"कला-संस्कृति और धर्म सामान्य ज्ञान 3": अवतरणों में अंतर
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||आज तक सर्व सम्मति से यह निश्चित नहीं हो पाया है कि [[ध्रुपद]] का अविष्कार कब और किसने किया। इस सम्बन्ध में विद्वानों के कई मत हैं। बहुसंख्य विद्वानों के अनुसार पन्द्रहवीं शताब्दी में [[ग्वालियर]] के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की थी। इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि राजा मानसिंह तोमर ने ध्रुपद के प्रचार में बहुत हाथ बंटाया। [[अकबर]] के समय में [[तानसेन]] और उनके गुरु स्वामी हरिदास डागर, नायक बैजू और गोपाल जैसे प्रख्यात गायक ही इसे गाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ध्रुपद]] | |||
{ बेगम अख़्तर [[कला]] की किस विधा से सम्बन्धित हैं? | { बेगम अख़्तर [[कला]] की किस विधा से सम्बन्धित हैं? | ||
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- [[नृत्य कला|नृत्य]] | - [[नृत्य कला|नृत्य]] | ||
- [[चित्रकला]] | - [[चित्रकला]] | ||
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- लोककला | - लोककला | ||
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- तिल्लाना | - तिल्लाना | ||
||आज तक सर्व सम्मति से यह निश्चित नहीं हो पाया है कि [[ध्रुपद]] का अविष्कार कब और किसने किया। इस सम्बन्ध में विद्वानों के कई मत हैं। | ||आज तक सर्व सम्मति से यह निश्चित नहीं हो पाया है कि [[ध्रुपद]] का अविष्कार कब और किसने किया। इस सम्बन्ध में विद्वानों के कई मत हैं। बहुसंख्य विद्वानों के अनुसार पन्द्रहवीं शताब्दी में [[ग्वालियर]] के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की। इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि राजा मानसिंह तोमर ने ध्रुपद के प्रचार में बहुत हाथ बंटाया। [[अकबर]] के समय में [[तानसेन]] और उनके गुरु स्वामी हरिदास डागर, नायक बैजू और गोपाल आदि प्रख्यात गायक ही इसे गाते थे। ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कण्ठ और [[फेफड़ा|फेफड़े]] पर बल पड़ता है। इसलिये लोग इसे 'मर्दाना गीत' कहते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ध्रुपद]] | ||
{ 'कर्नाटक संगीत का पितामह' किसे कहा जाता है? | { 'कर्नाटक संगीत का पितामह' किसे कहा जाता है? | ||
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- [[शहनाई]] | - [[शहनाई]] | ||
- [[सरोद]] | - [[सरोद]] | ||
||[[चित्र:Bansuri.jpg|right|100px|बाँसुरी]]बाँसुरी अत्यंत लोकप्रिय सुषिर [[वाद्य यंत्र]] माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक [[बांस]] से बनायी जाती है, इसलिये लोग | ||[[चित्र:Bansuri.jpg|right|100px|बाँसुरी]]बाँसुरी अत्यंत लोकप्रिय सुषिर [[वाद्य यंत्र]] माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक [[बांस]] से बनायी जाती है, इसलिये लोग इसे 'बांस बांसुरी' भी कहते हैं। बाँसुरी बनाने की प्रक्रिया काफ़ी कठिन नहीं है। सबसे पहले बांसुरी के अंदर की गांठों को हटाया जाता है। फिर उसके शरीर पर कुल सात छेद खोदे जाते हैं। सबसे पहला छेद मुँह से फूंकने के लिये छोड़ा जाता है, बाक़ी छेद अलग-अलग आवाज़ निकालने का काम देते हैं। {{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[बाँसुरी]] | ||
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12:24, 8 अक्टूबर 2012 का अवतरण
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- कला प्रांगण, कला कोश, संस्कृति प्रांगण, संस्कृति कोश, धर्म प्रांगण, धर्म कोश
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