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'''छाता''' [[मथुरा]] [[दिल्ली]] राजमार्ग पर मथुरा से लगभग 20 मील उत्तर-पश्चिम तथा पयगाँव से चार मील दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित है। | |||
*छत्रवन का वर्तमान नाम छाता है। | *छत्रवन का वर्तमान नाम छाता है। | ||
*गाँव के उत्तर-पूर्व कोने में सूर्यकुण्ड, दक्षिण-पश्चिम कोण में चन्द्रकुण्ड स्थित है। | *गाँव के उत्तर-पूर्व कोने में सूर्यकुण्ड, दक्षिण-पश्चिम कोण में चन्द्रकुण्ड स्थित है। | ||
*चन्द्रकुण्ड के तट पर दाऊजी का मन्दिर विराजमान है। | *चन्द्रकुण्ड के तट पर [[दाऊजी मंदिर मथुरा|दाऊजी का मन्दिर]] विराजमान है। | ||
*यहीं पर श्रीदाम आदि सखाओं ने [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] को सिंहासन पर बैठाकर [[ब्रज]] का छत्रपति महाराजा बनाकर एक अभूतपूर्व लीला अभिनय का कौतुक रचा था। | *यहीं पर श्रीदाम आदि सखाओं ने [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] को सिंहासन पर बैठाकर [[ब्रज]] का छत्रपति महाराजा बनाकर एक अभूतपूर्व लीला अभिनय का कौतुक रचा था। | ||
*श्री [[बलराम]] जी कृष्ण के बाएं बैठकर मन्त्री का कार्य करने लगे। | *श्री [[बलराम]] जी [[कृष्ण]] के बाएं बैठकर मन्त्री का कार्य करने लगे। | ||
*श्रीदाम ने कृष्ण के सिर के ऊपर छत्र धारण किया, अर्जुन चामर ढुलाने लगे, मधुमंगल सामने बैठकर विदूषक का कार्य करने लगे, सुबल ताम्बूल बीटिका देने लगे तथा सुबाहु और विशाल आदि कुछ सखा प्रजा का अभिनय करने लगे। | *श्रीदाम ने कृष्ण के सिर के ऊपर छत्र धारण किया, अर्जुन चामर ढुलाने लगे, मधुमंगल सामने बैठकर विदूषक का कार्य करने लगे, सुबल ताम्बूल बीटिका देने लगे तथा सुबाहु और विशाल आदि कुछ सखा प्रजा का अभिनय करने लगे। | ||
*छत्रपति महाराज कृष्ण ने मधुमंगल के माध्यम से सर्वत्र घोषणा करवा दी कि - महाराज छत्रपति नन्दकुमार - यहाँ के एकछत्र राजा हैं। | *छत्रपति महाराज कृष्ण ने मधुमंगल के माध्यम से सर्वत्र घोषणा करवा दी कि - महाराज छत्रपति नन्दकुमार - यहाँ के एकछत्र राजा हैं। | ||
*यहाँ अन्य किसी का अधिकार नहीं हैं। गोपियाँ प्रतिदिन मेरे इस बाग़ को नष्ट करती हैं, अत: वे सभी दण्डनीय हैं। | *यहाँ अन्य किसी का अधिकार नहीं हैं। [[गोपी|गोपियाँ]] प्रतिदिन मेरे इस बाग़ को नष्ट करती हैं, अत: वे सभी दण्डनीय हैं। | ||
*इस प्रकार श्रीकृष्ण ने सखाओं के साथ यह अभिनय लीला कौतुकी क्रीड़ा की थी। इसलिए इस गाँव का नाम '''छत्रवन या छाता''' हुआ। | *इस प्रकार श्रीकृष्ण ने सखाओं के साथ यह अभिनय लीला कौतुकी क्रीड़ा की थी। इसलिए इस गाँव का नाम '''छत्रवन या छाता''' हुआ। | ||
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05:46, 4 अगस्त 2012 का अवतरण
छाता मथुरा दिल्ली राजमार्ग पर मथुरा से लगभग 20 मील उत्तर-पश्चिम तथा पयगाँव से चार मील दक्षिण-पश्चिम में अवस्थित है।
- छत्रवन का वर्तमान नाम छाता है।
- गाँव के उत्तर-पूर्व कोने में सूर्यकुण्ड, दक्षिण-पश्चिम कोण में चन्द्रकुण्ड स्थित है।
- चन्द्रकुण्ड के तट पर दाऊजी का मन्दिर विराजमान है।
- यहीं पर श्रीदाम आदि सखाओं ने श्रीकृष्ण को सिंहासन पर बैठाकर ब्रज का छत्रपति महाराजा बनाकर एक अभूतपूर्व लीला अभिनय का कौतुक रचा था।
- श्री बलराम जी कृष्ण के बाएं बैठकर मन्त्री का कार्य करने लगे।
- श्रीदाम ने कृष्ण के सिर के ऊपर छत्र धारण किया, अर्जुन चामर ढुलाने लगे, मधुमंगल सामने बैठकर विदूषक का कार्य करने लगे, सुबल ताम्बूल बीटिका देने लगे तथा सुबाहु और विशाल आदि कुछ सखा प्रजा का अभिनय करने लगे।
- छत्रपति महाराज कृष्ण ने मधुमंगल के माध्यम से सर्वत्र घोषणा करवा दी कि - महाराज छत्रपति नन्दकुमार - यहाँ के एकछत्र राजा हैं।
- यहाँ अन्य किसी का अधिकार नहीं हैं। गोपियाँ प्रतिदिन मेरे इस बाग़ को नष्ट करती हैं, अत: वे सभी दण्डनीय हैं।
- इस प्रकार श्रीकृष्ण ने सखाओं के साथ यह अभिनय लीला कौतुकी क्रीड़ा की थी। इसलिए इस गाँव का नाम छत्रवन या छाता हुआ।
- यहाँ संभवत: शेरशाह के समय में बनी एक सराय है जो दुर्ग जैसी मालूम होती है।
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