] इसी कार्यालय में सुरक्षित रखे जाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दीवान-ए-इंशा]] | |||
{किसके शासन काल को [[इब्नबतूता]] ने "एक बहुत बड़ा समारोह" कहा है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 165, प्र. 01) | {किसके शासन काल को [[इब्नबतूता]] ने "एक बहुत बड़ा समारोह" कहा है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 165, प्र. 01) | ||
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-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | -[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
-[[मुइज़ुद्दीन बहरामशाह]] | -[[मुइज़ुद्दीन बहरामशाह]] | ||
||'कैकुबाद' (1287-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठाया गया था। इसके पूर्व [[बलबन]] ने अपनी मृत्यु से पहले कैख़ुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन दिल्ली के कोतवाल फ़ख़रुद्दीन मुहम्मद ने बलबन की मृत्यु के बाद कूटनीति के द्वारा कैख़ुसरो को [[मुल्तान]] की सूबेदारी देकर कैकुबाद को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा दिया। [[अफ़्रीका|अफ़्रीकी]] यात्री [[इब्नबतूता]] ने कैकुबाद के समय में यात्रा की थी, उसने सुल्तान के शासन काल को 'एक बड़ा समारोह' कहकर उसकी प्रशंसा की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कैकुबाद]] | |||
{[[सल्तनत काल]] में 'हक-ए-शर्ब' क्या था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 166, प्र. 30) | {[[सल्तनत काल]] में 'हक-ए-शर्ब' क्या था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 166, प्र. 30) | ||
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-1327 ई. में | -1327 ई. में | ||
{निम्न में से कौन-सा एक [[मीर जुमला]] की मृत्यु का कारण था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 195, प्र. 691) | {निम्न में से कौन-सा एक रोग [[मीर जुमला]] की मृत्यु का कारण था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 195, प्र. 691) | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-कैंसर | -कैंसर | ||
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+[[प्लूरिसी]] | +[[प्लूरिसी]] | ||
-आंत्र ज्वर | -आंत्र ज्वर | ||
||'प्लूरिसी' मानव में होने वाला एक रोग है। [[मानव शरीर]] में [[फेफड़ा|फेफड़े]] और छाती की अन्दरूनी दोहरी परत को ढकने वाली पतली झिल्ली को 'प्लूरा' कहते हैं। अगर इस झिल्ली में किसी तरह का संक्रमण हो जाता है तो उसे 'प्लूरिसी रोग' कहा जाता है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके फेफड़े की झिल्लियाँ थोड़ी मोटी हो जाती है और इसमें पाई जाने वाली दोनों सतह एक-दूसरे से टकराने लगती हैं। इन दोनों सतहों के बीच [[द्रव्य]] भरा रहता है, जो इस रोग के कारण एक जगह ठहर जाता है और अपने स्थान से बाहर होकर जमा होने लगता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्लूरिसी]] | |||
{यह कथन किसका है- "इतिहास की जानकारी के वगैर रदीस को समझना सम्भव नहीं है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 195, प्र. 670) | {यह कथन किसका है- "इतिहास की जानकारी के वगैर रदीस को समझना सम्भव नहीं है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 195, प्र. 670) |
08:14, 26 जुलाई 2012 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
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