"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/1": अवतरणों में अंतर
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-[[हेमचन्द्र राय चौधरी|हेमचन्द्र]] के परिशिष्ट पर्व में | -[[हेमचन्द्र राय चौधरी|हेमचन्द्र]] के परिशिष्ट पर्व में | ||
+[[पतंजलि]] के [[महाभाष्य]] में | +[[पतंजलि]] के [[महाभाष्य]] में | ||
||'महाभाष्य' महर्षि पतंजलि द्वारा रचित है। [[पतंजलि (महाभाष्यकार)|पतंजलि]] ने [[पाणिनि]] के '[[अष्टाध्यायी]]' के कुछ चुने हुए सूत्रों पर भाष्य लिखा था, जिसे 'व्याकरण महाभाष्य' का नाम दिया गया। '[[महाभाष्य]]' वैसे तो [[व्याकरण]] का [[ग्रंथ]] माना जाता है, किन्तु इसमें कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं। महाभाष्य के वर्णन से पता चलता है कि [[पुष्यमित्र शुंग]] ने किसी ऐसे विशाल [[यज्ञ]] का आयोजन किया था, जिसमें अनेक [[पुरोहित]] थे और स्वयं पतंजलि भी इसमें शामिल थे। वे स्वयं [[ब्राह्मण]] याजक थे और इसी कारण से उन्होंने [[क्षत्रिय]] याजक पर कटाक्ष किया है- यदि भवद्विध: क्षत्रियं याजयेत्।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभाष्य]] और [[पतंजलि]] | |||
{निम्नलिखित कथनों में से असत्य कथन को छाँटिये? (पृ.सं. 172 | {निम्नलिखित कथनों में से असत्य कथन को छाँटिये? (पृ.सं. 172 | ||
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-[[कुलोत्तुंग प्रथम|चालुक्य कुलोत्तुंग]] मातृपक्ष से [[चोल|चोलों]] से सम्बन्धित था | -[[कुलोत्तुंग प्रथम|चालुक्य कुलोत्तुंग]] मातृपक्ष से [[चोल|चोलों]] से सम्बन्धित था | ||
+[[नन्दि वर्मन द्वितीय]] ने [[भारतीय संस्कृति]] के प्रचार में अनिच्छा प्रदर्शित की। | +[[नन्दि वर्मन द्वितीय]] ने [[भारतीय संस्कृति]] के प्रचार में अनिच्छा प्रदर्शित की। | ||
||नन्दि वर्मन द्वितीय (731-795 ई.) [[वैष्णव धर्म]] का अनुयायी था। उसके समय में समकालीन वैष्णव सन्त तिरुमंगै अलवार ने वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। [[नन्दि वर्मन द्वितीय]] के शासन काल में [[पल्लव वंश|पल्लवों]] का [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]], [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्यों]] तथा [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूटों]] से संघर्ष हुआ। यद्यपि पूर्वी चालुक्य राज्य पर नन्दि वर्मन द्वितीय ने क़ब्ज़ा कर लिया, किन्तु राष्ट्रकूटों ने [[कांची]] को विजित कर लिया। कशाक्कुण्डि लेख में नन्दि वर्मन के लिए 'पल्लवमल्ल', 'क्षत्रियमल्ल', 'राजाधिराज', 'परमेश्वर' एवं 'महाराज' आदि उपाधियों का प्रयोग किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नन्दि वर्मन द्वितीय]] | |||
{निम्नलिखित में से किस विदेशी [[अभिलेख]] में भारतीय वैदिक मंडल के [[देवता|देवताओं]] [[वरुण देवता|वरुण]], [[इन्द्र]] एवं नासत्य का विवरण प्राप्त होता है? (पृ.सं. 173 | {निम्नलिखित में से किस विदेशी [[अभिलेख]] में भारतीय वैदिक मंडल के [[देवता|देवताओं]] [[वरुण देवता|वरुण]], [[इन्द्र]] एवं नासत्य का विवरण प्राप्त होता है? (पृ.सं. 173 | ||
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-पर्सिपोलिस के बेहिस्तून अभिलेख | -पर्सिपोलिस के बेहिस्तून अभिलेख | ||
+[[एशिया]] माइनर के [[ | +[[एशिया]] माइनर के [[बोगाजकोई]] अभिलेख | ||
-मितन्नी अभिलेख | -मितन्नी अभिलेख | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||[[चित्र:Lion-Gate-Bogazkoy.jpg|right|100px|सिंहद्वार, बोगाजकोई]]बोगाजकोई [[एशिया]] माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्व सम्बन्धी [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। वहाँ के शिलालेखों में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, [[दशरथ]] और आर्त्ततम आदि [[आर्य]] नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]] और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार [[बोगाजकोई]] से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है। सन [[1907]] ई. में प्राचीन हिट्टाइट राज्य की राजधानी बोगाजकोई में पाई गयी [[मिट्टी]] की पट्टिकाओं में वैदिक [[देवता]] वरुण, इन्द्र, नासत्यस का उल्लेख है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोगाजकोई]] | |||
{निम्नलिखित में से कौन-सा [[हड़प्पा संस्कृति]] का एक स्थल है, जहाँ से [[फ़ारस की खाड़ी]] की मुद्रा उत्खनन से प्राप्त हुई थी? (पृ.सं. 175 | {निम्नलिखित में से कौन-सा [[हड़प्पा संस्कृति]] का एक स्थल है, जहाँ से [[फ़ारस की खाड़ी]] की मुद्रा उत्खनन से प्राप्त हुई थी? (पृ.सं. 175 |
08:06, 12 मार्च 2013 का अवतरण
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