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'''पद्मगुप्त''' धारा नगरी के सिंधुराज के ज्येष्ठ भ्राता और राजा मुंज के आश्रित [[कवि]] थे। इनका समय ई. 11वीं शती के लगभग था। पद्मगुप्त के [[पिता]] का नाम मृगांकगुप्त था। पद्मगुप्त को ‘परिमल कालिदास’ भी कहा गया है। धनिक व [[मम्मट]] ने इन्हें उद्धृत किया है।
'''पद्मगुप्त''' धारा नगरी के सिंधुराज के ज्येष्ठ भ्राता और राजा मुंज (974-998) के आश्रित [[कवि]] थे। इनका समय ई. 11वीं शती के लगभग था। पद्मगुप्त के [[पिता]] का नाम मृगांकगुप्त था। इन्हें ‘परिमल कालिदास’ भी कहा गया है। धनिक व [[मम्मट]] ने इन्हें उद्धृत किया है।


*पद्मगुप्त ने [[संस्कृत साहित्य]] के सर्वप्रथम ऐतिहासिक [[महाकाव्य]] की रचना की थी।
*पद्मगुप्त ने [[संस्कृत साहित्य]] के सर्वप्रथम ऐतिहासिक [[महाकाव्य]] की रचना की थी।
*इस महाकाव्य का नाम ‘नवसाहसाङ्कचरित’ है, और यह [[इतिहास]] एवं काव्य दोनों की दृष्टियों से मान्यता प्राप्त है।
*इस महाकाव्य का नाम ‘नवसाहसाङ्कचरित’ है, और यह [[इतिहास]] एवं काव्य दोनों की दृष्टियों से मान्यता प्राप्त है।
*‘नवसाहसाङ्कचरित’ महाकाव्य के 18 सर्ग हैं, और इसमें सिंधुराज के पूर्वजों अर्थात् [[परमार वंश]] के राजाओं का वर्णन प्राप्त होता है।
*‘नवसाहसाङ्कचरित’ महाकाव्य के 18 सर्ग हैं, और इसमें सिंधुराज के पूर्वजों अर्थात् [[परमार वंश]] के राजाओं का वर्णन प्राप्त होता है।
*पद्मगुप्त की इस कृति पर महाकवि [[कालिदास]] के काव्य का प्रभाव परिलक्षित होता है।
*पद्मगुप्त की इस कृति पर महाकवि [[कालिदास]] के काव्य का प्रभाव परिलक्षित होता है। कालिदास के अनुकरण पर इस [[ग्रंथ]] की रचना भी वैदर्भी शैली पर हुई है।
*इसकी रचना सन् 1005 के आस-पास हुई थी
*इसकी रचना सन् 1005 के आस-पास हुई थी। इसकी अलंकृत एवं हृदयावर्जक है।
*महाकाव्य का [[हिन्दी]] अनुवाद सहित प्रकाशन 'चौखम्बा-विद्याभवन' से हो चुका है।
*महाकाव्य का [[हिन्दी]] अनुवाद सहित प्रकाशन 'चौखम्बा-विद्याभवन' से हो चुका है।



06:12, 24 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

पद्मगुप्त धारा नगरी के सिंधुराज के ज्येष्ठ भ्राता और राजा मुंज (974-998) के आश्रित कवि थे। इनका समय ई. 11वीं शती के लगभग था। पद्मगुप्त के पिता का नाम मृगांकगुप्त था। इन्हें ‘परिमल कालिदास’ भी कहा गया है। धनिक व मम्मट ने इन्हें उद्धृत किया है।

  • पद्मगुप्त ने संस्कृत साहित्य के सर्वप्रथम ऐतिहासिक महाकाव्य की रचना की थी।
  • इस महाकाव्य का नाम ‘नवसाहसाङ्कचरित’ है, और यह इतिहास एवं काव्य दोनों की दृष्टियों से मान्यता प्राप्त है।
  • ‘नवसाहसाङ्कचरित’ महाकाव्य के 18 सर्ग हैं, और इसमें सिंधुराज के पूर्वजों अर्थात् परमार वंश के राजाओं का वर्णन प्राप्त होता है।
  • पद्मगुप्त की इस कृति पर महाकवि कालिदास के काव्य का प्रभाव परिलक्षित होता है। कालिदास के अनुकरण पर इस ग्रंथ की रचना भी वैदर्भी शैली पर हुई है।
  • इसकी रचना सन् 1005 के आस-पास हुई थी। इसकी अलंकृत एवं हृदयावर्जक है।
  • महाकाव्य का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन 'चौखम्बा-विद्याभवन' से हो चुका है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 468 |


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