"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/1": अवतरणों में अंतर

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-[[जौ]]
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||[[चित्र:Sorghum-1.jpg|70px|right|ज्वार]]'ज्वार' विश्‍व की मोटे अनाज वाली एक महत्‍वपूर्ण फ़सल है। [[वर्षा]] आधारित [[कृषि]] के लिये यह सबसे उपयुक्‍त फ़सल है। [[ज्वार]] की फ़सल का दोहरा लाभ मिलता है। मानव आहार के साथ-साथ पशु आहार के रूप में इसकी अच्‍छी खपत होती है। ज्‍वार की फ़सल कम वर्षा में भी अच्छी उपज दे सकती है। एक ओर जहाँ ज्‍वार सूखे का सक्षमता से सामना कर सकती है, वहीं कुछ समय के लिये भूमि में जलमग्‍नता को भी सहन कर सकती है। [[ज्वार]] का पौधा अन्‍य अनाज वाली फ़सलों की अपेक्षा कम 'प्रकाश संश्‍लेषण' एवं प्रति इकाई समय में अधिक शुष्‍क पदार्थ का निर्माण करता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज्वार]]
||[[चित्र:Sorghum-1.jpg|70px|right|ज्वार]]'ज्वार' विश्‍व की मोटे अनाज वाली एक महत्‍वपूर्ण फ़सल है। [[वर्षा]] आधारित [[कृषि]] के लिये यह सबसे उपयुक्‍त फ़सल है। [[ज्वार]] की फ़सल का दोहरा लाभ मिलता है। मानव आहार के साथ-साथ पशु आहार के रूप में इसकी अच्‍छी खपत होती है। ज्‍वार की फ़सल कम वर्षा में भी अच्छी उपज दे सकती है। एक ओर जहाँ ज्‍वार सूखे का सक्षमता से सामना कर सकती है, वहीं कुछ समय के लिये भूमि में जलमग्‍नता को भी सहन कर सकती है। [[ज्वार]] का पौधा अन्‍य अनाज वाली फ़सलों की अपेक्षा कम 'प्रकाश संश्‍लेषण' एवं प्रति इकाई समय में अधिक शुष्‍क पदार्थ का निर्माण करता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज्वार]]
{[[हड़प्पा सभ्यता|हड़प्पाकालीन सभ्यता]] मुख्यत: निम्नलिखित में से किन प्रदेशों में केन्द्रीयभूत थी? (पृ.सं. 174
|type="()"}
+[[पंजाब]], [[राजस्थान]] और [[गुजरात]]
-पंजाब, राजस्थान और [[उत्तर प्रदेश]]
-[[हरियाणा]], राजस्थान और [[दिल्ली]]
-[[गुजरात]], [[हरियाणा]] और पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]]
||[[चित्र:Golden-Temple-Amritsar.jpg|right|120px|स्वर्णमन्दिर, पंजाब]]पंजाब [[भारत]] के उत्तर-पश्चिम में स्थित राज्य है, जिसकी सीमाएँ पश्चिम में [[पाकिस्तान]], उत्तर में [[जम्मू और कश्मीर]], उत्तर-पूर्व में [[हिमाचल प्रदेश]] और दक्षिण में [[हरियाणा]] और [[राजस्थान]] राज्य से मिलती हैं। प्राचीन समय में [[पंजाब]] भारत और [[ईरान]] का क्षेत्र था। यहाँ [[मौर्य]], बैक्ट्रियन, [[यूनानी]], [[शक]], [[कुषाण]], [[गुप्त]] आदि अनेक शक्तियों का उत्थान और पतन हुआ। पंजाब [[मध्य काल]] में [[मुस्लिम]] शासकों के अधीन रहा था। यहाँ सबसे पहले [[महमूद ग़ज़नवी|गज़नवी]], [[मुहम्मद ग़ोरी|ग़ोरी]], [[ग़ुलाम वंश]], [[ख़िलजी वंश]], [[तुग़लक़ वंश|तुग़लक]],[[लोदी वंश|लोदी]] और [[मुग़ल वंश]] के शासकों ने यहाँ राज किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पंजाब]], [[राजस्थान]] और [[गुजरात]]


{निम्नलिखित में से कौन एक [[हड़प्पा संस्कृति]] की सुदूर पश्चिमी बस्ती थी? (पृ.सं. 175
{निम्नलिखित में से कौन एक [[हड़प्पा संस्कृति]] की सुदूर पश्चिमी बस्ती थी? (पृ.सं. 175
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-यूनेनीस
-यूनेनीस
+इनमें से कोई नहीं
+इनमें से कोई नहीं
{[[हड़प्पा सभ्यता|हड़प्पाकालीन सभ्यता]] मुख्यत: निम्नलिखित में से किन प्रदेशों में केन्द्रीयभूत थी? (पृ.सं. 174
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+[[पंजाब]], [[राजस्थान]] और [[गुजरात]]
-पंजाब, राजस्थान और [[उत्तर प्रदेश]]
-[[हरियाणा]], राजस्थान और [[दिल्ली]]
-[[गुजरात]], [[हरियाणा]] और पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]]
||[[चित्र:Golden-Temple-Amritsar.jpg|right|120px|स्वर्णमन्दिर, पंजाब]]पंजाब [[भारत]] के उत्तर-पश्चिम में स्थित राज्य है, जिसकी सीमाएँ पश्चिम में [[पाकिस्तान]], उत्तर में [[जम्मू और कश्मीर]], उत्तर-पूर्व में [[हिमाचल प्रदेश]] और दक्षिण में [[हरियाणा]] और [[राजस्थान]] राज्य से मिलती हैं। प्राचीन समय में [[पंजाब]] भारत और [[ईरान]] का क्षेत्र था। यहाँ [[मौर्य]], बैक्ट्रियन, [[यूनानी]], [[शक]], [[कुषाण]], [[गुप्त]] आदि अनेक शक्तियों का उत्थान और पतन हुआ। पंजाब [[मध्य काल]] में [[मुस्लिम]] शासकों के अधीन रहा था। यहाँ सबसे पहले [[महमूद ग़ज़नवी|गज़नवी]], [[मुहम्मद ग़ोरी|ग़ोरी]], [[ग़ुलाम वंश]], [[ख़िलजी वंश]], [[तुग़लक़ वंश|तुग़लक]],[[लोदी वंश|लोदी]] और [[मुग़ल वंश]] के शासकों ने यहाँ राज किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पंजाब]], [[राजस्थान]] और [[गुजरात]]


{चीनी यात्रियों के [[भारत]] भ्रमण की श्रृंखला में सुंगयुन का उल्लेख प्राप्त होता है। वह [[बौद्ध]] ग्रंथों की खोज में भारत आया था। उसके [[भारत]] आने का समय क्या था? (पृ.सं. 171
{चीनी यात्रियों के [[भारत]] भ्रमण की श्रृंखला में सुंगयुन का उल्लेख प्राप्त होता है। वह [[बौद्ध]] ग्रंथों की खोज में भारत आया था। उसके [[भारत]] आने का समय क्या था? (पृ.सं. 171
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+[[पतंजलि]] के [[महाभाष्य]] में
+[[पतंजलि]] के [[महाभाष्य]] में
||'महाभाष्य' महर्षि पतंजलि द्वारा रचित है। [[पतंजलि (महाभाष्यकार)|पतंजलि]] ने [[पाणिनि]] के '[[अष्टाध्यायी]]' के कुछ चुने हुए सूत्रों पर भाष्य लिखा था, जिसे 'व्याकरण महाभाष्य' का नाम दिया गया। '[[महाभाष्य]]' वैसे तो [[व्याकरण]] का [[ग्रंथ]] माना जाता है, किन्तु इसमें कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं। महाभाष्य के वर्णन से पता चलता है कि [[पुष्यमित्र शुंग]] ने किसी ऐसे विशाल [[यज्ञ]] का आयोजन किया था, जिसमें अनेक [[पुरोहित]] थे और स्वयं पतंजलि भी इसमें शामिल थे। वे स्वयं [[ब्राह्मण]] याजक थे और इसी कारण से उन्होंने [[क्षत्रिय]] याजक पर कटाक्ष किया है- यदि भवद्विध: क्षत्रियं याजयेत्।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभाष्य]] और [[पतंजलि]]
||'महाभाष्य' महर्षि पतंजलि द्वारा रचित है। [[पतंजलि (महाभाष्यकार)|पतंजलि]] ने [[पाणिनि]] के '[[अष्टाध्यायी]]' के कुछ चुने हुए सूत्रों पर भाष्य लिखा था, जिसे 'व्याकरण महाभाष्य' का नाम दिया गया। '[[महाभाष्य]]' वैसे तो [[व्याकरण]] का [[ग्रंथ]] माना जाता है, किन्तु इसमें कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं। महाभाष्य के वर्णन से पता चलता है कि [[पुष्यमित्र शुंग]] ने किसी ऐसे विशाल [[यज्ञ]] का आयोजन किया था, जिसमें अनेक [[पुरोहित]] थे और स्वयं पतंजलि भी इसमें शामिल थे। वे स्वयं [[ब्राह्मण]] याजक थे और इसी कारण से उन्होंने [[क्षत्रिय]] याजक पर कटाक्ष किया है- यदि भवद्विध: क्षत्रियं याजयेत्।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभाष्य]] और [[पतंजलि]]
{निम्नलिखित में से किस विदेशी [[अभिलेख]] में भारतीय वैदिक मंडल के [[देवता|देवताओं]] [[वरुण देवता|वरुण]], [[इन्द्र]] एवं नासत्य का विवरण प्राप्त होता है? (पृ.सं. 173
|type="()"}
-पर्सिपोलिस के बेहिस्तून अभिलेख
+[[एशिया]] माइनर के [[बोगाजकोई]] अभिलेख
-मितन्नी अभिलेख
-इनमें से कोई नहीं
||[[चित्र:Lion-Gate-Bogazkoy.jpg|right|120px|सिंहद्वार, बोगाजकोई]]बोगाजकोई [[एशिया]] माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्व सम्बन्धी [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। वहाँ के शिलालेखों में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, [[दशरथ]] और आर्त्ततम आदि [[आर्य]] नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]] और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार [[बोगाजकोई]] से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है। सन [[1907]] ई. में प्राचीन हिट्टाइट राज्य की राजधानी बोगाजकोई में पाई गयी [[मिट्टी]] की पट्टिकाओं में वैदिक [[देवता]] वरुण, इन्द्र, नासत्यस का उल्लेख है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोगाजकोई]]


{निम्नलिखित कथनों में से असत्य कथन को छाँटिये? (पृ.सं. 172
{निम्नलिखित कथनों में से असत्य कथन को छाँटिये? (पृ.सं. 172
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+[[नन्दि वर्मन द्वितीय]] ने [[भारतीय संस्कृति]] के प्रचार में अनिच्छा प्रदर्शित की।
+[[नन्दि वर्मन द्वितीय]] ने [[भारतीय संस्कृति]] के प्रचार में अनिच्छा प्रदर्शित की।
||नन्दि वर्मन द्वितीय (731-795 ई.) [[वैष्णव धर्म]] का अनुयायी था। उसके समय में समकालीन वैष्णव सन्त तिरुमंगै अलवार ने वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। [[नन्दि वर्मन द्वितीय]] के शासन काल में [[पल्लव वंश|पल्लवों]] का [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]], [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्यों]] तथा [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूटों]] से संघर्ष हुआ। यद्यपि पूर्वी चालुक्य राज्य पर नन्दि वर्मन द्वितीय ने क़ब्ज़ा कर लिया, किन्तु राष्ट्रकूटों ने [[कांची]] को विजित कर लिया। कशाक्कुण्डि लेख में नन्दि वर्मन के लिए 'पल्लवमल्ल', 'क्षत्रियमल्ल', 'राजाधिराज', 'परमेश्वर' एवं 'महाराज' आदि उपाधियों का प्रयोग किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नन्दि वर्मन द्वितीय]]
||नन्दि वर्मन द्वितीय (731-795 ई.) [[वैष्णव धर्म]] का अनुयायी था। उसके समय में समकालीन वैष्णव सन्त तिरुमंगै अलवार ने वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। [[नन्दि वर्मन द्वितीय]] के शासन काल में [[पल्लव वंश|पल्लवों]] का [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]], [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्यों]] तथा [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूटों]] से संघर्ष हुआ। यद्यपि पूर्वी चालुक्य राज्य पर नन्दि वर्मन द्वितीय ने क़ब्ज़ा कर लिया, किन्तु राष्ट्रकूटों ने [[कांची]] को विजित कर लिया। कशाक्कुण्डि लेख में नन्दि वर्मन के लिए 'पल्लवमल्ल', 'क्षत्रियमल्ल', 'राजाधिराज', 'परमेश्वर' एवं 'महाराज' आदि उपाधियों का प्रयोग किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नन्दि वर्मन द्वितीय]]
{निम्नलिखित में से किस विदेशी [[अभिलेख]] में भारतीय वैदिक मंडल के [[देवता|देवताओं]] [[वरुण देवता|वरुण]], [[इन्द्र]] एवं नासत्य का विवरण प्राप्त होता है? (पृ.सं. 173
|type="()"}
-पर्सिपोलिस के बेहिस्तून अभिलेख
+[[एशिया]] माइनर के [[बोगाजकोई]] अभिलेख
-मितन्नी अभिलेख
-इनमें से कोई नहीं
||[[चित्र:Lion-Gate-Bogazkoy.jpg|right|120px|सिंहद्वार, बोगाजकोई]]बोगाजकोई [[एशिया]] माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्व सम्बन्धी [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। वहाँ के शिलालेखों में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, [[दशरथ]] और आर्त्ततम आदि [[आर्य]] नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]] और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार [[बोगाजकोई]] से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है। सन [[1907]] ई. में प्राचीन हिट्टाइट राज्य की राजधानी बोगाजकोई में पाई गयी [[मिट्टी]] की पट्टिकाओं में वैदिक [[देवता]] वरुण, इन्द्र, नासत्यस का उल्लेख है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोगाजकोई]]


{निम्नलिखित में से कौन-सा [[हड़प्पा संस्कृति]] का एक स्थल है, जहाँ से '[[फ़ारस की खाड़ी]]' की मुद्रा उत्खनन से प्राप्त हुई थी? (पृ.सं. 175
{निम्नलिखित में से कौन-सा [[हड़प्पा संस्कृति]] का एक स्थल है, जहाँ से '[[फ़ारस की खाड़ी]]' की मुद्रा उत्खनन से प्राप्त हुई थी? (पृ.सं. 175
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-भवन, नगर योजना और और शवदाह प्रणाली
-भवन, नगर योजना और और शवदाह प्रणाली
||[[चित्र:Mohenjodaro-Sindh.jpg|right|120px|सिन्ध में मोहनजोदड़ो]]'सिन्धु घाटी सभ्यता' की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही 'पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में [[1921]] में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद [[1922]] में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में [[पाकिस्तान]] के [[सिंध प्रांत]] के लरकाना ज़िले के [[मोहनजोदड़ो]] में स्थित एक [[बौद्ध]] [[स्तूप]] की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता [[सिंधु नदी]] की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम "सिधु घाटी की सभ्यता" रखा गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्धु घाटी सभ्यता]]
||[[चित्र:Mohenjodaro-Sindh.jpg|right|120px|सिन्ध में मोहनजोदड़ो]]'सिन्धु घाटी सभ्यता' की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही 'पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में [[1921]] में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद [[1922]] में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में [[पाकिस्तान]] के [[सिंध प्रांत]] के लरकाना ज़िले के [[मोहनजोदड़ो]] में स्थित एक [[बौद्ध]] [[स्तूप]] की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता [[सिंधु नदी]] की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम "सिधु घाटी की सभ्यता" रखा गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्धु घाटी सभ्यता]]
{पकी [[मिट्टी]] के बने हल का एक प्रतिरूप कहाँ से प्राप्त हुआ है? (पृ.सं. 175
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+वनवाली
-[[कालीबंगा]]
-[[राखीगढ़ी]]
-[[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]]


{[[आमरी]] संस्कृति कहाँ पर पनपी थी? (पृ.सं. 175
{[[आमरी]] संस्कृति कहाँ पर पनपी थी? (पृ.सं. 175
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+[[सिन्ध]]
+[[सिन्ध]]
||सिन्ध प्रांत [[पाकिस्तान]] के चार प्रान्तों में से एक है। यहाँ पन्द्रह प्रतिशत जनता वास करती है। यह सिन्धियों का मूल स्थान है। [[सिन्ध]] [[संस्कृत]] के शब्द सिंधु से बना है, जिसका अर्थ है- [[समुद्र]]। [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] में सिन्ध नामक देश को [[श्रीराम|श्रीरामचंद्र]] द्वारा [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] को दिए जाने का उल्लेख है। इस प्रसंग में यह भी वर्णित है कि युधाजित द्वारा [[केकय देश|केकय]] नरेश से संदेश मिलने पर उन्होंने यह कार्य सम्पन्न किया था। संभव है कि सिन्ध देश उस समय केकय देश के अधीन रहा हो। सिन्धु पर अधिकार करने के लिए भरत ने [[गंधर्व|गंधर्वों]] को हराया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्ध]] और [[आमरी]]
||सिन्ध प्रांत [[पाकिस्तान]] के चार प्रान्तों में से एक है। यहाँ पन्द्रह प्रतिशत जनता वास करती है। यह सिन्धियों का मूल स्थान है। [[सिन्ध]] [[संस्कृत]] के शब्द सिंधु से बना है, जिसका अर्थ है- [[समुद्र]]। [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] में सिन्ध नामक देश को [[श्रीराम|श्रीरामचंद्र]] द्वारा [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] को दिए जाने का उल्लेख है। इस प्रसंग में यह भी वर्णित है कि युधाजित द्वारा [[केकय देश|केकय]] नरेश से संदेश मिलने पर उन्होंने यह कार्य सम्पन्न किया था। संभव है कि सिन्ध देश उस समय केकय देश के अधीन रहा हो। सिन्धु पर अधिकार करने के लिए भरत ने [[गंधर्व|गंधर्वों]] को हराया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्ध]] और [[आमरी]]
{पकी [[मिट्टी]] के बने हल का एक प्रतिरूप कहाँ से प्राप्त हुआ है? (पृ.सं. 175
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+वनवाली
-[[कालीबंगा]]
-[[राखीगढ़ी]]
-[[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]]
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08:57, 12 मार्च 2013 का अवतरण

1 निम्न में से कौन-सी फ़सल हड़प्पा संस्कृति के लोगों को अज्ञात प्रतीत होती है?(पृ.सं. 175

चावल
कपास
ज्वार (रागी)
जौ

2 निम्नलिखित में से कौन एक हड़प्पा संस्कृति की सुदूर पश्चिमी बस्ती थी? (पृ.सं. 175

लोथल
सुत्कागेनडोर
रंगपुर
मांडा

3 'कनिक्कई' नामक कर निम्नलिखित में से किस राज्य में वसूला जाता था?(भारतकोश)

चोल साम्राज्य
पल्लव साम्राज्य
विजयनगर साम्राज्य
राष्ट्रकूट साम्राज्य

4 भारत के इतिहास के सन्दर्भ में अब्दुल हमीद लाहौरी कौन थे? (पृ.सं. 30

अकबर के शासन में एक महत्त्वपूर्ण सैन्य कमांडर
औरंगज़ेब का एक महत्त्वपूर्ण सामन्त तथा विश्वासपात्र
शाहजहाँ के शासन का एक राजकीय इतिहासकार
मुहम्मदशाह के शासन में एक इतिवृत्तिकार तथा कवि

5 सिकन्दर के भारत अभियान के समय उसके साथ कई लेखक भी आये थे। निम्नलिखित में से कौन सिकन्दर का समकालीन नहीं है? (पृ.सं. 171

अरिस्टयेबुलस
नियार्कस
यूनेनीस
इनमें से कोई नहीं

6 हड़प्पाकालीन सभ्यता मुख्यत: निम्नलिखित में से किन प्रदेशों में केन्द्रीयभूत थी? (पृ.सं. 174

पंजाब, राजस्थान और गुजरात
पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश
हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली
गुजरात, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश

7 चीनी यात्रियों के भारत भ्रमण की श्रृंखला में सुंगयुन का उल्लेख प्राप्त होता है। वह बौद्ध ग्रंथों की खोज में भारत आया था। उसके भारत आने का समय क्या था? (पृ.सं. 171

518 ई.
629 ई.
642 ई.
817 ई.

8 किस ग्रंथ में यह विवरण मिलता है कि पुष्यमित्र शुंग ने कई यज्ञ किये थे? (पृ.सं. 171

पाणिनी के व्याकरण में
यास्क के निरुक्त में
हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व में
पतंजलि के महाभाष्य में

9 निम्नलिखित में से किस विदेशी अभिलेख में भारतीय वैदिक मंडल के देवताओं वरुण, इन्द्र एवं नासत्य का विवरण प्राप्त होता है? (पृ.सं. 173

पर्सिपोलिस के बेहिस्तून अभिलेख
एशिया माइनर के बोगाजकोई अभिलेख
मितन्नी अभिलेख
इनमें से कोई नहीं

10 निम्नलिखित कथनों में से असत्य कथन को छाँटिये? (पृ.सं. 172

चोल स्वयं को सूर्यवंशी मानते थे
नरसिंह वर्मन द्वितीय ने एक दूतमंडल चीन भेजा था
चालुक्य कुलोत्तुंग मातृपक्ष से चोलों से सम्बन्धित था
नन्दि वर्मन द्वितीय ने भारतीय संस्कृति के प्रचार में अनिच्छा प्रदर्शित की।

11 निम्नलिखित में से कौन-सा हड़प्पा संस्कृति का एक स्थल है, जहाँ से 'फ़ारस की खाड़ी' की मुद्रा उत्खनन से प्राप्त हुई थी? (पृ.सं. 175

मोहनजोदड़ो
धौलावीरा
लोथल
कालीबंगा

12 ह्वेनसांग के विवरणों में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख नहीं मिलता? (पृ.सं. 171

कान्यकुब्ज
नालन्दा
प्रयाग
इनमें से कोई नहीं

13 सिन्धु घाटी सभ्यता के सभी स्थलों की सर्व-सामान्य विशेषताएँ क्या थीं? (पृ.सं. 175

पकायी गई ईंटों और मिट्टी के बर्तनों का उपयोग, विस्तृत जल निकास प्रणाली, दलदल और जंगली जानवरों का पाया जाना।
जलवायु, वनस्पति, जीव जन्तु और कृत्रिम सिंचाई
मरुभूमि, नदियाँ एवं प्राणी विज्ञान की विशेषताएँ
भवन, नगर योजना और और शवदाह प्रणाली

14 पकी मिट्टी के बने हल का एक प्रतिरूप कहाँ से प्राप्त हुआ है? (पृ.सं. 175

वनवाली
कालीबंगा
राखीगढ़ी
रंगपुर

15 आमरी संस्कृति कहाँ पर पनपी थी? (पृ.सं. 175

कच्छ क्षेत्र
अफ़ग़ानिस्तान
बलूचिस्तान
सिन्ध