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इसी प्रकार-विश्वकवि उसे कहना चाहिए जो दुनिया के हर देश के भीतर जो अंतर्राष्ट्रीय तत्व है, उसे वाणी दे। विश्वकवि बनने की पहली शर्त यह है कि कवि राष्ट्रकवि हो। जो राष्ट्र के विभिन्न अवयवों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, वह विश्व के विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व कैसे करेगा? और [[भारत]] में जो भी राष्ट्रकवि होगा, उसे विश्वकवि ही समझना चाहिए, क्योंकि भारत, छोटे पैमाने पर सारा संसार ही है। जैसे प्रत्येक राष्ट्र अपनी अभिव्यक्ति के लिए लालायित रहता है, उसी प्रकार देश का प्रत्येक सम्प्रदाय अपनी अभिव्यक्ति खोजता है। राष्ट्र-पुरुष और राष्ट्रकवि बनना समान रूप से कठिन कार्य है। 'दोनों' के लिए असीम धैर्य और अपरिमित उदारता की आवश्यकता है।<ref>साहित्यमुखी; दिनकर; पृष्ठ 11-12; मार्च, 68</ref>
इसी प्रकार-विश्वकवि उसे कहना चाहिए जो दुनिया के हर देश के भीतर जो अंतर्राष्ट्रीय तत्व है, उसे वाणी दे। विश्वकवि बनने की पहली शर्त यह है कि कवि राष्ट्रकवि हो। जो राष्ट्र के विभिन्न अवयवों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, वह विश्व के विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व कैसे करेगा? और [[भारत]] में जो भी राष्ट्रकवि होगा, उसे विश्वकवि ही समझना चाहिए, क्योंकि भारत, छोटे पैमाने पर सारा संसार ही है। जैसे प्रत्येक राष्ट्र अपनी अभिव्यक्ति के लिए लालायित रहता है, उसी प्रकार देश का प्रत्येक सम्प्रदाय अपनी अभिव्यक्ति खोजता है। राष्ट्र-पुरुष और राष्ट्रकवि बनना समान रूप से कठिन कार्य है। 'दोनों' के लिए असीम धैर्य और अपरिमित उदारता की आवश्यकता है।<ref>साहित्यमुखी; दिनकर; पृष्ठ 11-12; मार्च, 68</ref>
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| [[चित्र:Maithilisharan-Gupt.jpg|50px|link=मैथिलीशरण गुप्त]]
| [[चित्र:Makahan-Lal-Chaturvedi.gif|50px|link=माखन लाल चतुर्वेदी]]
| [[चित्र:Valmiki-Ramayan.jpg|50px|link=वाल्मीकि]]
| [[चित्र:Poet-Kalidasa.jpg|50px|link=कालिदास]]
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====राष्ट्रकवि किसे कहना चाहिए?====
====राष्ट्रकवि किसे कहना चाहिए?====
अपने देश में और अन्य देशों में भी यह प्रथा चल रही है कि जो भी कवि राष्ट्रीय कविताएँ लिखता हो उसे राष्ट्रकवि कह देते हैं, किन्तु यह काफ़ी नहीं है। प्रत्येक जाति की आध्यात्मिक विशेषता होती है, कोई सांस्कृतिक वैशिष्ट्य होता है, संसार और जीवन को देखने की कोई दृष्टि होती है, जो कवि इस दृष्टि बोध को अभिव्यक्ति दे सके, वही राष्ट्र का राष्ट्रकवि कहलाने के योग्य है। भारतवर्ष में [[मैथिलीशरण गुप्त|मैथिलीशरण जी]], [[माखनलाल चतुर्वेदी|माखनलाल चतुर्वेदी जी]] और सुब्रह्मण्यम भारती जी को राष्ट्रकवि कहते हैं, किन्तु यह आंशिक सत्य है। हमारे असली राष्ट्रकवि [[वाल्मीकि]] हैं, [[कालिदास]] हैं, [[तुलसीदास]] हैं, और [[रवींद्रनाथ ठाकुर]] हैं, क्योंकि भारत धर्म को इन्होंने सबसे अधिक अभिव्यक्ति दी है।<ref>दिनकर की डायरी, पृष्ठ 210; 73</ref>
अपने देश में और अन्य देशों में भी यह प्रथा चल रही है कि जो भी कवि राष्ट्रीय कविताएँ लिखता हो उसे राष्ट्रकवि कह देते हैं, किन्तु यह काफ़ी नहीं है। प्रत्येक जाति की आध्यात्मिक विशेषता होती है, कोई सांस्कृतिक वैशिष्ट्य होता है, संसार और जीवन को देखने की कोई दृष्टि होती है, जो कवि इस दृष्टि बोध को अभिव्यक्ति दे सके, वही राष्ट्र का राष्ट्रकवि कहलाने के योग्य है। भारतवर्ष में [[मैथिलीशरण गुप्त|मैथिलीशरण जी]], [[माखन लाल चतुर्वेदी|माखनलाल चतुर्वेदी जी]] और सुब्रह्मण्यम भारती जी को राष्ट्रकवि कहते हैं, किन्तु यह आंशिक सत्य है। हमारे असली राष्ट्रकवि [[वाल्मीकि]] हैं, [[कालिदास]] हैं, [[तुलसीदास]] हैं, और [[रवींद्रनाथ ठाकुर]] हैं, क्योंकि भारत धर्म को इन्होंने सबसे अधिक अभिव्यक्ति दी है।<ref>दिनकर की डायरी, पृष्ठ 210; 73</ref>


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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08:51, 23 दिसम्बर 2012 का अवतरण

राष्ट्रकवि से अभिप्राय है कि राष्ट्रीय आदर्शों को प्रभावी रूप में प्रस्तुत करने वाले राष्ट्र-प्रेरक काव्य का रचयिता तथा राष्ट्रीय सरकार द्वारा विधिवत घोषित राष्ट्र में सर्वमान्य कवि।

राष्ट्रकवि की पहचान

किसी भी देश का सच्चा राष्ट्रीय कवि कौन हो सकता है? गेटे ने कहा है कि राष्ट्रकवि उसे कहना चाहिए, जिसने-

  1. अपनी जाति के इतिहास की सभी प्रमुख घटनाओं के पारस्परिक सम्बन्धों का सन्धान पा लिया है।
  2. जिसे यह ज्ञात हो चुका है कि उसके जातीय इतिहास में कौन-कौन बड़ी घटनाएँ घटी हैं। उनके परिणाम क्या निकले हैं?
  3. राष्ट्रकवि की एक पहचान यह भी है कि उसे अपने देशवासियों के भीतर निहित महत्ता का ज्ञान होता है।
  4. उसे अपनी जाति की गहरी अनुभूतियों से परिचय होता है। उसे इस बात का पता होता है कि उसकी जाति की कर्मठता का प्रेरणा स्त्रोत क्या है।
  5. राष्ट्रकवि का एक लक्षण यह भी है कि उसकी जाति जिस उमंग से चालित होकर सम्पूर्ण इतिहास में काम करती आयी है, उसे वह कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त करे।
  6. राष्ट्रकवि केवल वह कवि हो सकता है जिसकी रचना में जाति अपनी आत्मा की प्रतिच्छाया देखती हो। जिसमें उस जाति के बाहुबल का आख्यान हो।
  7. राष्ट्रकवि वह वैनतेय[1] है जो बहुत ऊँचाई पर उड़ता है, जिसकी एक पाँख तो अतीत को समेटे रहती है, किन्तु जो अपनी दूसरी पाँख से भविष्य की ओर संकेत करता है।[2]
  8. राष्ट्रकवि उसे कहना चाहिए जो अपने देश की प्रत्येक संस्कृति को अपने में समो लेता है।
  9. जो देश के प्रत्येक वर्ग का अपने को प्रतिनिधि समझता है और सभी सम्प्रदायों के बीच जो देशगत ऐक्य है, उसे मुखर बनाता है।

इसी प्रकार-विश्वकवि उसे कहना चाहिए जो दुनिया के हर देश के भीतर जो अंतर्राष्ट्रीय तत्व है, उसे वाणी दे। विश्वकवि बनने की पहली शर्त यह है कि कवि राष्ट्रकवि हो। जो राष्ट्र के विभिन्न अवयवों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, वह विश्व के विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व कैसे करेगा? और भारत में जो भी राष्ट्रकवि होगा, उसे विश्वकवि ही समझना चाहिए, क्योंकि भारत, छोटे पैमाने पर सारा संसार ही है। जैसे प्रत्येक राष्ट्र अपनी अभिव्यक्ति के लिए लालायित रहता है, उसी प्रकार देश का प्रत्येक सम्प्रदाय अपनी अभिव्यक्ति खोजता है। राष्ट्र-पुरुष और राष्ट्रकवि बनना समान रूप से कठिन कार्य है। 'दोनों' के लिए असीम धैर्य और अपरिमित उदारता की आवश्यकता है।[3]

राष्ट्रकवि किसे कहना चाहिए?

अपने देश में और अन्य देशों में भी यह प्रथा चल रही है कि जो भी कवि राष्ट्रीय कविताएँ लिखता हो उसे राष्ट्रकवि कह देते हैं, किन्तु यह काफ़ी नहीं है। प्रत्येक जाति की आध्यात्मिक विशेषता होती है, कोई सांस्कृतिक वैशिष्ट्य होता है, संसार और जीवन को देखने की कोई दृष्टि होती है, जो कवि इस दृष्टि बोध को अभिव्यक्ति दे सके, वही राष्ट्र का राष्ट्रकवि कहलाने के योग्य है। भारतवर्ष में मैथिलीशरण जी, माखनलाल चतुर्वेदी जी और सुब्रह्मण्यम भारती जी को राष्ट्रकवि कहते हैं, किन्तु यह आंशिक सत्य है। हमारे असली राष्ट्रकवि वाल्मीकि हैं, कालिदास हैं, तुलसीदास हैं, और रवींद्रनाथ ठाकुर हैं, क्योंकि भारत धर्म को इन्होंने सबसे अधिक अभिव्यक्ति दी है।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गरुड़
  2. वट-पीपल; दिनकर; 58-59; जनवरी, 51.
  3. साहित्यमुखी; दिनकर; पृष्ठ 11-12; मार्च, 68
  4. दिनकर की डायरी, पृष्ठ 210; 73

बाहरी कड़ियाँ

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