"सिंहासन बत्तीसी छ:": अवतरणों में अंतर
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एक दिन राजा विक्रमादित्य अपनी सभा में बैठा हुआ था कि एक ब्राह्मण आया। उसने बताया कि उत्तर में एक जगंल है। उसमें एक पहाड़ है। उसके आगे एक तालाब है, जिसमें स्फटिक का एक खंभा है। जब सूरज निकलता है तब वह भी बढ़ता जाता है। दोपहर को वह खंभा सूरज के रथ के बराबर पहुंच जाता है। दोपहर बाद जब सूरज के छिपने के साथ वह भी पानी में लोप हो जाता है। | [[सिंहासन बत्तीसी]] एक [[लोककथा]] संग्रह है। [[विक्रमादित्य|महाराजा विक्रमादित्य]] भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर [[प्रकाश]] डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं। | ||
==सिंहासन बत्तीसी छ:== | |||
यह सुनकर राजा को बड़ा अचंभा हुआ। ब्राह्मण के चले जाने पर उसने दोनों वीरों को बुलाया और ब्राह्मण की बताई सब बात सुनाकर कहा कि मुझे उस तालाब पर ले चलो। | <poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:16px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | ||
एक दिन राजा विक्रमादित्य अपनी सभा में बैठा हुआ था कि एक [[ब्राह्मण]] आया। उसने बताया कि उत्तर में एक जगंल है। उसमें एक पहाड़ है। उसके आगे एक तालाब है, जिसमें स्फटिक का एक खंभा है। जब [[सूर्य|सूरज]] निकलता है तब वह भी बढ़ता जाता है। दोपहर को वह खंभा सूरज के रथ के बराबर पहुंच जाता है। दोपहर बाद जब सूरज के छिपने के साथ वह भी पानी में लोप हो जाता है। यह सुनकर राजा को बड़ा अचंभा हुआ। ब्राह्मण के चले जाने पर उसने दोनों वीरों को बुलाया और ब्राह्मण की बताई सब बात सुनाकर कहा कि मुझे उस तालाब पर ले चलो। | |||
वीरों ने बात | वीरों ने बात की बाद में उसे वहां पहुंचा दिया। राजा देखता क्या है कि तालाब का चारों ओर से पक्का घाट बना है। और उसके पानी में हंस, मुर्गाबियां, चकोर, पनडुब्बी किलोल कर रही हैं। राजा बहुत खुश हुआ। इतने में सूरज निकला। खंभा दिखाई देने लगा। राजा ने वीरों से कहा कि मुझे खंभे पर बिठा दो। उन्होंने बिठा दिया। अब खंभा ऊंचा होने लगा। ज्यों ज्यों वह सूरज के रथ के बराबर पहुंचा, राजा को गर्मी लगने लगी। जब वह सूरज के रथ के बराबर पहुंचा, राजा जलकर अंगारा हो गया। सूरज के रथवान ने यह देखा तो रथ को रोक लिया। सूरज ने झांका तो उसे जला हुआ आदमी दिखाई दिया। उसने सोचा कि जब तक मरा हुआ आदमी पड़ा है, तब तक मैं भोजन कैसे करुं। उसने अमृत लेकर राजा पर छिड़का। राजा जी उठा। उसने सूरज को प्रणाम किया। सूरज ने पूछा तो उसने बता दिया कि मेरा नाम विक्रमादित्य है। सूरज ने अपना कुण्डल उतारकर राजा को दिया और उसे विदा किया। | ||
राजा अपने नगर में लौटा। रास्ते में उसे एक गुसाईं मिला। | |||
राजा अपने नगर में लौटा। रास्ते में उसे एक | |||
''उसने कहा:'' हे राजा! यह कुण्डल मुझे दे दो। राजा ने हंसकर वह कुण्डल उसे दे दिया और अपने घर चला आया। | ''उसने कहा:'' हे राजा! यह कुण्डल मुझे दे दो। राजा ने हंसकर वह कुण्डल उसे दे दिया और अपने घर चला आया। | ||
''इतना कहकर कामकंदला बोली:'' तुम ऐसे हो तो सिंहासन पर बैठो। | ''इतना कहकर कामकंदला बोली:'' तुम ऐसे हो तो सिंहासन पर बैठो। | ||
राजा बड़ा गुस्सा हुआ। उसने मन-ही-मन कहा, "कुछ भी हो, मैं कल सिंहासन पर जरुर बैठूंगा।" | राजा बड़ा गुस्सा हुआ। उसने मन-ही-मन कहा, "कुछ भी हो, मैं कल सिंहासन पर जरुर बैठूंगा।" | ||
अगले दिन जब वह ऐसा करने लगा तो कोमुदी नाम की सातवीं पुतली बोली! | अगले दिन जब वह ऐसा करने लगा तो कोमुदी नाम की सातवीं पुतली बोली! | ||
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09:33, 25 फ़रवरी 2013 का अवतरण
सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
सिंहासन बत्तीसी छ:
एक दिन राजा विक्रमादित्य अपनी सभा में बैठा हुआ था कि एक ब्राह्मण आया। उसने बताया कि उत्तर में एक जगंल है। उसमें एक पहाड़ है। उसके आगे एक तालाब है, जिसमें स्फटिक का एक खंभा है। जब सूरज निकलता है तब वह भी बढ़ता जाता है। दोपहर को वह खंभा सूरज के रथ के बराबर पहुंच जाता है। दोपहर बाद जब सूरज के छिपने के साथ वह भी पानी में लोप हो जाता है। यह सुनकर राजा को बड़ा अचंभा हुआ। ब्राह्मण के चले जाने पर उसने दोनों वीरों को बुलाया और ब्राह्मण की बताई सब बात सुनाकर कहा कि मुझे उस तालाब पर ले चलो।
वीरों ने बात की बाद में उसे वहां पहुंचा दिया। राजा देखता क्या है कि तालाब का चारों ओर से पक्का घाट बना है। और उसके पानी में हंस, मुर्गाबियां, चकोर, पनडुब्बी किलोल कर रही हैं। राजा बहुत खुश हुआ। इतने में सूरज निकला। खंभा दिखाई देने लगा। राजा ने वीरों से कहा कि मुझे खंभे पर बिठा दो। उन्होंने बिठा दिया। अब खंभा ऊंचा होने लगा। ज्यों ज्यों वह सूरज के रथ के बराबर पहुंचा, राजा को गर्मी लगने लगी। जब वह सूरज के रथ के बराबर पहुंचा, राजा जलकर अंगारा हो गया। सूरज के रथवान ने यह देखा तो रथ को रोक लिया। सूरज ने झांका तो उसे जला हुआ आदमी दिखाई दिया। उसने सोचा कि जब तक मरा हुआ आदमी पड़ा है, तब तक मैं भोजन कैसे करुं। उसने अमृत लेकर राजा पर छिड़का। राजा जी उठा। उसने सूरज को प्रणाम किया। सूरज ने पूछा तो उसने बता दिया कि मेरा नाम विक्रमादित्य है। सूरज ने अपना कुण्डल उतारकर राजा को दिया और उसे विदा किया।
राजा अपने नगर में लौटा। रास्ते में उसे एक गुसाईं मिला।
उसने कहा: हे राजा! यह कुण्डल मुझे दे दो। राजा ने हंसकर वह कुण्डल उसे दे दिया और अपने घर चला आया।
इतना कहकर कामकंदला बोली: तुम ऐसे हो तो सिंहासन पर बैठो।
राजा बड़ा गुस्सा हुआ। उसने मन-ही-मन कहा, "कुछ भी हो, मैं कल सिंहासन पर जरुर बैठूंगा।"
अगले दिन जब वह ऐसा करने लगा तो कोमुदी नाम की सातवीं पुतली बोली!
"जरा मेरी बात सुन लो, तब सिंहासन पर बैठना।"
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