"करौंदा": अवतरणों में अंतर

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==करौंदा / करोंदा (Karonda)==
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करौंदा का वृक्ष झाड़दार जाति का होता है उसमें कांटे होते हैं। इसका वैज्ञानिक/वानस्पतिक नाम कैरिसा कैरेंडस (Carissa carandus) है। आम घरों में करौंदा सब्जी, चटनी, मुरब्बे और अ़चार के लिए प्रचलित है। जंगलों, खेत खलियानों के आस-पास कँटली झाडियों के रूप में करौंदा प्रचुरता से उगता हुआ पाया जाता है, हलाँकि करौंदे का पेड़ पहाडी देशों में ज्यादा होते हैं कांटे भी होते है। यह पौधा भारत में राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हिमालय के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह नेपाल और अफगानिस्तान में भी पाया जाता है।
करौंदा का वृक्ष झाड़दार जाति का होता है उसमें कांटे होते हैं। इसका वैज्ञानिक/वानस्पतिक नाम कैरिसा कैरेंडस (Carissa carandus) है। आम घरों में करौंदा सब्जी, चटनी, मुरब्बे और अचार के लिए प्रचलित है। जंगलों, खेत खलियानों के आस-पास कँटली झाडियों के रूप में करौंदा प्रचुरता से उगता हुआ पाया जाता है, हलाँकि करौंदे का पेड़ पहाडी देशों में ज्यादा होते हैं कांटे भी होते है। यह पौधा [[भारत]] में [[राजस्थान]], [[गुजरात]], [[उत्तर प्रदेश]] और [[हिमालय]] के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह [[नेपाल]] और [[अफगानिस्तान]] में भी पाया जाता है।


इस पौधे के बीज को अगस्त या सितम्बर में 1.5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। कटिंग या बडिंग से भी लगाया जा सकता है। दो साल के पौधे में फल आने लगते हैं। फूल आना मार्च के महीने में शुरू होता है और जुलाई से सितम्बर के बीच फल पक जाता है।
इस पौधे के बीज को [[अगस्त]] या [[सितम्बर]] में 1.5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। कटिंग या बडिंग से भी लगाया जा सकता है। दो साल के पौधे में फल आने लगते हैं। [[फूल]] आना [[मार्च]] के [[महीने]] में शुरू होता है और [[जुलाई]] से [[सितम्बर]] के बीच [[फल]] पक जाता है।


==पौधे की विशेषताऐं==
==पौधे की विशेषताऐं==
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करौंदे का पौधा एक झाड़ की तरह होता है। इसके पेड़ कांटेदार और 6 से 7 फुट ऊंचे होते हैं। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है। करौंदा के वृक्ष दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार के करौंदों में छोटे फल लगते हैं। दूसरी प्रकार के करौदें में बड़े करौंदे लगते हैं।
करौंदे का पौधा एक झाड़ की तरह होता है। इसके पेड़ कांटेदार और 6 से 7 फुट ऊंचे होते हैं। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है। करौंदा के वृक्ष दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार के करौंदों में छोटे फल लगते हैं। दूसरी प्रकार के करौदें में बड़े करौंदे लगते हैं।
===करौंदे का फूल===
===करौंदे का फूल===
[[चित्र:karonda-plant-95.jpg|thumb|250px|करौंदे का पौधा]]
इसके फूल सफेद होते हैं तथा फूलों की गन्ध जूही के समान होते है।  
इसके फूल सफेद होते हैं तथा फूलों की गन्ध जूही के समान होते है।  
===करौंदे का फल===
===करौंदे का फल===
इसके फल गोल, छोटे कच्चे सफेद लाली युक्‍त तथा पकने पर और लाल काले पड़ जाते हैं। करोंदा के कच्चे फल सफेद व लालिमा सहित अण्डाकार दूसरे बैंगनी व लाल रंग के होते हैं देखने में सुन्दर तथा कच्चे फल को काटने पर दूध निकलता है। पक जाने पर फल का रंग काला हो जाता है। इसके अन्दर 4 बीज निकलते हैं।
इसके फल गोल, छोटे कच्चे सफेद लाली युक्‍त तथा पकने पर और लाल काले पड़ जाते हैं। करोंदा के कच्चे फल सफेद व लालिमा सहित अण्डाकार दूसरे बैंगनी व लाल रंग के होते हैं देखने में सुन्दर तथा कच्चे फल को काटने पर दूध निकलता है। पक जाने पर फल का रंग काला हो जाता है। इसके अन्दर 4 बीज निकलते हैं।


करौंदे के फ़लों में लौह तत्व और विटामिन सी प्रचुरता से पाए जाते है।
करौंदे के फलों में [[लोहा|लौह]] [[तत्व]] और [[विटामिन]] सी प्रचुरता से पाए जाते है।
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==विभिन्न भाषाओं मे करोंदा के नाम==
==विभिन्न भाषाओं मे करोंदा के नाम==
हिन्दी: करोंदा, करोंदी।
[[हिन्दी]]: करोंदा, करोंदी।


अंग्रेजी: जस्मीड फ्लावर्ड।
[[अंग्रेजी]]: जस्मीड फ्लावर्ड।


संस्कृत: करमर्द, सुखेण, कृष्णापाक फल।
[[संस्कृत]]: करमर्द, सुखेण, कृष्णापाक फल।


बंगाली: करकचा।
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मराठी: मरवन्दी।
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गुजराती: करमंदी।
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तैलगी: बाका।
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लैटिन: कैरीसा करंदस।
लैटिन: कैरीसा करंदस।
==करोंदा के गुण==
==करोंदा के गुण==
[[चित्र:Karonda.jpg|thumb|250px|करौंदे का फूल]]
कच्चा करौंदा खट्‌टा और भारी होता है। प्यास को शान्त करने में अति उत्तम है। रक्‍त पित्त को हरता है, गरम तथा रूचिकारी होता है। पका करौंदा, हल्का मीठा रूचिकर और वातहारी होता है।
कच्चा करौंदा खट्‌टा और भारी होता है। प्यास को शान्त करने में अति उत्तम है। रक्‍त पित्त को हरता है, गरम तथा रूचिकारी होता है। पका करौंदा, हल्का मीठा रूचिकर और वातहारी होता है।


* रंग - करोंदा का रंग सफेद, स्याह, सुर्ख और हरा होता है।
* [[रंग]] - करोंदा का रंग [[सफेद रंग|सफेद]], स्याह, सुर्ख और [[हरा रंग|हरा]] होता है।
* स्वाद - करोंदा का स्वाद खट्टा होता है।
* स्वाद - करोंदा का स्वाद खट्टा होता है।
* स्वभाव - करोंदा की तासीर गरम होती है।
* स्वभाव - करोंदा की तासीर गरम होती है।
* हानिकारक - करोंदा रक्त पित्त और कफ को उभारते है।
* हानिकारक - करोंदा रक्त पित्त और कफ को उभारते है।
* दोषों को दूर करने वाला - करोंदा में व्याप्त दोषों को नमक, मिर्च और मीठे पदार्थ दूर हो जाते हैं।
* दोषों को दूर करने वाला - करोंदा में व्याप्त दोषों को [[नमक]], [[मिर्च]] और मीठे पदार्थ दूर हो जाते हैं।
 


==उपयोग==
==उपयोग==
* कच्चे करौंदे का अचार बहुत अच्छा होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है।  
* कच्चे करौंदे का अचार बहुत अच्छा होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है।  
* एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और देखने में सुन्दर भी। इस पर कुछ सुर्खी-सी होती है। इसी को आचार और चटनी के काम में ज्यादा लिया जाता है।
* एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और देखने में सुन्दर भी। इस पर कुछ सुर्खी-सी होती है। इसी को आचार और चटनी के काम में ज्यादा लिया जाता है।
* फ़लों के चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है। करोंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। खासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक चीज है।  
* फलों के चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है। करोंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। खासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक चीज है।  
* कच्चे करोंदा भूख को बढ़ाते है, भारी होते है, मल को रोकते है और रूची को उत्पन्न करते है और पके हुए हल्के, रीगल, पित्त, रक्त, पित्त त्रिदोष और विष तथा वात विनाशक है।
* कच्चे करोंदा भूख को बढ़ाते है, भारी होते है, मल को रोकते है और रूची को उत्पन्न करते है और पके हुए हल्के, रीगल, पित्त, रक्त, पित्त त्रिदोष और विष तथा वात विनाशक है।
* सूखी खाँसी होने पर करौंदा की पत्तियों के रस सेवन लाभकारी होता है।
* सूखी खाँसी होने पर करौंदा की पत्तियों के रस सेवन लाभकारी होता है।
* पातालकोट में आदिवासी करौंदा की जडों को पानी के साथ कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेपित करते है और गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फ़लों का जूस तैयार कर पिलाया जाता है, तुरंत आराम मिलता है।
* पातालकोट में आदिवासी करौंदा की जडों को पानी के साथ कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेपित करते है और गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फ़लों का जूस तैयार कर पिलाया जाता है, तुरंत आराम मिलता है।
* खट्टी डकार और अम्ल पित्त की शिकायत होने पर करौंदे के फ़लों का चूर्ण काफ़ी फ़ायदा करता है, आदिवासियों के अनुसार यह चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है।  
* खट्टी डकार और अम्ल पित्त की शिकायत होने पर करौंदे के फलों का चूर्ण काफ़ी फ़ायदा करता है, आदिवासियों के अनुसार यह चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है।  
* करोंदा के फल खाने से मसूढ़ों से खून निकलना ठीक होता है, दाँत भी मजबूत होते हैं। फ़लों से सेवन रक्त अल्पता में भी फ़ायदा मिलता है।
* करोंदा के फल खाने से मसूढ़ों से [[खून]] निकलना ठीक होता है, [[दाँत]] भी मजबूत होते हैं। फलों से सेवन रक्त अल्पता में भी फ़ायदा मिलता है।


==करौंदा का प्रयोग==
==करौंदा का प्रयोग==
* सर्प के काटने पर करौंदे की जड़ को पानी में उबालकर क्वाथ करें। फिर इस क्वाथ को सर्प काटे रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
[[चित्र:Karonda-1.jpg|thumb|250px|करौंदे का फल]]
* [[सर्प]] के काटने पर करौंदे की जड़ को पानी में उबालकर क्वाथ करें। फिर इस क्वाथ को सर्प काटे रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
* घाव के कीड़ों और खुजली पर करौंदे की जड़ निकाल कर पानी में साफ धोकर उसे पानी के साथ महीन पीस कर फिर तेल में डालकर खूब पकायें, फिर इस तेल का प्रयोग घाव के कीड़ों और खुजली पर करने से फायदा पहुँचता है।  
* घाव के कीड़ों और खुजली पर करौंदे की जड़ निकाल कर पानी में साफ धोकर उसे पानी के साथ महीन पीस कर फिर तेल में डालकर खूब पकायें, फिर इस तेल का प्रयोग घाव के कीड़ों और खुजली पर करने से फायदा पहुँचता है।  
* ज्वर आने पर करौंदे की जड़ का क्वाथ बनाकर देने से लाभ मिलता है।
* ज्वर आने पर करौंदे की जड़ का क्वाथ बनाकर देने से लाभ मिलता है।
* खांसी में करौंदे के पत्‍तों के अर्स को निकालकर उसमें शहद मिलाकर चाटना श्रेष्ठ है।
* खांसी में करौंदे के पत्‍तों के अर्स को निकालकर उसमें [[शहद]] मिलाकर चाटना श्रेष्ठ है।
* जलंदर रोग में करौंदों का शर्बत, हर दिन एक तोला दूसरे दिन दो तोला तीसरे दिन तोला इसी प्रकार एक हफ्ते तक एक तोला रोज बढ़ाते जाए। एक हफ्ते के भीतर लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
* जलंदर रोग में करौंदों का शर्बत, हर दिन एक तोला दूसरे दिन दो तोला तीसरे दिन तोला इसी प्रकार एक हफ्ते तक एक तोला रोज बढ़ाते जाए। एक हफ्ते के भीतर लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
* करौंदा का प्रयोग मूंगा व चांदी की भस्म बनाने में भी किया जाता है। मूंगा भस्म बनाने के लिये कच्चे करौंदों को लेकर बारीक पीसें फिर उसकी भली भांति लुगदी बनाकर उस लुगदी में मूगों को रखें फिर उस लुगदी के ऊपर सात कपट मिट्‌टी कर, उपलों की आग में रखकर फूंके। पहल मन्दाग्नि, बीच में मध्यम तीक्ष्ण अग्नि दें तो मूंगा भस्म बन जायेगी।  
* करौंदा का प्रयोग [[मूंगा]] [[चांदी]] की भस्म बनाने में भी किया जाता है। मूंगा भस्म बनाने के लिये कच्चे करौंदों को लेकर बारीक पीसें फिर उसकी भली भांति लुगदी बनाकर उस लुगदी में मूगों को रखें फिर उस लुगदी के ऊपर सात कपट मिट्‌टी कर, उपलों की आग में रखकर फूंके। पहल मन्दाग्नि, बीच में मध्यम तीक्ष्ण अग्नि दें तो मूंगा भस्म बन जायेगी।  
* चांदी की भस्म करने के लिये करौंदों की लुग्दी बनाकर ऊपर की विधि द्वारा सही सम्पुट बनाकर फूकें। इस प्रकार इक्कीस बार फूंकने पर चांदी की भस्म बनेगी।
* चांदी की भस्म करने के लिये करौंदों की लुग्दी बनाकर ऊपर की विधि द्वारा सही सम्पुट बनाकर फूकें। इस प्रकार इक्कीस बार फूंकने पर चांदी की भस्म बनेगी।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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==संबंधित लेख==
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करौंदा / करोंदा (Karonda)
करौंदे

करौंदा का वृक्ष झाड़दार जाति का होता है उसमें कांटे होते हैं। इसका वैज्ञानिक/वानस्पतिक नाम कैरिसा कैरेंडस (Carissa carandus) है। आम घरों में करौंदा सब्जी, चटनी, मुरब्बे और अचार के लिए प्रचलित है। जंगलों, खेत खलियानों के आस-पास कँटली झाडियों के रूप में करौंदा प्रचुरता से उगता हुआ पाया जाता है, हलाँकि करौंदे का पेड़ पहाडी देशों में ज्यादा होते हैं कांटे भी होते है। यह पौधा भारत में राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हिमालय के क्षेत्रों में पाया जाता है। यह नेपाल और अफगानिस्तान में भी पाया जाता है।

इस पौधे के बीज को अगस्त या सितम्बर में 1.5 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। कटिंग या बडिंग से भी लगाया जा सकता है। दो साल के पौधे में फल आने लगते हैं। फूल आना मार्च के महीने में शुरू होता है और जुलाई से सितम्बर के बीच फल पक जाता है।

पौधे की विशेषताऐं

करौंदे का पौधा

करौंदे का पौधा एक झाड़ की तरह होता है। इसके पेड़ कांटेदार और 6 से 7 फुट ऊंचे होते हैं। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है। करौंदा के वृक्ष दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार के करौंदों में छोटे फल लगते हैं। दूसरी प्रकार के करौदें में बड़े करौंदे लगते हैं।

करौंदे का फूल

करौंदे का पौधा

इसके फूल सफेद होते हैं तथा फूलों की गन्ध जूही के समान होते है।

करौंदे का फल

इसके फल गोल, छोटे कच्चे सफेद लाली युक्‍त तथा पकने पर और लाल काले पड़ जाते हैं। करोंदा के कच्चे फल सफेद व लालिमा सहित अण्डाकार दूसरे बैंगनी व लाल रंग के होते हैं देखने में सुन्दर तथा कच्चे फल को काटने पर दूध निकलता है। पक जाने पर फल का रंग काला हो जाता है। इसके अन्दर 4 बीज निकलते हैं।

करौंदे के फलों में लौह तत्व और विटामिन सी प्रचुरता से पाए जाते है।

विभिन्न भाषाओं मे करोंदा के नाम

हिन्दी: करोंदा, करोंदी।

अंग्रेजी: जस्मीड फ्लावर्ड।

संस्कृत: करमर्द, सुखेण, कृष्णापाक फल।

बंगाली: करकचा।

मराठी: मरवन्दी।

गुजराती: करमंदी।

तैलगी: बाका।

लैटिन: कैरीसा करंदस।

करोंदा के गुण

करौंदे का फूल

कच्चा करौंदा खट्‌टा और भारी होता है। प्यास को शान्त करने में अति उत्तम है। रक्‍त पित्त को हरता है, गरम तथा रूचिकारी होता है। पका करौंदा, हल्का मीठा रूचिकर और वातहारी होता है।

  • रंग - करोंदा का रंग सफेद, स्याह, सुर्ख और हरा होता है।
  • स्वाद - करोंदा का स्वाद खट्टा होता है।
  • स्वभाव - करोंदा की तासीर गरम होती है।
  • हानिकारक - करोंदा रक्त पित्त और कफ को उभारते है।
  • दोषों को दूर करने वाला - करोंदा में व्याप्त दोषों को नमक, मिर्च और मीठे पदार्थ दूर हो जाते हैं।

उपयोग

  • कच्चे करौंदे का अचार बहुत अच्छा होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है।
  • एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और देखने में सुन्दर भी। इस पर कुछ सुर्खी-सी होती है। इसी को आचार और चटनी के काम में ज्यादा लिया जाता है।
  • फलों के चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है। करोंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। खासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक चीज है।
  • कच्चे करोंदा भूख को बढ़ाते है, भारी होते है, मल को रोकते है और रूची को उत्पन्न करते है और पके हुए हल्के, रीगल, पित्त, रक्त, पित्त त्रिदोष और विष तथा वात विनाशक है।
  • सूखी खाँसी होने पर करौंदा की पत्तियों के रस सेवन लाभकारी होता है।
  • पातालकोट में आदिवासी करौंदा की जडों को पानी के साथ कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेपित करते है और गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फ़लों का जूस तैयार कर पिलाया जाता है, तुरंत आराम मिलता है।
  • खट्टी डकार और अम्ल पित्त की शिकायत होने पर करौंदे के फलों का चूर्ण काफ़ी फ़ायदा करता है, आदिवासियों के अनुसार यह चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है।
  • करोंदा के फल खाने से मसूढ़ों से खून निकलना ठीक होता है, दाँत भी मजबूत होते हैं। फलों से सेवन रक्त अल्पता में भी फ़ायदा मिलता है।

करौंदा का प्रयोग

करौंदे का फल
  • सर्प के काटने पर करौंदे की जड़ को पानी में उबालकर क्वाथ करें। फिर इस क्वाथ को सर्प काटे रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
  • घाव के कीड़ों और खुजली पर करौंदे की जड़ निकाल कर पानी में साफ धोकर उसे पानी के साथ महीन पीस कर फिर तेल में डालकर खूब पकायें, फिर इस तेल का प्रयोग घाव के कीड़ों और खुजली पर करने से फायदा पहुँचता है।
  • ज्वर आने पर करौंदे की जड़ का क्वाथ बनाकर देने से लाभ मिलता है।
  • खांसी में करौंदे के पत्‍तों के अर्स को निकालकर उसमें शहद मिलाकर चाटना श्रेष्ठ है।
  • जलंदर रोग में करौंदों का शर्बत, हर दिन एक तोला दूसरे दिन दो तोला तीसरे दिन तोला इसी प्रकार एक हफ्ते तक एक तोला रोज बढ़ाते जाए। एक हफ्ते के भीतर लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
  • करौंदा का प्रयोग मूंगाचांदी की भस्म बनाने में भी किया जाता है। मूंगा भस्म बनाने के लिये कच्चे करौंदों को लेकर बारीक पीसें फिर उसकी भली भांति लुगदी बनाकर उस लुगदी में मूगों को रखें फिर उस लुगदी के ऊपर सात कपट मिट्‌टी कर, उपलों की आग में रखकर फूंके। पहल मन्दाग्नि, बीच में मध्यम तीक्ष्ण अग्नि दें तो मूंगा भस्म बन जायेगी।
  • चांदी की भस्म करने के लिये करौंदों की लुग्दी बनाकर ऊपर की विधि द्वारा सही सम्पुट बनाकर फूकें। इस प्रकार इक्कीस बार फूंकने पर चांदी की भस्म बनेगी।
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