"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/1": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Lion-Gate-Bogazkoy.jpg|right|100px|सिंहद्वार, बोगाजकोई]]बोगाजकोई [[एशिया]] माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्व सम्बन्धी [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। वहाँ के शिलालेखों में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, [[दशरथ]] और आर्त्ततम आदि [[आर्य]] नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]] और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार [[बोगाजकोई]] से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है। सन [[1907]] ई. में प्राचीन हिट्टाइट राज्य की राजधानी बोगाजकोई में पाई गयी [[मिट्टी]] की पट्टिकाओं में वैदिक [[देवता]] वरुण, इन्द्र, नासत्यस का उल्लेख है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोगाजकोई]] | ||[[चित्र:Lion-Gate-Bogazkoy.jpg|right|100px|सिंहद्वार, बोगाजकोई]]बोगाजकोई [[एशिया]] माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्व सम्बन्धी [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। वहाँ के शिलालेखों में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, [[दशरथ]] और आर्त्ततम आदि [[आर्य]] नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]] और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार [[बोगाजकोई]] से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है। सन [[1907]] ई. में प्राचीन हिट्टाइट राज्य की राजधानी बोगाजकोई में पाई गयी [[मिट्टी]] की पट्टिकाओं में वैदिक [[देवता]] वरुण, इन्द्र, नासत्यस का उल्लेख है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोगाजकोई]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा [[हड़प्पा संस्कृति]] का एक स्थल है, जहाँ से [[फ़ारस की खाड़ी]] की मुद्रा उत्खनन से प्राप्त हुई थी? (पृ.सं. 175 | {निम्नलिखित में से कौन-सा [[हड़प्पा संस्कृति]] का एक स्थल है, जहाँ से '[[फ़ारस की खाड़ी]]' की मुद्रा उत्खनन से प्राप्त हुई थी? (पृ.सं. 175 | ||
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-[[मोहनजोदड़ो]] | -[[मोहनजोदड़ो]] | ||
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||[[चित्र:Lothal-8.jpg|right|100px|लोथल]]लोथल [[गुजरात]] के [[अहमदाबाद ज़िला|अहमदाबाद ज़िले]] में भोगावा नदी के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। यहाँ की खुदाई [[1954]]-[[1955]] ई. में रंगनाथ राव के नेतृत्व में की गई थी। [[लोथल]] से समकालीन सभ्यता के पांच स्तर पाए गए हैं। इसके उत्तर में 12 मीटर चौड़ा एक प्रवेश द्वार निर्मित था, जिससे होकर जहाज़ आते-जाते थे और दक्षिण दीवार में अतिरिक्त [[जल]] के लिए निकास द्वार था। लोथल में गढ़ी और नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हैं। यहाँ से अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में [[चावल]], [[फ़ारस]] की मुहरों एवं घोड़ों की लघु मृण्मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लोथल]] | |||
{[[ह्वेनसांग]] के विवरणों में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख नहीं मिलता? (पृ.सं. 171 | {[[ह्वेनसांग]] के विवरणों में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख नहीं मिलता? (पृ.सं. 171 | ||
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-[[मरुस्थल|मरुभूमि]], नदियाँ एवं प्राणी विज्ञान की विशेषताएँ | -[[मरुस्थल|मरुभूमि]], नदियाँ एवं प्राणी विज्ञान की विशेषताएँ | ||
-भवन, नगर योजना और और शवदाह प्रणाली | -भवन, नगर योजना और और शवदाह प्रणाली | ||
||[[चित्र:Mohenjodaro-Sindh.jpg|right|100px|सिन्ध में मोहनजोदड़ो]]'सिन्धु घाटी सभ्यता' की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही 'पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में [[1921]] में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद [[1922]] में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में [[पाकिस्तान]] के [[सिंध प्रांत]] के लरकाना ज़िले के [[मोहनजोदड़ो]] में स्थित एक [[बौद्ध]] [[स्तूप]] की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता [[सिंधु नदी]] की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम "सिधु घाटी की सभ्यता" रखा गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्धु घाटी सभ्यता]] | |||
{आमरी संस्कृति कहाँ पर पनपी थी? (पृ.सं. 175 | {[[आमरी]] संस्कृति कहाँ पर पनपी थी? (पृ.सं. 175 | ||
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-[[कच्छ|कच्छ क्षेत्र]] | -[[कच्छ|कच्छ क्षेत्र]] | ||
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-[[बलूचिस्तान]] | -[[बलूचिस्तान]] | ||
+[[सिन्ध]] | +[[सिन्ध]] | ||
||सिन्ध प्रांत [[पाकिस्तान]] के चार प्रान्तों में से एक है। यहाँ पन्द्रह प्रतिशत जनता वास करती है। यह सिन्धियों का मूल स्थान है। [[सिन्ध]] [[संस्कृत]] के शब्द सिंधु से बना है, जिसका अर्थ है- [[समुद्र]]। [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] में सिन्ध नामक देश को [[श्रीराम|श्रीरामचंद्र]] द्वारा [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] को दिए जाने का उल्लेख है। इस प्रसंग में यह भी वर्णित है कि युधाजित द्वारा [[केकय देश|केकय]] नरेश से संदेश मिलने पर उन्होंने यह कार्य सम्पन्न किया था। संभव है कि सिन्ध देश उस समय केकय देश के अधीन रहा हो। सिन्धु पर अधिकार करने के लिए भरत ने [[गंधर्व|गंधर्वों]] को हराया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्ध]] और [[आमरी]] | |||
{पकी [[मिट्टी]] के बने हल का एक प्रतिरूप कहाँ से प्राप्त हुआ है? (पृ.सं. 175 | {पकी [[मिट्टी]] के बने हल का एक प्रतिरूप कहाँ से प्राप्त हुआ है? (पृ.सं. 175 |
08:47, 12 मार्च 2013 का अवतरण
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