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*आसफ़जाह का [[पिता]] ग़ाज़ाउद्दीन फ़ीरोज ख़ाँ जंग मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के शासन काल में [[भारत]] आया था और शाही सेवा में उच्च पद पर नियुक्त हुआ था।
*आसफ़जाह का [[पिता]] ग़ाज़ाउद्दीन फ़ीरोज ख़ाँ जंग मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के शासन काल में [[भारत]] आया था और शाही सेवा में उच्च पद पर नियुक्त हुआ था।
*जब कमरुद्दीन मात्र तैरह वर्ष का था, तभी वह शाही सेवा में लग गया। जल्द ही उसने तरक्की की और औरंगज़ेब ने उसे 'चिन किलिच ख़ाँ' की उपाधि प्रदान की।
*जब कमरुद्दीन मात्र तैरह वर्ष का था, तभी वह शाही सेवा में लग गया। जल्द ही उसने तरक़्क़ी की और औरंगज़ेब ने उसे 'चिन किलिच ख़ाँ' की उपाधि प्रदान की।
*[[औरंगज़ेब]] की मृत्यु के समय वह [[बीजापुर]] में शाही सेना का सेनापति था।
*[[औरंगज़ेब]] की मृत्यु के समय वह [[बीजापुर]] में शाही सेना का सेनापति था।
*जब औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार का युद्ध हुआ, तब आसफ़जाह इससे दूर ही रहा।  
*जब औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार का युद्ध हुआ, तब आसफ़जाह इससे दूर ही रहा।  

06:23, 29 जून 2013 का अवतरण

आसफ़जाह मुग़ल अमीरों में तूरानी पार्टी का सरदार था। तूरानी मध्य एशिया के निवासी थे और मुग़ल बादशाहों के दरबार में उच्च पदों पर नियुक्त थे। आसफ़जाह का पूरा नाम 'मीर कमरुद्दीन चिन किलिच ख़ाँ' था। वह मुग़ल शासक औरंगज़ेब के बाद के हैदराबाद का प्रसिद्ध निज़ाम था, जिसने 'आसफ़जाही राजवंश' की नींव रखी थी।

  • आसफ़जाह का पिता ग़ाज़ाउद्दीन फ़ीरोज ख़ाँ जंग मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के शासन काल में भारत आया था और शाही सेवा में उच्च पद पर नियुक्त हुआ था।
  • जब कमरुद्दीन मात्र तैरह वर्ष का था, तभी वह शाही सेवा में लग गया। जल्द ही उसने तरक़्क़ी की और औरंगज़ेब ने उसे 'चिन किलिच ख़ाँ' की उपाधि प्रदान की।
  • औरंगज़ेब की मृत्यु के समय वह बीजापुर में शाही सेना का सेनापति था।
  • जब औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार का युद्ध हुआ, तब आसफ़जाह इससे दूर ही रहा।
  • जब बहादुरशाह प्रथम (1707-1712 ई.) गद्दी पर बैठा, तो उसने चिन किलिच ख़ाँ को अवध का सूबेदार बना दिया और उसके पिता का 'ग़ाज़ाउद्दीन फ़ीरोज ख़ाँ' का ख़िताब दिया।
  • मुग़ल साम्राज्य के सर्वेसर्वा बन चुके सैय्यद बंधुओं को गद्दी से हटाने में भी आसफ़जाह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। उसे "दक्कन का वायसराय" भी कहा गया।
  • बादशाह मुहम्मदशाह के शासन में वज़ीर के काम से तंग आकर दक्कन आसफ़जाह वापस लौट गया और हैदराबाद राज्य की नींव रखी।
  • आसफ़जाह के मरणोपरांत 1748 ई. में हैदराबाद दिल्ली शासक के अधीन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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