"जय अखंड भारत -आरसी प्रसाद सिंह": अवतरणों में अंतर
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रोग, पावक, पाप, रिपु प्रारंभ में लघु हों भले ही किन्तु, वे ही अंत में दुर्दम्य हो जाते उमड़कर । | रोग, पावक, पाप, रिपु प्रारंभ में लघु हों भले ही किन्तु, वे ही अंत में दुर्दम्य हो जाते उमड़कर । | ||
पूर्व इस भय के की वातावरण में विष फैल जाए, विषधरों के विष | पूर्व इस भय के की वातावरण में विष फैल जाए, विषधरों के विष उग़लते दंश को रख दो कुचलकर । | ||
झेलते तूफ़ान ऐसे सैकड़ो आए युगों से, हम इसे भी ऐतिहासिक भूमिका में झेल लेंगे । | झेलते तूफ़ान ऐसे सैकड़ो आए युगों से, हम इसे भी ऐतिहासिक भूमिका में झेल लेंगे । |
14:19, 1 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण
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शक्ति ऐसी है नहीं संसार में कोई कहीं पर, जो हमारे देश की राष्ट्रीयता को अस्त कर दे । |
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