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[[वेताल पच्चीसी]] पच्चीस कथाओं से युक्त एक [[लोककथा]] ग्रन्थ संग्रह है। ये कथायें [[राजा विक्रम]] की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। [[वेताल]] प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता। | |||
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उज्जैन में महाबल नाम का एक राजा रहता था। उसके हरिदास नाम का एक दूत था जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी। इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया। | <poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:16px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | ||
[[उज्जैन]] में महाबल नाम का एक राजा रहता था। उसके हरिदास नाम का एक दूत था जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी। इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक [[ब्राह्मण]] हरिदास के पास आया। | |||
''बोला:'' तुम अपनी लड़की मुझे दे दो। | ''बोला:'' तुम अपनी लड़की मुझे दे दो। | ||
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राजा का इतना कहना था कि वेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा फिर उसे लेकर आया तो रास्ते में वेताल ने छठी कहानी सुनायी। | राजा का इतना कहना था कि वेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा फिर उसे लेकर आया तो रास्ते में वेताल ने छठी कहानी सुनायी। | ||
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16:50, 26 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण
वेताल पच्चीसी पच्चीस कथाओं से युक्त एक लोककथा ग्रन्थ संग्रह है। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। वेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।
पाँचवी कहानी
उज्जैन में महाबल नाम का एक राजा रहता था। उसके हरिदास नाम का एक दूत था जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी। इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया।
बोला: तुम अपनी लड़की मुझे दे दो।
हरिदास ने कहाँ: मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जिसमें सब गुण होंगे।
ब्राह्मण ने कहा: मेरे पास एक ऐसा रथ है, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो, घड़ी-भर में पहुँच जाओगे।
हरिदास बोला: ठीक है। सबेरे उसे ले आना।
अगले दिन दोनों रथ पर बैठकर उज्जैन आ पहुँचे। दैवयोग से पहले हरिदास का लड़का अपनी बहन को किसी दूसरे को और हरिदास की स्त्री अपनी लड़की को किसी तीसरे को देने का वादा कर चुकी थी। इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गये। हरिदास सोचने लगा कि कन्या एक है, वह तीन हैं। क्या करे! इसी बीच एक राक्षस आया और कन्या को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले गया। तीनों वरों में एक ज्ञानी था। हरिदास ने उससे पूछा तो उसने बता दिया कि एक राक्षस लड़की को उड़ा ले गया है और वह विंध्याचल पहाड़ पर है।
दूसरे ने कहा: मेरे रथ पर बैठकर चलो। ज़रा सी देरी में वहाँ पहुँच जायेंगे।
तीसरा बोला: मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ। राक्षस को मार गिराऊँगा।
वे सब रथ पर चढ़कर विंध्याचल पहुँचे और राक्षस को मारकर लड़की को बचा जाये।
इतना कहकर वेताल बोला: हे राजन्! बताओ, वह लड़की उन तीनों में से किसको मिलनी चाहिए?
राजा ने कहा: जिसने राक्षस को मारा, उसको मिलनी चाहिए, क्योंकि असली वीरता तो उसी ने दिखाई। बाकी दो ने तो मदद की।
राजा का इतना कहना था कि वेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा फिर उसे लेकर आया तो रास्ते में वेताल ने छठी कहानी सुनायी।
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