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'''चंचु देश''' का उल्लेख चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] ने किया है। युवानच्वांग ने इस देश को [[सारनाथ]] और [[वैशाली]] के बीच में स्थित बताया है। शायद '[[आलवक]]', जिसका अभिज्ञान पुरातत्वशास्त्री [[कनिंघम]] ने [[गाजीपुर]] के निकटवर्ती क्षेत्र से किया है, वह यही था।
'''चंचु देश''' का उल्लेख चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] ने किया है। युवानच्वांग ने इस देश को [[सारनाथ]] और [[वैशाली]] के बीच में स्थित बताया है। शायद '[[आलवक]]', जिसका अभिज्ञान पुरातत्वशास्त्री [[कनिंघम]] ने [[गाजीपुर]] के निकटवर्ती क्षेत्र से किया है, वह यही था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=314|url=}}</ref>
 
*चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] ने आलवक देश को ही शायद चंचु कहा है। इसकी राजधानी 'सुत्तनिपात' में 'आलवी' बताई गई है<ref>सुत्तनिपा, दि बुक ऑव किंडरेड सेइंग्ज पृ. 275</ref> जो 'उवास गदसाओ' नामक [[ग्रंथ]]<ref>भाग-2, पृष्ठ 103</ref> की आलभिया या आलंभिका जान पड़ती है।
*होर्नल के अनुसार आलवी की गणना अभिधानप्पदीपिका में बीस उत्तर-भारतीय नगरों के अंतर्गत की गई है।
*[[जैन]] ग्रंथ [[कल्पसूत्र]] में उल्लेख है कि [[तीर्थंकर]] [[महावीर]] ने आलविका में एक वर्षाकाल व्यतीत किया था।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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13:16, 29 अगस्त 2012 का अवतरण

चंचु देश का उल्लेख चीनी यात्री युवानच्वांग ने किया है। युवानच्वांग ने इस देश को सारनाथ और वैशाली के बीच में स्थित बताया है। शायद 'आलवक', जिसका अभिज्ञान पुरातत्वशास्त्री कनिंघम ने गाजीपुर के निकटवर्ती क्षेत्र से किया है, वह यही था।[1]

  • चीनी यात्री युवानच्वांग ने आलवक देश को ही शायद चंचु कहा है। इसकी राजधानी 'सुत्तनिपात' में 'आलवी' बताई गई है[2] जो 'उवास गदसाओ' नामक ग्रंथ[3] की आलभिया या आलंभिका जान पड़ती है।
  • होर्नल के अनुसार आलवी की गणना अभिधानप्पदीपिका में बीस उत्तर-भारतीय नगरों के अंतर्गत की गई है।
  • जैन ग्रंथ कल्पसूत्र में उल्लेख है कि तीर्थंकर महावीर ने आलविका में एक वर्षाकाल व्यतीत किया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 314 |
  2. सुत्तनिपा, दि बुक ऑव किंडरेड सेइंग्ज पृ. 275
  3. भाग-2, पृष्ठ 103

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