"कवि प्रदीप": अवतरणों में अंतर
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'''प्रदीप''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Pradeep'', जन्म: 6 फ़रवरी 1915 - मृत्यु: 11 दिसंबर 1998) का मूल नाम रामचंद्र द्विवेदी था। प्रदीप [[हिंदी साहित्य]] जगत और हिंदी | '''प्रदीप''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Pradeep'', जन्म: 6 फ़रवरी 1915 - मृत्यु: 11 दिसंबर 1998) का मूल नाम रामचंद्र द्विवेदी था। प्रदीप [[हिंदी साहित्य]] जगत और हिंदी फ़िल्म जगत के एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे। कवि प्रदीप '[[ऐ मेरे वतन के लोगों]]' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। [[भारत रत्न]] सम्मानित स्वर कोकिला [[लता मंगेशकर]] द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] की उपस्थिति में [[26 जनवरी]] [[1963]] को [[दिल्ली]] के रामलीला मैदान में सीधा प्रसारण किया गया था। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
[[6 फ़रवरी]], [[1915]] में [[मध्य प्रदेश]] में जन्मे प्रदीप का असल नाम रामचंद्र द्विवेदी था। किशोरावस्था में ही उन्हें लेखन और कविता का शौक लगा। कवि सम्मेलनों में वे ख़ूब दाद बटोरा करते थे। कविता तो आमतौर पर हर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी करता ही है, परंतु रामचंद्र द्विवेदी की कविता केवल कुछ क्षणों का शौक या समय बिताने का साधन नहीं थी, वह उनकी सांस-सांस में बसी थी, उनका जीवन थी। इसीलिए अध्यापन छोड़कर वे कविता की सरंचना में व्यस्त हो गए। | [[6 फ़रवरी]], [[1915]] में [[मध्य प्रदेश]] में जन्मे प्रदीप का असल नाम रामचंद्र द्विवेदी था। किशोरावस्था में ही उन्हें लेखन और कविता का शौक लगा। कवि सम्मेलनों में वे ख़ूब दाद बटोरा करते थे। [[कविता]] तो आमतौर पर हर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी करता ही है, परंतु रामचंद्र द्विवेदी की कविता केवल कुछ क्षणों का शौक या समय बिताने का साधन नहीं थी, वह उनकी सांस-सांस में बसी थी, उनका जीवन थी। इसीलिए अध्यापन छोड़कर वे कविता की सरंचना में व्यस्त हो गए। | ||
====कवि प्रदीप==== | ====कवि प्रदीप==== | ||
कवि सम्मेलनों में [[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला|सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजी]] जैसे महान साहित्यिक को प्रभावित कर सकने की क्षमता थी रामचंद्र द्विवेदी में। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र `प्रदीप' कहलाने लगे। उस जमाने में अभिनेता प्रदीप कुमार बहुत लोकप्रिय थे और अक्सर आम लोग प्रदीप कहे जाने वाले रामचंद्र द्विवेदी की जगह प्रदीप कुमार के बारे में सोचने-समझने लगते थे। अंतत: पंडित रामचंद्र द्विवेदी ने अपना उपनाम `कवि प्रदीप' रख लिया, ताकि अभिनेता प्रदीप कुमार और गीतकार प्रदीप में अंतर आसानी से लोगों की समझ में आ जाए। कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे और उनकी मधुर आवाज का सदुपयोग अनेक संगीत निर्देशकों ने अलग-अलग समय पर किया। | कवि सम्मेलनों में [[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला|सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजी]] जैसे महान साहित्यिक को प्रभावित कर सकने की क्षमता थी रामचंद्र द्विवेदी में। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र `प्रदीप' कहलाने लगे। उस जमाने में [[अभिनेता]] [[प्रदीप कुमार]] बहुत लोकप्रिय थे और अक्सर आम लोग प्रदीप कहे जाने वाले रामचंद्र द्विवेदी की जगह प्रदीप कुमार के बारे में सोचने-समझने लगते थे। अंतत: पंडित रामचंद्र द्विवेदी ने अपना उपनाम `कवि प्रदीप' रख लिया, ताकि अभिनेता प्रदीप कुमार और गीतकार प्रदीप में अंतर आसानी से लोगों की समझ में आ जाए। कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे और उनकी मधुर आवाज का सदुपयोग अनेक संगीत निर्देशकों ने अलग-अलग समय पर किया। | ||
==फ़िल्मी सफर== | ==फ़िल्मी सफर== | ||
पहली ही | पहली ही फ़िल्म में कवि प्रदीप को गीतकार के साथ-साथ गायक के रूप में भी लिया गया था, परंतु गायक के रूप में उनकी लोकप्रियता का माध्यम बना `जागृति' फ़िल्म का गीत जिसके बोल हैं - [[आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ |आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की]] संगीत निर्देशक [[हेमंत कुमार]], [[सी. रामचंद्र]], लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल आदि ने समय-समय पर कवि प्रदीप के लिखे कुछ गीतों का उन्हीं की आवाज में रिकॉर्ड किया। `पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय', `टूट गई है माला मोती बिखर गए', कोई लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे न रे भाई', जैसा भावना प्रधान गीतों को बहुत आकर्षक अंदाज में गाकर कवि प्रदीप ने फ़िल्म जगत के गायकों में। अपना अलग ही महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था, एक गीत यद्यपि कवि प्रदीप ने स्वयं गाया नहीं था, लेकिन उनकी लिखी इस रचना ने ब्रिटिश शासकों को हिला दिया था, जिसके बोल हैं- आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है। ब्रिटिश अधिकारी ढूंढ़ने लगे कवि प्रदीप को। जब उनके कुछ मित्रों को पता चला कि ब्रिटिश शासक कवि प्रदीप को पकड़कर कड़ी सजा देना चाहते हैं तो उन्हें कवि प्रदीप की जान खतरे में नजर आने लगी। मित्रों और शुभचिंतकों के दबाव में कवि प्रदीप को भूमिगत हो जाना पड़ा।<ref>{{cite web |url=http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=6548&Itemid=87 |title=कई सदियों तक गूंजेंगे प्रदीप के गीत |accessmonthday=30 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=हिन्दी मीडिया इन |language= हिन्दी}}</ref> | ||
====लेखनी का कमाल==== | ====लेखनी का कमाल==== | ||
आज़ादी के बाद 1954 में उन्होंने फ़िल्म 'जागृति' में राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]] के जीवन दर्शन को बख़ूबी फ़िल्म के गानों में उतारा। इसे लेखनी का ही कमाल कहेंगे कि जब [[पाकिस्तान]] में फ़िल्म जागृति की रीमेक बेदारी बनाई गई तो जो बस देश की जगह मुल्क कर दिया गया और पाकिस्तानी गीत बन गया....[[हम लाये हैं तूफ़ान से |हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस मुल्क़ को रखना मेरे बच्चों संभाल के]]..। कुछ इसी तरह ‘[[दे दी हमें आज़ादी|दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल]]’ की जगह पाकिस्तानी गाना बन गया..... यूँ दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ऐ क़ायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान। | आज़ादी के बाद [[1954]] में उन्होंने फ़िल्म 'जागृति' में राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]] के जीवन दर्शन को बख़ूबी फ़िल्म के गानों में उतारा। इसे लेखनी का ही कमाल कहेंगे कि जब [[पाकिस्तान]] में फ़िल्म 'जागृति' की रीमेक बेदारी बनाई गई तो जो बस देश की जगह मुल्क कर दिया गया और पाकिस्तानी गीत बन गया....[[हम लाये हैं तूफ़ान से |हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस मुल्क़ को रखना मेरे बच्चों संभाल के]]..। कुछ इसी तरह ‘[[दे दी हमें आज़ादी|दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल]]’ की जगह पाकिस्तानी गाना बन गया..... यूँ दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ऐ क़ायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान। | ||
ऐसे ही था बेदारी का ये पाकिस्तानी गाना....आओ बच्चे सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की, जिसकी खातिर हमने दी क़ुर्बानी लाखों जान की। ये गाना असल में था आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की...<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2008/12/printable/081211_kavi_pradeep.shtml |title=कवि प्रदीप: सिनेमा से आम जन तक पहुँचे |accessmonthday=30 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=बीबीसी हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref> | ऐसे ही था बेदारी का ये पाकिस्तानी गाना....आओ बच्चे सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की, जिसकी खातिर हमने दी क़ुर्बानी लाखों जान की। ये गाना असल में था आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की...<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2008/12/printable/081211_kavi_pradeep.shtml |title=कवि प्रदीप: सिनेमा से आम जन तक पहुँचे |accessmonthday=30 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=बीबीसी हिन्दी |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==प्रमुख गीत== | ==प्रमुख गीत== | ||
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* [[ऐ मेरे वतन के लोगो]] | * [[ऐ मेरे वतन के लोगो]] | ||
* "[[दे दी हमें आज़ादी|साबरमती के संत]]" (जाग्रति) | |||
* "[[हम लाये हैं तूफ़ान से]]" (जाग्रति) | |||
* "[[आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ]]" (जाग्रति) | |||
* "चल अकेला चल अकेला" (संबंध) | * "चल अकेला चल अकेला" (संबंध) | ||
* "चल चल रे नौजवान" (बंधन) | * "चल चल रे नौजवान" (बंधन) | ||
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* "कितना बदल गया इंसान" (नास्तिक) | * "कितना बदल गया इंसान" (नास्तिक) | ||
* "चलो चलें माँ" (जाग्रति) | * "चलो चलें माँ" (जाग्रति) | ||
* "तेरे द्वार खड़ा भगवान" (वामन अवतार) | * "तेरे द्वार खड़ा भगवान" (वामन अवतार) | ||
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* "पिंजरे के पंछी रे" (नागमणि) | * "पिंजरे के पंछी रे" (नागमणि) | ||
* "कोई लाख करे चतुराई" (चंडी पूजा) | * "कोई लाख करे चतुराई" (चंडी पूजा) | ||
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* "ओ दिलदार बोलो एक बार" (स्कूल मास्टर) | * "ओ दिलदार बोलो एक बार" (स्कूल मास्टर) | ||
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* "मैं तो आरती उतारूँ" (जय संतोषी माँ) | * "मैं तो आरती उतारूँ" (जय संतोषी माँ) | ||
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==सम्मान और पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
फ़िल्मों में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1998 में [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] भी दिया गया। उनका हर फ़िल्मी-ग़ैर फ़िल्मी गीत अर्थपूर्ण होता था और जीवन को कोई न कोई दर्शन समझा जाता था। | फ़िल्मों में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें [[1998]] में [[दादा साहब फाल्के पुरस्कार]] भी दिया गया। उनका हर फ़िल्मी-ग़ैर फ़िल्मी गीत अर्थपूर्ण होता था और जीवन को कोई न कोई दर्शन समझा जाता था। | ||
==निधन== | ==निधन== | ||
[[11 दिसंबर]] [[1998]] को सबको अकेला छोड़ कवि प्रदीप अनंत यात्रा पर निकल गए। | [[11 दिसंबर]] [[1998]] को सबको अकेला छोड़ कवि प्रदीप अनंत यात्रा पर निकल गए। |
13:30, 2 फ़रवरी 2013 का अवतरण
कवि प्रदीप
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पूरा नाम | रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी |
प्रसिद्ध नाम | कवि प्रदीप |
जन्म | 6 फ़रवरी 1915 |
जन्म भूमि | उज्जैन, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 11 दिसंबर 1998 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | कवि, गीतकार, गायक |
मुख्य रचनाएँ | ऐ मेरे वतन के लोगो, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ, दे दी हमें आज़ादी, हम लाये हैं तूफ़ान से आदि |
विषय | देशप्रेम, भक्ति |
शिक्षा | स्नातक |
पुरस्कार-उपाधि | दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1998), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1961) |
नागरिकता | भारतीय |
प्रदीप (अंग्रेज़ी:Pradeep, जन्म: 6 फ़रवरी 1915 - मृत्यु: 11 दिसंबर 1998) का मूल नाम रामचंद्र द्विवेदी था। प्रदीप हिंदी साहित्य जगत और हिंदी फ़िल्म जगत के एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे। कवि प्रदीप 'ऐ मेरे वतन के लोगों' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। भारत रत्न सम्मानित स्वर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान में सीधा प्रसारण किया गया था।
जीवन परिचय
6 फ़रवरी, 1915 में मध्य प्रदेश में जन्मे प्रदीप का असल नाम रामचंद्र द्विवेदी था। किशोरावस्था में ही उन्हें लेखन और कविता का शौक लगा। कवि सम्मेलनों में वे ख़ूब दाद बटोरा करते थे। कविता तो आमतौर पर हर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी करता ही है, परंतु रामचंद्र द्विवेदी की कविता केवल कुछ क्षणों का शौक या समय बिताने का साधन नहीं थी, वह उनकी सांस-सांस में बसी थी, उनका जीवन थी। इसीलिए अध्यापन छोड़कर वे कविता की सरंचना में व्यस्त हो गए।
कवि प्रदीप
कवि सम्मेलनों में सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजी जैसे महान साहित्यिक को प्रभावित कर सकने की क्षमता थी रामचंद्र द्विवेदी में। उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र `प्रदीप' कहलाने लगे। उस जमाने में अभिनेता प्रदीप कुमार बहुत लोकप्रिय थे और अक्सर आम लोग प्रदीप कहे जाने वाले रामचंद्र द्विवेदी की जगह प्रदीप कुमार के बारे में सोचने-समझने लगते थे। अंतत: पंडित रामचंद्र द्विवेदी ने अपना उपनाम `कवि प्रदीप' रख लिया, ताकि अभिनेता प्रदीप कुमार और गीतकार प्रदीप में अंतर आसानी से लोगों की समझ में आ जाए। कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे और उनकी मधुर आवाज का सदुपयोग अनेक संगीत निर्देशकों ने अलग-अलग समय पर किया।
फ़िल्मी सफर
पहली ही फ़िल्म में कवि प्रदीप को गीतकार के साथ-साथ गायक के रूप में भी लिया गया था, परंतु गायक के रूप में उनकी लोकप्रियता का माध्यम बना `जागृति' फ़िल्म का गीत जिसके बोल हैं - आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की संगीत निर्देशक हेमंत कुमार, सी. रामचंद्र, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल आदि ने समय-समय पर कवि प्रदीप के लिखे कुछ गीतों का उन्हीं की आवाज में रिकॉर्ड किया। `पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय', `टूट गई है माला मोती बिखर गए', कोई लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे न रे भाई', जैसा भावना प्रधान गीतों को बहुत आकर्षक अंदाज में गाकर कवि प्रदीप ने फ़िल्म जगत के गायकों में। अपना अलग ही महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था, एक गीत यद्यपि कवि प्रदीप ने स्वयं गाया नहीं था, लेकिन उनकी लिखी इस रचना ने ब्रिटिश शासकों को हिला दिया था, जिसके बोल हैं- आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है। ब्रिटिश अधिकारी ढूंढ़ने लगे कवि प्रदीप को। जब उनके कुछ मित्रों को पता चला कि ब्रिटिश शासक कवि प्रदीप को पकड़कर कड़ी सजा देना चाहते हैं तो उन्हें कवि प्रदीप की जान खतरे में नजर आने लगी। मित्रों और शुभचिंतकों के दबाव में कवि प्रदीप को भूमिगत हो जाना पड़ा।[1]
लेखनी का कमाल
आज़ादी के बाद 1954 में उन्होंने फ़िल्म 'जागृति' में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को बख़ूबी फ़िल्म के गानों में उतारा। इसे लेखनी का ही कमाल कहेंगे कि जब पाकिस्तान में फ़िल्म 'जागृति' की रीमेक बेदारी बनाई गई तो जो बस देश की जगह मुल्क कर दिया गया और पाकिस्तानी गीत बन गया....हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस मुल्क़ को रखना मेरे बच्चों संभाल के..। कुछ इसी तरह ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ की जगह पाकिस्तानी गाना बन गया..... यूँ दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ऐ क़ायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान। ऐसे ही था बेदारी का ये पाकिस्तानी गाना....आओ बच्चे सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की, जिसकी खातिर हमने दी क़ुर्बानी लाखों जान की। ये गाना असल में था आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की...[2]
प्रमुख गीत
- ऐ मेरे वतन के लोगो
- "साबरमती के संत" (जाग्रति)
- "हम लाये हैं तूफ़ान से" (जाग्रति)
- "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ" (जाग्रति)
- "चल अकेला चल अकेला" (संबंध)
- "चल चल रे नौजवान" (बंधन)
- "चने जोर गरम बाबू" (बंधन)
- "दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है" (किस्मत)
- "कितना बदल गया इंसान" (नास्तिक)
- "चलो चलें माँ" (जाग्रति)
- "तेरे द्वार खड़ा भगवान" (वामन अवतार)
- "दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले" (दशहरा)
- "पिंजरे के पंछी रे" (नागमणि)
- "कोई लाख करे चतुराई" (चंडी पूजा)
- "इंसान का इंसान से हो भाईचारा" (पैग़ाम)
- "ओ दिलदार बोलो एक बार" (स्कूल मास्टर)
- "हाय रे संजोग क्या घडी दिखलाई" (कभी धूप कभी छाँव)
- "चल मुसाफिर चल" (कभी धूप कभी छाँव)
- "मारने वाला है भगवन बचाने वाला है भगवन" (हरिदर्शन)
- "मैं तो आरती उतारूँ" (जय संतोषी माँ)
- "यहाँ वहां जहाँ तहां" (जय संतोषी माँ)
सम्मान और पुरस्कार
फ़िल्मों में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1998 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी दिया गया। उनका हर फ़िल्मी-ग़ैर फ़िल्मी गीत अर्थपूर्ण होता था और जीवन को कोई न कोई दर्शन समझा जाता था।
निधन
11 दिसंबर 1998 को सबको अकेला छोड़ कवि प्रदीप अनंत यात्रा पर निकल गए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कई सदियों तक गूंजेंगे प्रदीप के गीत (हिन्दी) (पी.एच.पी) हिन्दी मीडिया इन। अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2012।
- ↑ कवि प्रदीप: सिनेमा से आम जन तक पहुँचे (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) बीबीसी हिन्दी। अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2012।
- ↑ Odeon (a company of the EMI group)
बाहरी कड़ियाँ
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