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[[वेताल पच्चीसी]] पच्चीस कथाओं से युक्त एक [[लोककथा]] ग्रन्थ संग्रह है। ये कथायें [[राजा विक्रम]] की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। [[वेताल]] प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता। | |||
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अंग देश के एक गाँव में एक धनी ब्राह्मण रहता था। उसके तीन पुत्र थे। एक बार ब्राह्मण ने एक यज्ञ करना चाहा। उसके लिए एक कछुए की जरूरत हुई। उसने तीनों भाइयों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों समुद्र पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक कछुआ मिल गया। | <poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:16px; border:1px solid #003333; border-radius:5px"> | ||
अंग देश के एक गाँव में एक धनी [[ब्राह्मण]] रहता था। उसके तीन पुत्र थे। एक बार ब्राह्मण ने एक यज्ञ करना चाहा। उसके लिए एक कछुए की जरूरत हुई। उसने तीनों भाइयों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों समुद्र पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक कछुआ मिल गया। | |||
''बड़े ने कहा:'' मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए कछुए को नहीं छुऊँगा। | ''बड़े ने कहा:'' मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए कछुए को नहीं छुऊँगा। | ||
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इतना सुनते ही वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा लौटकर वहाँ गया और उसे लेकर लौटा तो उसने यह कहानी कही।<br> | इतना सुनते ही वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा लौटकर वहाँ गया और उसे लेकर लौटा तो उसने यह कहानी कही।<br> | ||
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17:01, 26 फ़रवरी 2013 का अवतरण
वेताल पच्चीसी पच्चीस कथाओं से युक्त एक लोककथा ग्रन्थ संग्रह है। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। वेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।
आठवीं कहानी
अंग देश के एक गाँव में एक धनी ब्राह्मण रहता था। उसके तीन पुत्र थे। एक बार ब्राह्मण ने एक यज्ञ करना चाहा। उसके लिए एक कछुए की जरूरत हुई। उसने तीनों भाइयों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों समुद्र पर पहुँचे। वहाँ उन्हें एक कछुआ मिल गया।
बड़े ने कहा: मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए कछुए को नहीं छुऊँगा।
मझला बोला: मैं नारीचंग हूँ, इसलिए मैं नहीं ले जाऊँगा।
सबसे छोटा बोला: मैं शैयाचंग हूँ, सो मैं नहीं ले जाऊँगा।
वे तीनों इस बहस में पड़ गये कि उनमें कौन बढ़कर है। जब वे आपस में इसका फैसला न कर सके तो राजा के पास पहुँचे।
राजा ने कहा: आप लोग रुकें। मैं तीनों की अलग-अलग जाँच करूँगा।
इसके बाद राजा ने बढ़िया भोजन तैयार कराया और तीनों खाने बैठे।
सबसे बड़े ने कहा: मैं खाना नहीं खाऊँगा। इसमें मुर्दे की गन्ध आती है। वह उठकर चला। राजा ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन श्मशान के पास के खेत का बना था।
राजा ने कहा: तुम सचमुच भोजनचंग हो, तुम्हें भोजन की पहचान है।
रात के समय राजा ने एक सुन्दर वेश्या को मझले भाई के पास भेजा। ज्यों ही वह वहाँ पहुँची कि मझले भाई ने कहा, "इसे हटाओ यहाँ से। इसके शरीर से बकरी के दूध की गंध आती है।
राजा ने यह सुनकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह वेश्या बचपन में बकरी के दूध पर पली थी।
राजा बड़ा खुश हुआ और बोला: तुम सचमुच नारीचंग हो।
इसके बाद उसने तीसरे भाई को सोने के लिए सात गद्दों का पलंग दिया। जैसे ही वह उस पर लेटा कि एकदम चीखकर उठ बैठा। लोगों ने देखा, उसकी पीठ पर एक लाल रेखा खींची थी। राजा को ख़बर मिली तो उसने बिछौने को दिखवाया। सात गद्दों के नीचे उसमें एक बाल निकला। उसी से उसकी पीठ पर लाल लकीर हो गयी थीं।
राजा को बड़ा अचरज हुआ उसने तीनों को एक-एक लाख अशर्फियाँ दीं। अब वे तीनों कछुए को ले जाना भूल गये, वहीं आनन्द से रहने लगे।
इतना कहकर वेताल बोला: हे राजा! तुम बताओ, उन तीनों में से बढ़कर कौन था?
राजा ने कहा: मेरे विचार से सबसे बढ़कर शैयाचंग था, क्योंकि उसकी पीठ पर बाल का निशान दिखाई दिया और ढूँढ़ने पर बिस्तर में बाल पाया भी गया। बाकी दो के बारे में तो यह कहा जा सकता है कि उन्होंने किसी से पूछकर जान लिया होगा।
इतना सुनते ही वेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा लौटकर वहाँ गया और उसे लेकर लौटा तो उसने यह कहानी कही।
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