"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/1": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 44: | पंक्ति 44: | ||
-वी. ए. स्मिथ | -वी. ए. स्मिथ | ||
{ | {तुर्की में धर्मतानिक राज्य को मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने किस [[वर्ष]] में समाप्त किया था? (पृ.सं.-8) | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[1927]] ई. | +[[1927]] ई. | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 50: | ||
-[[1925]] ई. | -[[1925]] ई. | ||
-[[1937]] ई. | -[[1937]] ई. | ||
{निम्न विकल्पों में से कौन-सा एक सही सुमेलित है? (पृ.सं.-10) | {निम्न विकल्पों में से कौन-सा एक सही सुमेलित है? (पृ.सं.-10) | ||
पंक्ति 99: | पंक्ति 98: | ||
-[[लोथल]] | -[[लोथल]] | ||
+[[मोहनजोदड़ो]] | +[[मोहनजोदड़ो]] | ||
||[[चित्र:Buddhist-Stupa-Mohenjo-Daro.jpg|right|100px|बौद्ध स्तूप, मोहनजोदड़ो]]मोहनजोदड़ो, जिसका अर्थ "मुर्दों का टीला" है, 2600 ई. पू. की एक सुव्यवस्थित नगरीय सभ्यता थी। इस सभ्यता के ध्वंसावशेष [[पाकिस्तान]] के [[सिन्ध प्रांत]] के 'लरकाना ज़िले' में [[सिंधु नदी]] के दाहिने किनारे पर प्राप्त हुए हैं। यह नगर क़रीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ पर [[कुषाण]] शासकों ने एक [[स्तूप]] का निर्माण करवाया था। [[मोहनजोदड़ो]] से प्राप्त अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में कुम्भकारों के भट्टों के अवशेष, सूती कपड़ा, [[हाथी]] का कपालखण्ड, गले हुए [[तांबा|तांबे]] के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं 'कांसे की नृत्यरत नारी की मूर्ति के अवशेष मिले हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहनजोदड़ो]] | |||
{[[मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला|मुग़ल स्थापत्य]] एक अच्छा मिश्रण था-(पृ.सं.-10) | {[[मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला|मुग़ल स्थापत्य]] एक अच्छा मिश्रण था-(पृ.सं.-10) | ||
पंक्ति 106: | पंक्ति 106: | ||
+फ़ारसी और [[भारतीय कला]] का | +फ़ारसी और [[भारतीय कला]] का | ||
-तैमूरी और भारतीय कला का | -तैमूरी और भारतीय कला का | ||
||[[चित्र:Fatehpur-Sikri-Agra-13.jpg|right|100px|फ़तेहपुर सीकरी, आगरा]][[सल्तनत काल]] में प्रचलित [[वास्तुकला]] की 'भारतीय इस्लामी शैली' का विकास [[मुग़ल काल]] में हुआ। [[मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला|मुग़लकालीन वास्तुकला]] में [[फ़ारस]], तुर्की, मध्य [[एशिया]], [[गुजरात]], [[बंगाल]], [[जौनपुर]] आदि स्थानों की शैलियों का अनोखा मिश्रण हुआ था। पर्सी ब्राउन ने 'मुग़ल काल' को 'भारतीय वास्तुकला का ग्रीष्म काल' माना है, जो [[प्रकाश]] और उर्वरा का प्रतीक माना जाता है। स्मिथ ने मुग़लकालीन वास्तुकला को "कला की रानी" कहा है। [[मुग़ल|मुग़लों]] ने भव्य महलों, क़िलों, द्वारों, मस्जिदों, बावलियों आदि का निर्माण किया। उन्होंने बहते पानी तथा फ़व्वारों से सुसज्जित कई बाग़ लगवाये थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला]] | |||
{[[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] किस [[वाद्य यंत्र|वाद्य]] को बजाने में पारंगत था?(पृ.सं.-10) | {[[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] किस [[वाद्य यंत्र|वाद्य]] को बजाने में पारंगत था?(पृ.सं.-10) |
10:08, 22 जनवरी 2013 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
|