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[[चित्र:doli.jpg|border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 3 जून 2013]]
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 3 जून 2013|घूँघट से मरघट तक]]</center>
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छोटे पहलवान: "फिर क्या !.... सब्ज़ी होगी मटर की, और उस पर  आलू के छींटे... !" ये कहकर पहलवान ने एक आँख दबाई और फिर प्रश्नवाचक मुद्रा बना ली और बोला " कुछ समझे...?"
मामा: "नहीं समझे...?"
छोटे पहलवान: "मतलब ये है मामा ! कि मटर की सब्ज़ी पर आलू के पतले-पतले टुकड़े डले होंगे जिससे कि हमारी रईसी का पता बारातियों को चले... अरे मामा ! आलू हैं दस रुपये किलो और मटर इस समय मंहगी है, पूरे पचास रुपये किलो। तो फिर बाराती कहीं ये न समझें कि सस्ते आलू से टरका दिए... इसलिए सब्ज़ी मटर की होगी और आलू के तो बस छींटे...!" [[भारतकोश सम्पादकीय 3 जून 2013|...पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 15 अप्रॅल 2013|वोटरानी और वोटर]]  ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|कबीर का कमाल]] 
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10:59, 3 जून 2013 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
घूँघट से मरघट तक

छोटे पहलवान: "फिर क्या !.... सब्ज़ी होगी मटर की, और उस पर आलू के छींटे... !" ये कहकर पहलवान ने एक आँख दबाई और फिर प्रश्नवाचक मुद्रा बना ली और बोला " कुछ समझे...?"
मामा: "नहीं समझे...?"
छोटे पहलवान: "मतलब ये है मामा ! कि मटर की सब्ज़ी पर आलू के पतले-पतले टुकड़े डले होंगे जिससे कि हमारी रईसी का पता बारातियों को चले... अरे मामा ! आलू हैं दस रुपये किलो और मटर इस समय मंहगी है, पूरे पचास रुपये किलो। तो फिर बाराती कहीं ये न समझें कि सस्ते आलू से टरका दिए... इसलिए सब्ज़ी मटर की होगी और आलू के तो बस छींटे...!" ...पूरा पढ़ें

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