"गंगा नदी": अवतरणों में अंतर

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हुगली नदी [[कोलकाता]], [[हावड़ा]] होते हुए [[सुंदरवन]] के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। पद्मा में [[ब्रह्मपुत्र]] से निकली शाखा नदी [[जमुना नदी]] एवं [[मेघना नदी]] मिलती हैं। अंततः ये ३५० कि.मी. चौड़े [[सुंदरवन]] [[डेल्टा]] में जाकर [[बंगाल की खाड़ी]] में सागर-संगम करती है। यह डेल्टा गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई नवीन जलोढ़ से १,००० वर्षों में निर्मित समतल एवं निम्न मैदान है। यहां गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जिसे [[गंगासागर|गंगा-सागर-संगम]] कहते हैं।<ref name="इंडियानेट">{{cite web |url= http://www.indianetzone.com/2/ganga_river.htm|title= गंगा रिवर|accessmonthday=[[१४ जून]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher=इण्डिया नेट ज़ोन |language=अंग्रेज़ी}}</ref> विश्व का सबसे बड़ा [[डेल्टा]] ([[सुंदरवन]]) बहुत सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध [[बंगाल बाघ|बंगाल टाईगर]] का निवास स्थान है।<ref name="इंडियानेट"/> यह डेल्टा धीरे धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परन्तु अब यह तट से १५-२० मील (२४-३२ किलोमीटर) दूर स्थित लगभग १,८०,००० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जब डेल्टा का सागर की ओर निरन्तर विस्तार होता है तो उसे प्रगतिशील डेल्टा कहते हैं।<ref>{{cite book |last=सिहं |first=सविन्द्र |title= भौतिक भूगोल |year=जुलाई २००२ |publisher=वसुन्धरा प्रकाशन |location=गोरखपुर |id= |page=२४७-२४८ |accessday= ३|accessmonth= जून|accessyear= २००९}}</ref> सुंदरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यन्त कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यन्त धीमी गति से बहती है और अपने साथ लाई गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ एवं उपधाराएँ बन जाती हैं। इस प्रकार बनी हुई गंगा की प्रमुख शाखा नदियाँ [[जालंगी नदी]], [[इच्छामती नदी]], [[भैरव नदी]], [[विद्याधरी नदी]] और [[कालिन्दी नदी]] हैं। नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गयी हैं। ढाल उत्तर से दक्षिण है, अतः अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। ज्वार के समय इन नदियों में ज्वार का पानी भर जाने के कारण इन्हें ज्वारीय नदियाँ भी कहते हैं।  डेल्टा के सुदूर दक्षिणी भाग में समुद्र का खारा पानी पहुँचने का कारण यह भाग नीचा, नमकीन एवं दलदली है तथा यहाँ आसानी से पनपने वाले मैंग्रोव जाति के वनों से भरा पड़ा है। यह डेल्टा [[चावल]] की कृषि के लिए अधिक विख्यात है। यहाँ विश्व में सबसे अधिक कच्चे [[जूट]] का उत्पादन होता है। [[कटका अभयारण्य]] सुंदरवन के उन इलाकों में से है जहाँ का रास्ता छोटी-छोटी नहरों से होकर गुज़रता है। यहाँ बड़ी तादाद में [[सुंदरी]] पेड़ मिलते हैं जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर [[देवा]], [[केवड़ा]], [[तर्मजा]], [[आमलोपी]] और [[गोरान]] वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुंदरवन में पाई जाती हैं। यहाँ के वनों की एक खास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/samayik/bbchindi/bbchindi/0711/07/1071107081_1.htm|title= सुंदरवन के मुहाने पर|accessmonthday=[[२२ जून]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher=बीबीसी|language=}}</ref>
हुगली नदी [[कोलकाता]], [[हावड़ा]] होते हुए [[सुंदरवन]] के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। पद्मा में [[ब्रह्मपुत्र]] से निकली शाखा नदी [[जमुना नदी]] एवं [[मेघना नदी]] मिलती हैं। अंततः ये ३५० कि.मी. चौड़े [[सुंदरवन]] [[डेल्टा]] में जाकर [[बंगाल की खाड़ी]] में सागर-संगम करती है। यह डेल्टा गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई नवीन जलोढ़ से १,००० वर्षों में निर्मित समतल एवं निम्न मैदान है। यहां गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जिसे [[गंगासागर|गंगा-सागर-संगम]] कहते हैं।<ref name="इंडियानेट">{{cite web |url= http://www.indianetzone.com/2/ganga_river.htm|title= गंगा रिवर|accessmonthday=[[१४ जून]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher=इण्डिया नेट ज़ोन |language=अंग्रेज़ी}}</ref> विश्व का सबसे बड़ा [[डेल्टा]] ([[सुंदरवन]]) बहुत सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध [[बंगाल बाघ|बंगाल टाईगर]] का निवास स्थान है।<ref name="इंडियानेट"/> यह डेल्टा धीरे धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परन्तु अब यह तट से १५-२० मील (२४-३२ किलोमीटर) दूर स्थित लगभग १,८०,००० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जब डेल्टा का सागर की ओर निरन्तर विस्तार होता है तो उसे प्रगतिशील डेल्टा कहते हैं।<ref>{{cite book |last=सिहं |first=सविन्द्र |title= भौतिक भूगोल |year=जुलाई २००२ |publisher=वसुन्धरा प्रकाशन |location=गोरखपुर |id= |page=२४७-२४८ |accessday= ३|accessmonth= जून|accessyear= २००९}}</ref> सुंदरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यन्त कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यन्त धीमी गति से बहती है और अपने साथ लाई गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ एवं उपधाराएँ बन जाती हैं। इस प्रकार बनी हुई गंगा की प्रमुख शाखा नदियाँ [[जालंगी नदी]], [[इच्छामती नदी]], [[भैरव नदी]], [[विद्याधरी नदी]] और [[कालिन्दी नदी]] हैं। नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गयी हैं। ढाल उत्तर से दक्षिण है, अतः अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। ज्वार के समय इन नदियों में ज्वार का पानी भर जाने के कारण इन्हें ज्वारीय नदियाँ भी कहते हैं।  डेल्टा के सुदूर दक्षिणी भाग में समुद्र का खारा पानी पहुँचने का कारण यह भाग नीचा, नमकीन एवं दलदली है तथा यहाँ आसानी से पनपने वाले मैंग्रोव जाति के वनों से भरा पड़ा है। यह डेल्टा [[चावल]] की कृषि के लिए अधिक विख्यात है। यहाँ विश्व में सबसे अधिक कच्चे [[जूट]] का उत्पादन होता है। [[कटका अभयारण्य]] सुंदरवन के उन इलाकों में से है जहाँ का रास्ता छोटी-छोटी नहरों से होकर गुज़रता है। यहाँ बड़ी तादाद में [[सुंदरी]] पेड़ मिलते हैं जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर [[देवा]], [[केवड़ा]], [[तर्मजा]], [[आमलोपी]] और [[गोरान]] वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुंदरवन में पाई जाती हैं। यहाँ के वनों की एक खास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों।<ref>{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/samayik/bbchindi/bbchindi/0711/07/1071107081_1.htm|title= सुंदरवन के मुहाने पर|accessmonthday=[[२२ जून]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher=बीबीसी|language=}}</ref>


==प्रमुख तीर्थस्थान==
राजा [[भगीरथ]] तपस्या करके गंगा को [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर लाये थे। यह कथा [[भागवत]] [[पुराण]] में विस्तार से हैं। आदित्य पुराण के अनुसार पृथ्वी पर गंगावतरण वैशाख शुक्ल तृतीया को तथा हिमालय से गंगानिर्गमन ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगादशहरा) को हुआ था। इसको दशहरा इसलिए कहते है कि इस दिन का गंगास्नान दस पापों को हरता है। कई प्रमुख तीर्थस्थान-[[हरिद्वार]], [[गढ़मुक्तेश्वर]], [[सोरों]], [[प्रयाग]], [[काशी]] आदि इसी के तट पर स्थित है। [[ॠग्वेद]] के नदीसूक्त<ref>ऋग्वेद  (10.75.5-6)</ref>के अनुसार गंगा भारत की कई प्रसिद्ध नदियों में से सर्वप्रथम है। [[महाभारत]] तथा पद्मपुराणादि में गंगा की महिमा तथा पवित्र करनेवाली शक्तियों की विस्तारपूर्वक प्रशंसा की गयी है। [[पुराण|स्कन्धपुराण]] के काशीखण्ड<ref>(स्कन्दपुराण अध्याय 29)</ref>में इसके सहस्त्र नामों का उल्लेख है।
==गंगा-कथायें==  
==गंगा-कथायें==  
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09:31, 9 जून 2010 का अवतरण

गंगा नदी, हरिद्वार

भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी गंगा, जो भारत और बांग्लादेश में मिलाकर २,५१० किमी की दूरी तय करती हुई उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है, देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि.मी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। अपने सौंदर्य और महत्त्व के कारण एक ओर जहाँ पुराण और साहित्य में इसका उल्लेख बार बार मिलता है, वहीं विदेशी साहित्य में भी गंगा नदी के प्रति प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णनों की कमी नहीं।

इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पाई ही जाती हैं मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बाँध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धीकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवंबर, २००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी[1][2] तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग- को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।[3]

उद्गम

गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो कुमायूँ में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है।[4] गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई ३१४० मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक मंदिर भी है। गंगोत्री तीर्थ, शहर से १९ कि.मी. उत्तर की ओर ३८९२ मी.(१२,७७० फी.) की ऊँचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद २५ कि.मी. लंबा व ४ कि.मी. चौड़ा और लगभग ४० मी. ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती है। इसका जल स्रोत ५००० मी. ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है। इस बेसिन का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में ३६०० मी. ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं।[5] इस हिमनद में नंदा देवी, कामत पर्वत एवं त्रिशूल पर्वत का हिम पिघल कर आता है। यद्यपि गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी धाराओं का योगदान है लेकिन ६ बड़ी और उनकी सहायक ५ छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्त्व अधिक है। अलकनंदा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। धौली गंगा का अलकनंदा से विष्णु प्रयाग में संगम होता है। यह १३७२ मी. की ऊँचाई पर स्थित है। फिर २८०५ मी. ऊँचे नंद प्रयाग में अलकनन्दा का नंदाकिनी नदी से संगम होता है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनन्दा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर ऋषिकेश से १३९ कि.मी. दूर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी व अलकनन्दा १५०० फीट पर स्थित देव प्रयाग में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मिलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इन पांच प्रयागों को सम्मिलित रूप से पंच प्रयाग कहा जाता है।[4] इस प्रकार २०० कि.मी. का संकरा पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श हरिद्वार में करती है।

गंगा का मैदान

हरिद्वार से लगभग ८०० कि.मी. मैदानी यात्रा करते हुए गढ़मुक्तेश्वर,सोरों, फर्रुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर होते हुए गंगा इलाहाबाद (प्रयाग) पहुँचती है। यहाँ इसका संगम यमुना नदी से होता है। यह संगम स्थल हिन्दुओं का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यह यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से मीरजापुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे सोन, गंडक, घाघरा, कोसी आदि मिल जाती हैं। भागलपुर में राजमहल की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है-भागीरथी और पद्मा। भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती फरक्का बैराज (१९७४ निर्मित) से छनते हुई बंगला देश में प्रवेश करती है। यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम हुगली नदी है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग ६-४ करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई १००० से २००० मीटर है। इस मैदान में नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली अपरदनी और निक्षेपण स्थलाकॄतियाँ, जैसे- बालू-रोधका, विसर्प, गोखुर झीलें और गुंफित नदियाँ पाई जाती हैं।[6]

गंगा की इस घाटी में एक ऐसी सभ्यता का उद्भव और विकास हुआ जिसका प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी और वैभवशाली है। जहाँ ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी किरण प्रस्फुटित हुई जिससे न केवल भारत बल्कि समस्त संसार आलोकित हुआ। पाषाण या प्रस्तर युग का जन्म और विकास यहाँ होने के अनेक साक्ष्य मिले हैं। इसी घाटी में रामायण और महाभारत कालीन युग का उद्भव और विलय हुआ। शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता और महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है। प्राचीन मगध महाजनपद का उद्भव गंगा घाटी में ही हुआ जहाँ से गणराज्यों की परंपरा विश्व में पहली बार प्रारंभ हुई। यहीं भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब मौर्य और गुप्त वंशीय राजाओं ने यहाँ शासन किया।[7]

सुंदरवन डेल्टा

हुगली नदी कोलकाता, हावड़ा होते हुए सुंदरवन के भारतीय भाग में सागर से संगम करती है। पद्मा में ब्रह्मपुत्र से निकली शाखा नदी जमुना नदी एवं मेघना नदी मिलती हैं। अंततः ये ३५० कि.मी. चौड़े सुंदरवन डेल्टा में जाकर बंगाल की खाड़ी में सागर-संगम करती है। यह डेल्टा गंगा एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई नवीन जलोढ़ से १,००० वर्षों में निर्मित समतल एवं निम्न मैदान है। यहां गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ है जिसे गंगा-सागर-संगम कहते हैं।[8] विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा (सुंदरवन) बहुत सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल टाईगर का निवास स्थान है।[8] यह डेल्टा धीरे धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है। कुछ समय पहले कोलकाता सागर तट पर ही स्थित था और सागर का विस्तार राजमहल तथा सिलहट तक था, परन्तु अब यह तट से १५-२० मील (२४-३२ किलोमीटर) दूर स्थित लगभग १,८०,००० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। जब डेल्टा का सागर की ओर निरन्तर विस्तार होता है तो उसे प्रगतिशील डेल्टा कहते हैं।[9] सुंदरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यन्त कम होने के कारण यहाँ गंगा अत्यन्त धीमी गति से बहती है और अपने साथ लाई गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ एवं उपधाराएँ बन जाती हैं। इस प्रकार बनी हुई गंगा की प्रमुख शाखा नदियाँ जालंगी नदी, इच्छामती नदी, भैरव नदी, विद्याधरी नदी और कालिन्दी नदी हैं। नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गयी हैं। ढाल उत्तर से दक्षिण है, अतः अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। ज्वार के समय इन नदियों में ज्वार का पानी भर जाने के कारण इन्हें ज्वारीय नदियाँ भी कहते हैं। डेल्टा के सुदूर दक्षिणी भाग में समुद्र का खारा पानी पहुँचने का कारण यह भाग नीचा, नमकीन एवं दलदली है तथा यहाँ आसानी से पनपने वाले मैंग्रोव जाति के वनों से भरा पड़ा है। यह डेल्टा चावल की कृषि के लिए अधिक विख्यात है। यहाँ विश्व में सबसे अधिक कच्चे जूट का उत्पादन होता है। कटका अभयारण्य सुंदरवन के उन इलाकों में से है जहाँ का रास्ता छोटी-छोटी नहरों से होकर गुज़रता है। यहाँ बड़ी तादाद में सुंदरी पेड़ मिलते हैं जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदरवन पड़ा है। इसके अलावा यहाँ पर देवा, केवड़ा, तर्मजा, आमलोपी और गोरान वृक्षों की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो सुंदरवन में पाई जाती हैं। यहाँ के वनों की एक खास बात यह है कि यहाँ वही पेड़ पनपते या बच सकते हैं, जो मीठे और खारे पानी के मिश्रण में रह सकते हों।[10]

प्रमुख तीर्थस्थान

राजा भगीरथ तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाये थे। यह कथा भागवत पुराण में विस्तार से हैं। आदित्य पुराण के अनुसार पृथ्वी पर गंगावतरण वैशाख शुक्ल तृतीया को तथा हिमालय से गंगानिर्गमन ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगादशहरा) को हुआ था। इसको दशहरा इसलिए कहते है कि इस दिन का गंगास्नान दस पापों को हरता है। कई प्रमुख तीर्थस्थान-हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, सोरों, प्रयाग, काशी आदि इसी के तट पर स्थित है। ॠग्वेद के नदीसूक्त[11]के अनुसार गंगा भारत की कई प्रसिद्ध नदियों में से सर्वप्रथम है। महाभारत तथा पद्मपुराणादि में गंगा की महिमा तथा पवित्र करनेवाली शक्तियों की विस्तारपूर्वक प्रशंसा की गयी है। स्कन्धपुराण के काशीखण्ड[12]में इसके सहस्त्र नामों का उल्लेख है।

गंगा-कथायें

गंगा नदी, हरिद्वार

शिव ने ब्रह्मा के दोष के निवारण के लिए गंगा को जुटाया था। किंतु स्वयं उस पर मोहित हो गये। शिव उसे निरंतर अपनी जटाओं में छिपाकर रखते थे। पार्वती अत्यंत क्षुब्ध थी तथा उसे सौतवत मानती थी। पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों तथा एक कन्या गणेश, स्कंद तथा जया को बुलाकर इस विषय में बताया। गणेश ने एक उपाय सोचा। उन दिनों समस्त भूमंडल पर अकाल का प्रकोप था। एकमात्र गौतम ऋषि के आश्रम में खाद्य पदार्थ थे क्योंकि उस आश्रम की स्थापना उस पहाड़ पर की गयी थी जहां पहले शिव तपस्या कर चुके थे। अनेक ब्राह्मण उनकी शरण में पहुंचे हुए थे। गणेश ने स्वयं ब्राह्मण वेश धारण किया तो जया को गाय का रूप धारण करने को कहा, साथ ही उसे आदेश दिया कि वह आश्रम में जाकर गेहूं के पौधे खाना आरंभ करे, रोकने पर बेहोश होकर गिर जाये। वहां पहुंचकर उन दोनों ने वैसा ही किया। मुनि ने तिनके से गाय को हटाने का प्रयास किया तो वह जड़वत् गिर गयी। ब्राह्मणों के साथ गणेश ने गौतम के पाप-कर्म की ओर संकेत कर तुरंत आश्रम छोड़ने की इच्छा प्रकट की। गोहत्या के पाप से दुखी गौतम ने पूछा कि पाप का निराकरण कैसे किया जाये। गणेश ने कहा-" शिव की जटाओं में गंगा का पुनीत जल है, तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करो। गंगा को पर्वत पर लाओ और इस गऊ पर छिड़को। इस प्रकार पाप-शमन होने पर ही हम सब यहाँ रह सकेंगे।" गौतम तपस्यारत हो गये। उससे प्रसन्न होकर शिव अपनी जटाओं में समेटी हुई गंगा का एक अंश उसे प्रदान कर दिया। गौतम ने यह भी वर मांगा कि वह धरती पर सागर से मिलने से पूर्व अत्यंत पावन रहेगी तथा सबके पापों का नाश करने वाली होगी। गौतम गंगा को लेकर ब्रह्म गिरि पहुंचे। वहां सबने गंगा की पूजा-अर्चना की। गंगा ने गौतम से पूछा-"मैं देवलोक जाऊं? कमंडल में अथवा रसातल में?" गौतम ने कहा-"मैंने शिव से तीनों लोकों के उपकार के लिए तुम्हें मांगा था। गंगा ने पंद्रह आकृतियां धारण कीं जिनमें से चार स्वर्गलोक, सात मृत्युलोक तथा चार रूपों में रसातल में प्रवेश किया। हर लोक की गंगा का रूप उस लोक में ही दृष्टिगत होता है अन्यत्र नहीं।"
[13]गंगा का बचा हुआ दूसरा अंश भगीरथ को तप के फलस्वरूप अपने पितरों के उद्धार के निमित्त शिव से प्राप्त हुआ। गंगा ने पहले सगर के पुत्रों का त्राण किया फिर उसकी प्रार्थना से हिमालय पहुंचकर भारत में प्रवाहित होते हुए वह बंगसागर की ओर चली गयी।[14]भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर कृष्ण ने उसे दर्शन दिये। उन्होंने गंगा को आज्ञा दी कि वह शीध्र भारत में अवतीर्ण होकर सगर-पुत्रों का उद्धार करे। गंगा के पूछने पर उन्होंने कहा-"वहां मेरे अंश से बना लवणोदधि तुम्हारा पति होगा। भारती के शापवश तुम्हें पांच हज़ार वर्ष तक भारत में रहना पड़ेगा। भारत में पापियों का पाप तुम्हारे जल में घुल जायेगा किंतु भक्तों के स्पर्श से तुममें समाहित समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे"[15]


श्रीकृष्ण ने राधा की पूजा करके रास में उनकी स्थापना की। सरस्वती तथा समस्त देवता प्रसन्न होकर संगीत में खो गये। चैतन्य होने पर उन्होंने देखा कि राधा और कृष्ण उनके मध्य नहीं हैं। सब ओर जल ही जल है। सर्वात्म, सर्वव्यापी राधा-कृष्ण ने ही संसारवासियों के उद्धार के लिए जलमयी मूर्ति धारण की थी, वही गोलोक में स्थित गंगा है। एक बार गंगा श्रीकृष्ण के पार्श्व में बैठी उनके सौंदर्य-दर्शन में मग्न थी। राधा उसे देखकर रुष्ट हो गयी थी। लज्जावश उसने श्रीकृष्ण के चरणों में आश्रय लिया था । फलत: पशु, पक्षी, पौधे, मनुष्य अपने कष्ट की दुहाई देते हुए ब्रह्मा की शरण में पहुंचे। ब्रह्मा, विष्णु, महेश कृष्ण के पास गये। कृष्ण की प्रेरणा से उन्होंने राधा से गंगा के निमित्त अभयदान लिया। फिर श्रीकृष्ण के पांव के अंगूठे से गंगा निकली। उसका वेग थामने के लिए पहले ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में ग्रहण किया, फिर शिव ने अपनी जटाओं में, फिर वह पृथ्वी पर पहुंची। जब समस्त संसार जल से आपूरित हो गया तब ब्रह्मा उसे नारायण के पास बैंकुंठधाम में ले गये जहां ब्रह्मा ने समस्त घटनाएं सुनाकर उसे नारायण को सौंप दिया। नारायण ने स्वयं गांधर्व-विधान द्वारा गंगा से पाणिग्रहण किया।[16]

वीथिका

टीका टिप्पणी

  1. गंगा को भारत की राष्ट्रीय नदी (एचटीएम) बिहार टुडे। अभिगमन तिथि: नवंबर, २००८
  2. गंगा -भारत की राष्ट्रीय नदी (एचटीएम) वॉयस ऑफ अमेरिका। अभिगमन तिथि: ४ नवंबर, २००८
  3. (अप्रैल २००३) समकालीन भारत। नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद। अभिगमन तिथि: २३ जून, २००९
  4. 4.0 4.1 उत्तरांचल-एक परिचय (एचटीएम) टीडीआईएल। अभिगमन तिथि: २८ अप्रैल, 2008
  5. गंगोत्री (एचटीएम) उत्तराखंड सरकार। अभिगमन तिथि: १४ जून, २००९
  6. भारत की भौतिक संरचना पर्यावरण के विभिन्न घटक। अभिगमन तिथि: 22 जून, २००९
  7. बिहार का इतिहास (प्राचीन बिहार) (जेएसपी) मिथिलाविहार। अभिगमन तिथि: २२ जून, २००९
  8. 8.0 8.1 गंगा रिवर (अंग्रेज़ी) (एचटीएम) इण्डिया नेट ज़ोन। अभिगमन तिथि: १४ जून, २००९
  9. सिहं, सविन्द्र (जुलाई २००२) भौतिक भूगोल। गोरखपुर: वसुन्धरा प्रकाशन। अभिगमन तिथि: ३ जून, २००९
  10. सुंदरवन के मुहाने पर (एचटीएम) बीबीसी। अभिगमन तिथि: २२ जून, २००९
  11. ऋग्वेद (10.75.5-6)
  12. (स्कन्दपुराण अध्याय 29)
  13. ब्र0 पु0, अ0 72 से 78 तक
  14. ब्र0पु0, अध्याय 76,77,175
  15. (त्रिपथगा : दे0 राधा)
  16. भागवत, 9 ।11-14

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