"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/1": अवतरणों में अंतर

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{[[रामायण]] कालीन [[सरयू नदी]] को वर्तमान में क्या कहते हैं?(पृ.सं.-12
{[[रामायण]] कालीन [[सरयू नदी]] को वर्तमान में क्या कहते हैं?
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-[[यमुना नदी|यमुना]]
-[[यमुना नदी|यमुना]]
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||[[चित्र:Karnali-River-2.jpg|right|100px|घाघरा नदी]][[श्रीराम]] की जन्म-भूमि [[अयोध्या]] [[उत्तर प्रदेश]] में [[सरयू नदी]] के दाएँ तट पर स्थित है। नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। '[[रामायण]]' के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में [[जल]] समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम [[उत्तर प्रदेश]] के [[बहराइच ज़िला|बहराइच ज़िले]] से हुआ है। [[बहराइच]] से निकलकर यह नदी [[गोंडा ज़िला|गोंडा]] से होती हुई [[अयोध्या]] तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में 'पसका' नामक [[तीर्थ स्थान]] पर [[घाघरा नदी]] से मिलती थी। अयोध्या तक ये नदी 'सरयू' के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी 'घाघरा' के नाम से जानी जाती है। सरयू नदी की कुल लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरयू नदी]], [[घाघरा नदी]]
||[[चित्र:Karnali-River-2.jpg|right|100px|घाघरा नदी]][[श्रीराम]] की जन्म-भूमि [[अयोध्या]] [[उत्तर प्रदेश]] में [[सरयू नदी]] के दाएँ तट पर स्थित है। नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। '[[रामायण]]' के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में [[जल]] समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम [[उत्तर प्रदेश]] के [[बहराइच ज़िला|बहराइच ज़िले]] से हुआ है। [[बहराइच]] से निकलकर यह नदी [[गोंडा ज़िला|गोंडा]] से होती हुई [[अयोध्या]] तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में 'पसका' नामक [[तीर्थ स्थान]] पर [[घाघरा नदी]] से मिलती थी। अयोध्या तक ये नदी 'सरयू' के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी 'घाघरा' के नाम से जानी जाती है। सरयू नदी की कुल लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सरयू नदी]], [[घाघरा नदी]]


{[[समुद्र]] में रहने वाली उस [[नाग]] माता का क्या नाम था, जिसने समुद्र लाँघते हुए [[हनुमान]] को रोका और उन्हें खा जाने को उद्यत हुई थी?(पृ.सं.-12
{[[समुद्र]] में रहने वाली उस [[नाग]] माता का क्या नाम था, जिसने समुद्र लाँघते हुए [[हनुमान]] को रोका और उन्हें खा जाने को उद्यत हुई थी?
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-त्रिजटा
-त्रिजटा
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||[[चित्र:Hanuman-Sursa.jpg|right|100px|सुरसा व हनुमान]]'सुरसा' [[रामायण]] के अनुसार [[समुद्र]] में रहने वाली [[नाग]] माता थी। [[सीता|सीताजी]] की खोज में समुद्र पार करने के समय [[सुरसा]] ने राक्षसी का रूप धारण कर [[हनुमान]] का रास्ता रोका था और उन्हें खा जाने के लिए उद्धत हुई थी। समझाने पर जब वह नहीं मानी, तब हनुमान ने अपना शरीर उससे भी बड़ा कर लिया। जैसे-जैसे सुरसा अपना मुँह बढ़ाती जाती, वैसे-वैसे हनुमान भी अपना शरीर उसके आकार से अधिक बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान ने अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुँह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आये। हनुमान की बुद्धिमानी और वीरता से प्रसन्न होकर [[सुरसा]] ने हनुमान को आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरसा]]
||[[चित्र:Hanuman-Sursa.jpg|right|100px|सुरसा व हनुमान]]'सुरसा' [[रामायण]] के अनुसार [[समुद्र]] में रहने वाली [[नाग]] माता थी। [[सीता|सीताजी]] की खोज में समुद्र पार करने के समय [[सुरसा]] ने राक्षसी का रूप धारण कर [[हनुमान]] का रास्ता रोका था और उन्हें खा जाने के लिए उद्धत हुई थी। समझाने पर जब वह नहीं मानी, तब हनुमान ने अपना शरीर उससे भी बड़ा कर लिया। जैसे-जैसे सुरसा अपना मुँह बढ़ाती जाती, वैसे-वैसे हनुमान भी अपना शरीर उसके आकार से अधिक बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान ने अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुँह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आये। हनुमान की बुद्धिमानी और वीरता से प्रसन्न होकर [[सुरसा]] ने हनुमान को आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरसा]]


{[[राजा दशरथ]] ने पुत्रोत्पत्ति हेतु जो [[यज्ञ]] किया था, उसका नाम क्या था?(पृ.सं.-13
{[[राजा दशरथ]] ने पुत्रोत्पत्ति हेतु जो [[यज्ञ]] किया था, उसका नाम क्या था?
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-[[राजसूय यज्ञ|राजसूय]]
-[[राजसूय यज्ञ|राजसूय]]
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||[[पुराण|पुराणों]] और [[रामायण]] में वर्णित [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु वंशी]] [[राजा दशरथ]] महाराज [[अज राजा|अज]] के पुत्र थे। इनकी [[माता]] का नाम इन्दुमती था। इन्होंने [[देवता|देवताओं]] की ओर से कई बार [[असुर|असुरों]] को पराजित किया था। [[वैवस्वत मनु]] के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुये, जिनमें से [[राजा दशरथ]] भी एक थे। राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं। सबसे बड़ी [[कौशल्या]], दूसरी [[सुमित्रा]] और तीसरी [[कैकेयी]]। परंतु तीनों रानियाँ निःसंतान थीं। इसी से राजा दशरथ अत्यधिक चिंतित रहते थे। एक बार अपनी चिंता का कारण दशरथ ने राजगुरु [[वसिष्ठ]] को बताया। इस पर राजगुरु वसिष्ठ ने उनसे कहा- "राजन! उपाय से भी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। तुम श्रृंगी ऋषि को बुलाकर 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' कराओ। तुम्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजा दशरथ]]
||[[पुराण|पुराणों]] और [[रामायण]] में वर्णित [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु वंशी]] [[राजा दशरथ]] महाराज [[अज राजा|अज]] के पुत्र थे। इनकी [[माता]] का नाम इन्दुमती था। इन्होंने [[देवता|देवताओं]] की ओर से कई बार [[असुर|असुरों]] को पराजित किया था। [[वैवस्वत मनु]] के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुये, जिनमें से [[राजा दशरथ]] भी एक थे। राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं। सबसे बड़ी [[कौशल्या]], दूसरी [[सुमित्रा]] और तीसरी [[कैकेयी]]। परंतु तीनों रानियाँ निःसंतान थीं। इसी से राजा दशरथ अत्यधिक चिंतित रहते थे। एक बार अपनी चिंता का कारण दशरथ ने राजगुरु [[वसिष्ठ]] को बताया। इस पर राजगुरु वसिष्ठ ने उनसे कहा- "राजन! उपाय से भी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। तुम श्रृंगी ऋषि को बुलाकर 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' कराओ। तुम्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजा दशरथ]]


{[[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] की तपस्या जिस [[अप्सरा]] ने भंग की थी, उसका नाम क्या था?(पृ.सं.-13
{[[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] की तपस्या जिस [[अप्सरा]] ने भंग की थी, उसका नाम क्या था?
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-[[उर्वशी]]
-[[उर्वशी]]
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||[[चित्र:Vishwamitra-Menaka.jpg|right|90px|मेनका और विश्वामित्र]]'मेनका' स्वर्ग की सर्वसुन्दर [[अप्सरा]] थी। देवराज [[इन्द्र]] ने [[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] के नये सृष्टि के निर्माण के तप से डर कर उनकी तपस्या भंग करने के लिए [[मेनका]] को [[पृथ्वी]] पर भेजा था। मेनका ने अपने रूप और सौन्दर्य से तपस्या में लीन विश्वामित्र का तप भंग कर दिया। विश्वामित्र ने मेनका से [[विवाह]] कर लिया और वन में रहने लगे। विश्वामित्र सब कुछ छोड़कर मेनका के ही प्रेम में डूब गये थे। मेनका से विश्वामित्र ने एक सुन्दर कन्या प्राप्त की, जिसका नाम [[शकुंतला]] रखा गया। जब शकुंतला छोटी थी, तभी एक दिन मेनका उसे और विश्वामित्र को वन में छोड़कर स्वर्ग चली गई। विश्वामित्र का तप भंग करने में सफल होकर मेनका देवलोक लौटी तो वहाँ उसकी कामोद्दीपक शक्ति और कलात्मक सामर्थ्य की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई और देवसभा में उसका आदर बहुत बढ़ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेनका]]
||[[चित्र:Vishwamitra-Menaka.jpg|right|90px|मेनका और विश्वामित्र]]'मेनका' स्वर्ग की सर्वसुन्दर [[अप्सरा]] थी। देवराज [[इन्द्र]] ने [[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] के नये सृष्टि के निर्माण के तप से डर कर उनकी तपस्या भंग करने के लिए [[मेनका]] को [[पृथ्वी]] पर भेजा था। मेनका ने अपने रूप और सौन्दर्य से तपस्या में लीन विश्वामित्र का तप भंग कर दिया। विश्वामित्र ने मेनका से [[विवाह]] कर लिया और वन में रहने लगे। विश्वामित्र सब कुछ छोड़कर मेनका के ही प्रेम में डूब गये थे। मेनका से विश्वामित्र ने एक सुन्दर कन्या प्राप्त की, जिसका नाम [[शकुंतला]] रखा गया। जब शकुंतला छोटी थी, तभी एक दिन मेनका उसे और विश्वामित्र को वन में छोड़कर स्वर्ग चली गई। विश्वामित्र का तप भंग करने में सफल होकर मेनका देवलोक लौटी तो वहाँ उसकी कामोद्दीपक शक्ति और कलात्मक सामर्थ्य की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई और देवसभा में उसका आदर बहुत बढ़ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेनका]]


{[[जनक|राजा जनक]] के छोटे भाई का क्या नाम था?(पृ.सं.-13
{[[जनक|राजा जनक]] के छोटे भाई का क्या नाम था?
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-कुशनाभ
-कुशनाभ
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||'जनक' [[मिथिला]] के राजा और [[निमि]] के पुत्र थे। जनक नन्दनी [[सीता]] का [[विवाह]] [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के ज्येष्ठ पुत्र [[श्रीराम]] के साथ सम्पन्न हुआ था। [[जनक]] का वास्तविक नाम 'सिरध्वज' था। इनके छोटे भाई का नाम 'कुशध्वज' था। तत्कालीन समय में राजा जनक अपने अध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के लिए बहुत ही प्रसिद्ध थे। उनकी विद्वता की हर कोई प्रशंसा करता था। जनक के पिता [[निमि]] और [[वसिष्ठ]] ने एक-दूसरे को शाप दिया, जिससे वे दोनों जल कर भस्म हो गये थे। ऋषियों ने एक विशेष उपचार से [[यज्ञ]] समाप्ति तक निमि का शरीर सुरक्षित रखा। निमि के कोई सन्तान नहीं थी। अत: ऋषियों ने अरणि से उनके शरीर का मन्थन किया, जिससे इनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। शरीर मन्थन से उत्पन्न होने के कारण जनक को 'मिथि' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनक]]
||'जनक' [[मिथिला]] के राजा और [[निमि]] के पुत्र थे। जनक नन्दनी [[सीता]] का [[विवाह]] [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के ज्येष्ठ पुत्र [[श्रीराम]] के साथ सम्पन्न हुआ था। [[जनक]] का वास्तविक नाम 'सिरध्वज' था। इनके छोटे भाई का नाम 'कुशध्वज' था। तत्कालीन समय में राजा जनक अपने अध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के लिए बहुत ही प्रसिद्ध थे। उनकी विद्वता की हर कोई प्रशंसा करता था। जनक के पिता [[निमि]] और [[वसिष्ठ]] ने एक-दूसरे को शाप दिया, जिससे वे दोनों जल कर भस्म हो गये थे। ऋषियों ने एक विशेष उपचार से [[यज्ञ]] समाप्ति तक निमि का शरीर सुरक्षित रखा। निमि के कोई सन्तान नहीं थी। अत: ऋषियों ने अरणि से उनके शरीर का मन्थन किया, जिससे इनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। शरीर मन्थन से उत्पन्न होने के कारण जनक को 'मिथि' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनक]]


{[[शत्रुघ्न]] के [[पुरोहित]] का क्या नाम था?(पृ.सं.-13
{[[शत्रुघ्न]] के [[पुरोहित]] का क्या नाम था?
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-शतानीक
-शतानीक
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||[[चित्र:Ramlila-Mathura-13.jpg|right|100px|राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप]]'शत्रुघ्न' [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के चौथे पुत्र और [[श्रीराम]] के छोटे भाई थे। '[[वाल्मीकि रामायण]]' में वर्णित है कि अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानीयाँ थीं- [[कौशल्या]], [[कैकेयी]] और [[सुमित्रा]]। कौशल्या से [[राम]], कैकई से [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] और सुमित्रा से [[लक्ष्मण]] एवं [[शत्रुघ्न]] उत्पन्न हुए थे। शत्रुघ्न का शौर्य भी अनुपम था। [[सीता]] के वनवास के बाद एक दिन [[ऋषि|ऋषियों]] ने भगवान श्रीराम की सभा में उपस्थित होकर [[लवणासुर]] के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। शत्रुघ्न ने श्रीराम की आज्ञा से वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुर का वध किया और '[[मधुपुरी]]' बसाकर वहाँ बहुत दिनों तक शासन किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शत्रुघ्न]]
||[[चित्र:Ramlila-Mathura-13.jpg|right|100px|राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप]]'शत्रुघ्न' [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के चौथे पुत्र और [[श्रीराम]] के छोटे भाई थे। '[[वाल्मीकि रामायण]]' में वर्णित है कि अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानीयाँ थीं- [[कौशल्या]], [[कैकेयी]] और [[सुमित्रा]]। कौशल्या से [[राम]], कैकई से [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] और सुमित्रा से [[लक्ष्मण]] एवं [[शत्रुघ्न]] उत्पन्न हुए थे। शत्रुघ्न का शौर्य भी अनुपम था। [[सीता]] के वनवास के बाद एक दिन [[ऋषि|ऋषियों]] ने भगवान श्रीराम की सभा में उपस्थित होकर [[लवणासुर]] के अत्याचारों का वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। शत्रुघ्न ने श्रीराम की आज्ञा से वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुर का वध किया और '[[मधुपुरी]]' बसाकर वहाँ बहुत दिनों तक शासन किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शत्रुघ्न]]


{किस [[देवता]] का एक नाम 'सर्पमाली' है?(पृ.सं.-16
{किस [[देवता]] का एक नाम 'सर्पमाली' है?
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-[[विष्णु]]
-[[विष्णु]]
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||[[चित्र:Nageshwar-Mahadev-Gujarat-1.jpg|right|90px|नंगेश्वर महादेव, द्वारका]]'[[शिव]]' [[हिन्दू धर्म]] [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। भगवान [[शिव]] का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रुद्राणियाँ, चौंसठ योगिनियाँ तथा भैरवादि इनके सहचर और सहचरी हैं। [[पार्वती|माता पार्वती]] की सखियों में [[विजया]] आदि प्रसिद्ध हैं। यद्यपि शिव सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि [[काशी]] और [[कैलास पर्वत|कैलास]], ये दो उनके मुख्य निवास स्थान कहे गये हैं। भगवान शिव [[देवता|देवताओं]] के उपास्य तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अनेक [[असुर|असुरों]]- [[अंधक (दैत्य)|अन्धक]], [[दुन्दुभी दैत्य|दुन्दुभी]], महिष, त्रिपुर, [[रावण]], निवात-कवच आदि को भी अतुल ऐश्वर्य प्रदान किया। [[कुबेर]] आदि लोकपालों को उनकी कृपा से [[यक्ष|यक्षों]] का स्वामित्व प्राप्त हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शिव]]
||[[चित्र:Nageshwar-Mahadev-Gujarat-1.jpg|right|90px|नंगेश्वर महादेव, द्वारका]]'[[शिव]]' [[हिन्दू धर्म]] [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। भगवान [[शिव]] का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रुद्राणियाँ, चौंसठ योगिनियाँ तथा भैरवादि इनके सहचर और सहचरी हैं। [[पार्वती|माता पार्वती]] की सखियों में [[विजया]] आदि प्रसिद्ध हैं। यद्यपि शिव सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि [[काशी]] और [[कैलास पर्वत|कैलास]], ये दो उनके मुख्य निवास स्थान कहे गये हैं। भगवान शिव [[देवता|देवताओं]] के उपास्य तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अनेक [[असुर|असुरों]]- [[अंधक (दैत्य)|अन्धक]], [[दुन्दुभी दैत्य|दुन्दुभी]], महिष, त्रिपुर, [[रावण]], निवात-कवच आदि को भी अतुल ऐश्वर्य प्रदान किया। [[कुबेर]] आदि लोकपालों को उनकी कृपा से [[यक्ष|यक्षों]] का स्वामित्व प्राप्त हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शिव]]


{किस [[ऋषि]] को 'समुद्रचुलुक' कहा जाता है?(पृ.सं.-16
{किस [[ऋषि]] को 'समुद्रचुलुक' कहा जाता है?
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-[[भारद्वाज]]
-[[भारद्वाज]]
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||[[चित्र:Garuda.jpg|right|100px|गरुड़]]'गरुड़' पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू धर्म]] की मान्यताओं के अनुसार पक्षियों के राजा और भगवान [[विष्णु]] के वाहन हैं। ये [[कश्यप|कश्यप ऋषि]] और [[विनता]] के पुत्र तथा [[अरुण देवता|अरुण]] के भ्राता हैं। [[लंका]] के राजा [[रावण]] के पुत्र [[इन्द्रजित]] ने जब युद्ध में [[राम]] और [[लक्ष्मण]] को नागपाश से बाँध लिया, तब [[गरुड़]] ने ही उन्हें इस बंधन से मुक्त किया था। हिन्दू धर्म तथा [[पुराण|पुराणों]] में गरुड़ से सम्बन्धित कई प्रसंग मिलते हैं। [[काकभुशुंडी]] नामक एक कौए ने गरुड़ को श्रीराम कथा सुनाई थी। [[महाभारत]] काल में [[कालिय नाग]] भी इनसे भय खाकर [[यमुना नदी|यमुना]] में [[कालियदह]] में छिप गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गरुड़]]
||[[चित्र:Garuda.jpg|right|100px|गरुड़]]'गरुड़' पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू धर्म]] की मान्यताओं के अनुसार पक्षियों के राजा और भगवान [[विष्णु]] के वाहन हैं। ये [[कश्यप|कश्यप ऋषि]] और [[विनता]] के पुत्र तथा [[अरुण देवता|अरुण]] के भ्राता हैं। [[लंका]] के राजा [[रावण]] के पुत्र [[इन्द्रजित]] ने जब युद्ध में [[राम]] और [[लक्ष्मण]] को नागपाश से बाँध लिया, तब [[गरुड़]] ने ही उन्हें इस बंधन से मुक्त किया था। हिन्दू धर्म तथा [[पुराण|पुराणों]] में गरुड़ से सम्बन्धित कई प्रसंग मिलते हैं। [[काकभुशुंडी]] नामक एक कौए ने गरुड़ को श्रीराम कथा सुनाई थी। [[महाभारत]] काल में [[कालिय नाग]] भी इनसे भय खाकर [[यमुना नदी|यमुना]] में [[कालियदह]] में छिप गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गरुड़]]


{[[निमि|राजा निमि]] की राजधानी का नाम क्या था?(पृ.सं.-16
{[[निमि|राजा निमि]] की राजधानी का नाम क्या था?
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+[[वैजयंत]]
+[[वैजयंत]]
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||राजा निमि महाराज [[इक्ष्वाकु]] के पुत्र थे और [[महर्षि गौतम]] के [[आश्रम]] के समीप [[वैजयन्त]] नामक नगर बसाकर वहाँ का राज्य करते थे। एक बार [[निमि]] ने एक सहस्त्र वर्षीय [[यज्ञ]] करने के लिये [[वसिष्ठ]] को वरण किया। लेकिन उस समय वसिष्ठ जी [[इन्द्र]] का यज्ञ कर रहे थे। राजा निमि क्षण भंगुर शरीर विचार करके [[गौतम ऋषि|गौतम]] आदि अन्य होताओं को पुनः वरण करके यज्ञ करने लगे, जब वसिष्ठ को पता चला कि निमि दूसरों से यज्ञ करा रहे हैं तो इन्होंने शाप दे दिया कि ये शरीर से रहित हो जायें। लोभ-वश वसिष्ठ ने शाप दिया है, ऐसा जानकर [[निमि]] ने भी वसिष्ठ को देह से रहित होने का श्राप दे दिया। परिणामस्वरूप दोनों ही जलकर भस्म हो गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[निमि|राजा निमि]], [[वैजयंत]]
||राजा निमि महाराज [[इक्ष्वाकु]] के पुत्र थे और [[महर्षि गौतम]] के [[आश्रम]] के समीप [[वैजयन्त]] नामक नगर बसाकर वहाँ का राज्य करते थे। एक बार [[निमि]] ने एक सहस्त्र वर्षीय [[यज्ञ]] करने के लिये [[वसिष्ठ]] को वरण किया। लेकिन उस समय वसिष्ठ जी [[इन्द्र]] का यज्ञ कर रहे थे। राजा निमि क्षण भंगुर शरीर विचार करके [[गौतम ऋषि|गौतम]] आदि अन्य होताओं को पुनः वरण करके यज्ञ करने लगे, जब वसिष्ठ को पता चला कि निमि दूसरों से यज्ञ करा रहे हैं तो इन्होंने शाप दे दिया कि ये शरीर से रहित हो जायें। लोभ-वश वसिष्ठ ने शाप दिया है, ऐसा जानकर [[निमि]] ने भी वसिष्ठ को देह से रहित होने का श्राप दे दिया। परिणामस्वरूप दोनों ही जलकर भस्म हो गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[निमि|राजा निमि]], [[वैजयंत]]


{किस [[देवता]] का एक नाम 'स्थाणु' है?(पृ.सं.-16
{किस [[देवता]] का एक नाम 'स्थाणु' है?
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-[[विष्णु]]
-[[विष्णु]]
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||[[चित्र:Statue-Shiva-Bangalore.jpg|right|90px|शिव की मूर्ति, बैंगलूर]]भगवान [[शिव]] [[हिन्दू धर्म]] के प्रमुख [[देवता|देवताओं]] में से हैं। [[वेद]] में इनका नाम [[रुद्र]] है। शिव व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं। इनकी अर्ध्दांगिनी (शक्ति) का नाम [[पार्वती]] और इनके पुत्र '[[स्कन्द]]' और '[[गणेश]]' हैं। शिव योगी के रूप में माने जाते हैं और उनकी [[पूजा]] '[[शिवलिंग|लिंग]]' के रूप में होती है। भगवान शिव सौम्य एवं रौद्र रूप दोनों के लिए जाने जाते हैं। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के वे अधिपति हैं। त्रिदेवों में भगवान [[शिव]] संहार के [[देवता]] माने जाते हैं। शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन उनका लय और प्रलय दोनों पर समान अधिकार है। इनके अन्य [[भक्त|भक्तों]] में '[[त्रिहारिणी]]' भी थे और शिव त्रिहारिणी को अपने पुत्रों से भी अधिक प्यार करते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शिव]]
||[[चित्र:Statue-Shiva-Bangalore.jpg|right|90px|शिव की मूर्ति, बैंगलूर]]भगवान [[शिव]] [[हिन्दू धर्म]] के प्रमुख [[देवता|देवताओं]] में से हैं। [[वेद]] में इनका नाम [[रुद्र]] है। शिव व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं। इनकी अर्ध्दांगिनी (शक्ति) का नाम [[पार्वती]] और इनके पुत्र '[[स्कन्द]]' और '[[गणेश]]' हैं। शिव योगी के रूप में माने जाते हैं और उनकी [[पूजा]] '[[शिवलिंग|लिंग]]' के रूप में होती है। भगवान शिव सौम्य एवं रौद्र रूप दोनों के लिए जाने जाते हैं। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के वे अधिपति हैं। त्रिदेवों में भगवान [[शिव]] संहार के [[देवता]] माने जाते हैं। शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन उनका लय और प्रलय दोनों पर समान अधिकार है। इनके अन्य [[भक्त|भक्तों]] में '[[त्रिहारिणी]]' भी थे और शिव त्रिहारिणी को अपने पुत्रों से भी अधिक प्यार करते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शिव]]


{[[रामायण]] के सबसे छोटे कांड का क्या नाम है?(पृ.सं.-18
{[[रामायण]] के सबसे छोटे कांड का क्या नाम है?
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-[[बाल काण्ड वा. रा.|बालकांड]]
-[[बाल काण्ड वा. रा.|बालकांड]]

14:15, 4 जून 2013 का अवतरण

1 रामायण कालीन सरयू नदी को वर्तमान में क्या कहते हैं?

यमुना
घाघरा
गोमती
गंगा

2 समुद्र में रहने वाली उस नाग माता का क्या नाम था, जिसने समुद्र लाँघते हुए हनुमान को रोका और उन्हें खा जाने को उद्यत हुई थी?

त्रिजटा
मंथरा
बलंधरा
सुरसा

3 राजा दशरथ ने पुत्रोत्पत्ति हेतु जो यज्ञ किया था, उसका नाम क्या था?

राजसूय
पुत्र कामेष्टि यज्ञ
अश्वमेध
इनमें से कोई नहीं

4 महर्षि विश्वामित्र की तपस्या जिस अप्सरा ने भंग की थी, उसका नाम क्या था?

उर्वशी
रम्भा
घृताची
मेनका

5 राजा जनक के छोटे भाई का क्या नाम था?

कुशनाभ
कुश
कुशध्वज
सिरध्वज

6 शत्रुघ्न के पुरोहित का क्या नाम था?

शतानीक
उपमन्यु
आरुणि
कांचन

7 किस देवता का एक नाम 'सर्पमाली' है?

विष्णु
इन्द्र
वरुण
शिव

8 किस ऋषि को 'समुद्रचुलुक' कहा जाता है?

भारद्वाज
अगस्त्य
याज्ञवल्क्य
वाल्मीकि

9 शबरी को किस ऋषि ने अपने आश्रम में स्थान दिया था?

मतंग
भारद्वाज
विश्वामित्र
परशुराम

10 निम्नलिखित में से किसने राम-लक्ष्मण को नागपाश से मुक्ति दिलाई थी?

काकभुशुंडी
गरुड़
जटायु
सम्पाती

12 किस देवता का एक नाम 'स्थाणु' है?

विष्णु
गणेश
इन्द्र
शिव

13 रामायण के सबसे छोटे कांड का क्या नाम है?

बालकांड
अरण्यकांड
सुन्दरकांड
उत्तरकांड

14 लंका का राजा रावण किस वाद्य को बजाने में निपुण था?

सितार
सारंगी
वीणा
बाँसुरी

15 निम्न में से कौन 'कवितावली' के रचनाकार हैं?

तुलसीदास
चैतन्य महाप्रभु
सूरदास
कबीरदास