"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/1": अवतरणों में अंतर

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-[[विष्णु शर्मा]]
-[[विष्णु शर्मा]]
||[[चित्र:Dr. Shyam Sunder Das.jpg|right|100px|श्यामसुन्दर दास]]श्यामसुन्दर दास जी की प्रारम्भ से ही [[हिन्दी]] के प्रति अनन्य निष्ठा थी। उन्होंने '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]' की स्थापना [[16 जुलाई]], सन [[1893]] ई. को अपने विद्यार्थी काल में ही दो सहयोगियों रामनारायण मिश्र और [[ठाकुर शिव कुमार सिंह]] की सहायता से की थी। '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' में आने के पूर्व इन्होंने [[हिन्दी साहित्य]] की सर्वतोमुखी समृद्धि के लिए न्यायालयों में हिन्दी प्रवेश का आन्दोलन ([[1900]] ई.), हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज ([[1899]] ई.), '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती पत्रिका]]' का सम्पादन ([[1900]] ई.), प्राचीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन और सभा-भवन का निर्माण ([[1902]] ई.), आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना ([[1903]] ई.) तथा शिक्षास्तर के अनुरूप पाठ्य पुस्तकों का निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्यामसुन्दर दास]]
||[[चित्र:Dr. Shyam Sunder Das.jpg|right|100px|श्यामसुन्दर दास]]श्यामसुन्दर दास जी की प्रारम्भ से ही [[हिन्दी]] के प्रति अनन्य निष्ठा थी। उन्होंने '[[नागरी प्रचारिणी सभा]]' की स्थापना [[16 जुलाई]], सन [[1893]] ई. को अपने विद्यार्थी काल में ही दो सहयोगियों रामनारायण मिश्र और [[ठाकुर शिव कुमार सिंह]] की सहायता से की थी। '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' में आने के पूर्व इन्होंने [[हिन्दी साहित्य]] की सर्वतोमुखी समृद्धि के लिए न्यायालयों में हिन्दी प्रवेश का आन्दोलन ([[1900]] ई.), हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज ([[1899]] ई.), '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती पत्रिका]]' का सम्पादन ([[1900]] ई.), प्राचीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का सम्पादन और सभा-भवन का निर्माण ([[1902]] ई.), आर्य भाषा पुस्तकालय की स्थापना ([[1903]] ई.) तथा शिक्षास्तर के अनुरूप पाठ्य पुस्तकों का निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्यामसुन्दर दास]]
{'अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ' की स्थापना किसने की है? (पृ.सं. 9
|type="()"}
+भारत सरकार
-हरियाणा सरकार
-मॉरिशस सरकार
-श्रीलंका सरकार


{'अशुभ बेला' रचना किसकी है? (पृ.सं. 3
{'अशुभ बेला' रचना किसकी है? (पृ.सं. 3
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+[[दक्षिण भारत]] व्यापारिक केंद्र था, जिससे धर्मावलम्बी वहाँ आकर बसे।
+[[दक्षिण भारत]] व्यापारिक केंद्र था, जिससे धर्मावलम्बी वहाँ आकर बसे।
-[[भारत]] के इस क्षेत्र में [[हिन्दू]] अधिक थे।
-[[भारत]] के इस क्षेत्र में [[हिन्दू]] अधिक थे।
||[[चित्र:Kabirdas.jpg|right|100px|कबीरदास]][[मध्य काल]] में '[[भक्ति आन्दोलन]]' की शुरुआत सर्वप्रथम [[दक्षिण भारत]] के अलवार [[भक्त|भक्तों]] द्वारा की गई। दक्षिण भारत से [[उत्तर भारत]] में बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में [[रामानन्द]] द्वारा यह आन्दोलन लाया गया। 'भक्ति आन्दोलन' का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था- "[[हिन्दू धर्म]] एवं समाज में सुधार तथा [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] एवं हिन्दू धर्म में समन्वय स्थापित करना। 14वीं एवं 15वीं शताब्दी में 'भक्ति आन्दोलन' का नेतृत्व [[कबीरदास]] के हाथों में था। इस समय [[रामानन्द]], [[नामदेव]], [[कबीर]], [[नानक देव, गुरु|नानक]], [[दादू दयाल|दादू]], [[रविदास]], [[तुलसीदास]] एवं [[चैतन्य महाप्रभु]] जैसे लोगों के हाथ में इस आन्दोलन की बागडोर थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भक्ति आंदोलन]]
||[[चित्र:Kabirdas.jpg|right|80px|कबीरदास]][[मध्य काल]] में '[[भक्ति आन्दोलन]]' की शुरुआत सर्वप्रथम [[दक्षिण भारत]] के अलवार [[भक्त|भक्तों]] द्वारा की गई। दक्षिण भारत से [[उत्तर भारत]] में बारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में [[रामानन्द]] द्वारा यह आन्दोलन लाया गया। 'भक्ति आन्दोलन' का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था- "[[हिन्दू धर्म]] एवं समाज में सुधार तथा [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]] एवं हिन्दू धर्म में समन्वय स्थापित करना। 14वीं एवं 15वीं शताब्दी में 'भक्ति आन्दोलन' का नेतृत्व [[कबीरदास]] के हाथों में था। इस समय [[रामानन्द]], [[नामदेव]], [[कबीर]], [[नानक देव, गुरु|नानक]], [[दादू दयाल|दादू]], [[रविदास]], [[तुलसीदास]] एवं [[चैतन्य महाप्रभु]] जैसे लोगों के हाथ में इस आन्दोलन की बागडोर थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भक्ति आंदोलन]]


{'[[कामायनी -प्रसाद|कामायनी]]' को फैंटसी किस विद्वान ने कहा है? (पृ.सं. 9
{'[[कामायनी -प्रसाद|कामायनी]]' को फैंटसी किस विद्वान ने कहा है? (पृ.सं. 9
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-[[बालकृष्ण शर्मा नवीन]]
-[[बालकृष्ण शर्मा नवीन]]
-[[सुमित्रानंदन पंत]]
-[[सुमित्रानंदन पंत]]
||[[चित्र:Gajanan-Madhav-Muktibodh.jpg|right|100px|गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की प्रसिद्धि प्रगतिशील [[कवि]] के रूप में है। मुक्तिबोध [[हिन्दी साहित्य]] की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व थे। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']] कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उनकी आलोचना उनके कवि व्यक्तित्व से ही नि:सृत और परिभाषित होती है। [[उज्जैन]] में मुक्तिबोध ने 'मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ' की बुनियाद डाली थी। इसकी विशिष्ट सभाओं में भाग लेने के लिए वह बाहर से [[रामविलास शर्मा|डॉ. रामविलास शर्मा]], [[अमृतराय]] आदि साहित्यिक विचारकों को भी बुलाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]
||[[चित्र:Gajanan-Madhav-Muktibodh.jpg|right|80px|गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]गजानन माधव 'मुक्तिबोध' की प्रसिद्धि प्रगतिशील [[कवि]] के रूप में है। मुक्तिबोध [[हिन्दी साहित्य]] की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व थे। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']] कहानीकार भी थे और समीक्षक भी। उनकी आलोचना उनके कवि व्यक्तित्व से ही नि:सृत और परिभाषित होती है। [[उज्जैन]] में मुक्तिबोध ने 'मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ' की बुनियाद डाली थी। इसकी विशिष्ट सभाओं में भाग लेने के लिए वह बाहर से [[रामविलास शर्मा|डॉ. रामविलास शर्मा]], [[अमृतराय]] आदि साहित्यिक विचारकों को भी बुलाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]
 
{'अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ' की स्थापना किसने की है? (पृ.सं. 9
|type="()"}
+भारत सरकार
-हरियाणा सरकार
-मॉरिशस सरकार
-श्रीलंका सरकार


{[[कबीर]] को 'वाणी का डिक्टेटर' किसने कहा है? (पृ.सं. 17
{[[कबीर]] को 'वाणी का डिक्टेटर' किसने कहा है? (पृ.सं. 17
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+[[राहुल सांकृत्यायन]]
+[[राहुल सांकृत्यायन]]
-[[अमृता प्रीतम]]
-[[अमृता प्रीतम]]
||[[चित्र:Rahul Sankrityayan.JPG|right|100px|राहुल सांकृत्यायन]]राहुल सांकृत्यायन को 'हिन्दी यात्रा साहित्य का जनक' माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। [[राहुल सांकृत्यायन]] ने [[हिन्दी साहित्य]] के अतिरिक्त [[धर्म]], [[दर्शन]], लोक-साहित्य, यात्रा-साहित्य, जीवनी, राजनीति, [[इतिहास]], [[संस्कृत]] के ग्रन्थों की [[टीका]] और अनुवाद, कोश, तिब्बती भाषा एवं बालपोथी सम्पादन आदि विषयों पर पूरे अधिकार के साथ लिखा है। [[हिन्दी भाषा]] और [[साहित्य]] के क्षेत्र में राहुल जी ने 'अपभ्रंश काव्य साहित्य', 'दक्खिनी हिन्दी साहित्य' आदि हिन्दी की कहानियाँ प्रस्तुत कर लुप्त प्राय निधि का उद्धार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राहुल सांकृत्यायन]]
||[[चित्र:Rahul Sankrityayan.JPG|right|80px|राहुल सांकृत्यायन]]राहुल सांकृत्यायन को 'हिन्दी यात्रा साहित्य का जनक' माना जाता है। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद थे और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। [[राहुल सांकृत्यायन]] ने [[हिन्दी साहित्य]] के अतिरिक्त [[धर्म]], [[दर्शन]], लोक-साहित्य, यात्रा-साहित्य, जीवनी, राजनीति, [[इतिहास]], [[संस्कृत]] के ग्रन्थों की [[टीका]] और अनुवाद, कोश, तिब्बती भाषा एवं बालपोथी सम्पादन आदि विषयों पर पूरे अधिकार के साथ लिखा है। [[हिन्दी भाषा]] और [[साहित्य]] के क्षेत्र में राहुल जी ने 'अपभ्रंश काव्य साहित्य', 'दक्खिनी हिन्दी साहित्य' आदि हिन्दी की कहानियाँ प्रस्तुत कर लुप्त प्राय निधि का उद्धार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राहुल सांकृत्यायन]]


{[[हिन्दी भाषा]] को लिखने के लिए कौन-सी [[लिपि]] प्रयोग की जाती है? (पृ.सं. 9
{[[हिन्दी भाषा]] को लिखने के लिए कौन-सी [[लिपि]] प्रयोग की जाती है? (पृ.सं. 9
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-[[महादेवी वर्मा]]
-[[महादेवी वर्मा]]
||[[चित्र:Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg|right|100px|सुभद्रा कुमारी चौहान]]सुभद्रा कुमारी चौहान की [[कविता|कविताओं]] में [[भाषा]] का ऐसा ऋजु प्रवाह और सामजस्य मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता [[सुभद्रा कुमारी चौहान]] के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। आपकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी [[ऊर्जा]] और जोश से भर सकता है। '''वीरों का कैसा हो वसन्त''' उनकी एक ओर प्रसिद्ध देश-प्रेम की कविता है, जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी। 'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झाँसी की रानी की समाधि पर', 'जलियाँ वाले बाग़ में बसन्त' आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएँ हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुभद्रा कुमारी चौहान]]
||[[चित्र:Subhadra-Kumari-Chauhan.jpg|right|100px|सुभद्रा कुमारी चौहान]]सुभद्रा कुमारी चौहान की [[कविता|कविताओं]] में [[भाषा]] का ऐसा ऋजु प्रवाह और सामजस्य मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं। कथनी-करनी की समानता [[सुभद्रा कुमारी चौहान]] के व्यक्तित्व का प्रमुख अंग है। आपकी रचनाएँ सुनकर मरणासन्न व्यक्ति भी [[ऊर्जा]] और जोश से भर सकता है। '''वीरों का कैसा हो वसन्त''' उनकी एक ओर प्रसिद्ध देश-प्रेम की कविता है, जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी। 'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झाँसी की रानी की समाधि पर', 'जलियाँ वाले बाग़ में बसन्त' आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएँ हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुभद्रा कुमारी चौहान]]
{भाषा विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते हैं? (पृ.सं. 9
|type="()"}
-[[हिन्दी भाषा]] का अध्ययन
-भाषा के स्वरूप का अध्ययन
+[[भाषा]] तत्वों का अध्ययन
-भाषा परिवार का अध्ययन


{'गोस्वामी कृष्ण शरण' [[जयशंकर प्रसाद]] के किस [[उपन्यास]] का महत्त्वपूर्ण पात्र है? (पृ.सं. 3
{'गोस्वामी कृष्ण शरण' [[जयशंकर प्रसाद]] के किस [[उपन्यास]] का महत्त्वपूर्ण पात्र है? (पृ.सं. 3
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-[[इरावती -प्रसाद|इरावती]]
-[[इरावती -प्रसाद|इरावती]]
-[[कामायनी -प्रसाद|कामायनी]]
-[[कामायनी -प्रसाद|कामायनी]]
||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|100px|जयशंकर प्रसाद]]'कंकाल' [[जयशंकर प्रसाद]] कृत प्रसिद्ध [[उपन्यास]] है, जो [[1929]] में प्रकाशित हुआ था। प्रसाद जी मुख्यत: आदर्श की भूमिका पर कार्य करने वाले रचनाकार रहे हैं, किंतु '[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]]' उनकी एक ऐसी कृति है, जिसमें पूर्णत: यथार्थ का आग्रह है। इस दृष्टि से उनका यह उपन्यास विशेष स्थान रखता है। 'कंकाल' में देश की सामाजिक और धार्मिक स्थिति का अंकन है और अधिकांश पात्र इसी पीठिका में चित्रित किये गये हैं। नायक विजय और नायिका तारा के माध्यम से प्रेम और [[विवाह]] जैसे प्रश्नों से लेकर जाति-वर्ण तथा व्यक्ति-समाज जैसी समस्याओं पर लेखक ने विचार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]]
||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|90px|जयशंकर प्रसाद]]'कंकाल' [[जयशंकर प्रसाद]] कृत प्रसिद्ध [[उपन्यास]] है, जो [[1929]] में प्रकाशित हुआ था। प्रसाद जी मुख्यत: आदर्श की भूमिका पर कार्य करने वाले रचनाकार रहे हैं, किंतु '[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]]' उनकी एक ऐसी कृति है, जिसमें पूर्णत: यथार्थ का आग्रह है। इस दृष्टि से उनका यह उपन्यास विशेष स्थान रखता है। 'कंकाल' में देश की सामाजिक और धार्मिक स्थिति का अंकन है और अधिकांश पात्र इसी पीठिका में चित्रित किये गये हैं। नायक विजय और नायिका तारा के माध्यम से प्रेम और [[विवाह]] जैसे प्रश्नों से लेकर जाति-वर्ण तथा व्यक्ति-समाज जैसी समस्याओं पर लेखक ने विचार किया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कंकाल उपन्यास -प्रसाद|कंकाल]]
 
{भाषा विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते हैं? (पृ.सं. 9
|type="()"}
-[[हिन्दी भाषा]] का अध्ययन
-[[भाषा]] के स्वरूप का अध्ययन
+भाषा तत्वों का अध्ययन
-[[भाषा]] परिवार का अध्ययन
</quiz>
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07:58, 28 फ़रवरी 2013 का अवतरण

1 हिन्दी भाषा की लिपि 'भारतीय संविधान' में किसे स्वीकार किया गया है?(पृ.सं. 9

ब्राह्मी लिपि
देवनागरी लिपि
गुरुमुखी लिपि
चन्द्र लिपि

3 'अशुभ बेला' रचना किसकी है? (पृ.सं. 3

भगवानदास मोरवाल
मैत्रेयी पुष्पा
समरेश मजूमदार
विवेकी राय

4 'भक्ति आंदोलन' का सूत्रपात उत्तर भारत से न होकर दक्षिण भारत में हुआ, इसका मूल कारण क्या है? (पृ.सं. 3

दक्षिण भारत में मुस्लिम शासकों ने आक्रमण किए थे।
यह भाग पूर्णत: निरापद था।
दक्षिण भारत व्यापारिक केंद्र था, जिससे धर्मावलम्बी वहाँ आकर बसे।
भारत के इस क्षेत्र में हिन्दू अधिक थे।

5 'कामायनी' को फैंटसी किस विद्वान ने कहा है? (पृ.सं. 9

डॉ. नगेन्द्र
गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
बालकृष्ण शर्मा नवीन
सुमित्रानंदन पंत

6 'अखिल भारतीय हिन्दी संस्था संघ' की स्थापना किसने की है? (पृ.सं. 9

भारत सरकार
हरियाणा सरकार
मॉरिशस सरकार
श्रीलंका सरकार

8 'ठेले पर हिमालय' रचना किस विद्या की है? (पृ.सं. 3

आलोचना
कहानी
निबन्ध
संस्मरण

9 'किन्नरों के देश में' रचना किसकी है? (पृ.सं. 3

जयशंकर प्रसाद
कृष्णा सोबती
राहुल सांकृत्यायन
अमृता प्रीतम

10 हिन्दी भाषा को लिखने के लिए कौन-सी लिपि प्रयोग की जाती है? (पृ.सं. 9

देवनागरी
फ़ारसी
ब्राह्मी
गुरुमुखी

11 हिन्दी बोली भारत में कौन बोलते हैं? (पृ.सं. 9

हिन्दू
भारत की अधिकांश जनता
मुस्लिम
भारत की 30 प्रतिशत जनता

12 'मयंक मंजरी' नामक रचना किस विधा की है? (पृ.सं. 9

कविता
आलोचना
नाटक
कहानी

13 'वीरों का कैसा हो वसंत' कविता की रचना निम्न में से किसने की थी?(भारतकोश)

सुभद्रा कुमारी चौहान
भगवतीचरण वर्मा
सरोजिनी नायडू
महादेवी वर्मा

14 भाषा विज्ञान के अध्ययन को क्या कहते हैं? (पृ.सं. 9

हिन्दी भाषा का अध्ययन
भाषा के स्वरूप का अध्ययन
भाषा तत्वों का अध्ययन
भाषा परिवार का अध्ययन

15 'गोस्वामी कृष्ण शरण' जयशंकर प्रसाद के किस उपन्यास का महत्त्वपूर्ण पात्र है? (पृ.सं. 3

कंकाल
तितली
इरावती
कामायनी