"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/1": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg| | ||[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|right|120px|रामलीला में रावण]]'रावण' [[रामायण]] का एक विशेष पात्र है। वह स्वर्ण नगरी [[लंका]] का राजा था। [[रावण]] अपने दस सिरों के कारण भी जाना जाता था, जिस कारण उसका एक अन्य नाम 'दशानन' अर्थात 'दस मुख वाला' भी था। किसी भी कृति के लिये अच्छे पात्रों के साथ ही साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किन्तु रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण अधिक थे। जीतने वाला हमेशा अपने को उत्तम लिखता है, अतः [[रावण]] को बुरा कहा गया है। रावण को चारों [[वेद|वेदों]] का ज्ञाता कहा गया है। [[संगीत]] के क्षेत्र में भी रावण की विद्वता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती थी। [[वीणा]] बजाने में रावण सिद्धहस्त था। उसने एक [[वाद्य यंत्र|वाद्य]] भी बनाया था, जो आज के 'बेला' या 'वायलिन' का ही मूल और प्रारम्भिक रूप है। इस वाद्य को 'रावणहत्था' कहते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रावण]] | ||
{निम्न में से कौन '[[कवितावली]]' के रचनाकार हैं? | {निम्न में से कौन '[[कवितावली]]' के रचनाकार हैं? | ||
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||[[चित्र:Tulsidas.jpg|right|100px|तुलसीदास]][[हिन्दी साहित्य]] के आकाश के परम [[नक्षत्र]] [[गोस्वामी तुलसीदास]] [[भक्तिकाल]] की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि [[कवि]] थे। वे एक [[कवि]], [[भक्त]] तथा समाज सुधारक इन तीनो रूपों में मान्य है। युवावस्था में जब इनका परिचय [[राम]] भक्त साधुओं से हुआ, तब इन्हें ज्ञानार्जन का अनुपम अवसर मिला। तुलसीदास साधुओं के साथ भ्रमण करते रहे और इस प्रकार समाज की तत्कालीन स्थिति से इनका सीधा संपर्क हुआ। इसी दीर्घकालीन अनुभव और अध्ययन का परिणाम तुलसी की अमूल्य कृतियाँ हैं, जो उस समय के भारतीय समाज के लिए तो उन्नायक सिद्ध हुई ही, आज भी जीवन को मर्यादित करने के लिए उतनी ही उपयोगी हैं। [[तुलसीदास]] द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 39 बताई जाती है। इनमें '[[रामचरितमानस]]', '[[कवितावली]]', '[[विनयपत्रिका]]', '[[दोहावली -तुलसीदास|दोहावली]]', '[[गीतावली -तुलसीदास|गीतावली]]', '[[जानकीमंगल]]', '[[हनुमान चालीसा]]', '[[बरवै रामायण]]' आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तुलसीदास]] | |||
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06:55, 3 जून 2013 का अवतरण
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