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लोहाघाट से लगभग 7 किमी की दूरी पर कर्णरायत नामक स्थान से लगभग 1.5 किमी की दूरी पैदल तय करने के उपरांत इस स्थल पर पहुंचा जा सकता है। किंवदंती है कि यहां पर [[कृष्ण]] के द्वारा अपने पौत्र का अपहरण किये जाने से क्रुद्ध होकर वाणासुर का वध किया गया था। इस स्थल पर पुरातात्विक दृष्टि से मशहूर क़िला आज भी विद्यमान है। इस स्थल से एक ओर भव्य [[हिमालय]] | लोहाघाट से लगभग 7 किमी की दूरी पर कर्णरायत नामक स्थान से लगभग 1.5 किमी की दूरी पैदल तय करने के उपरांत इस स्थल पर पहुंचा जा सकता है। किंवदंती है कि यहां पर [[कृष्ण]] के द्वारा अपने पौत्र का अपहरण किये जाने से क्रुद्ध होकर वाणासुर का वध किया गया था। इस स्थल पर पुरातात्विक दृष्टि से मशहूर क़िला आज भी विद्यमान है। इस स्थल से एक ओर भव्य [[हिमालय]] शृंखलाओं का दृश्य देखा जा सकता है तो दूसरी ओर [[लोहाघाट]] सहित [[मायावती अद्वैत आश्रम]] एवं अन्य नैसर्गिक छटाओं का भी आनन्द लिया जा सकता है। | ||
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10:37, 29 जून 2013 का अवतरण
चम्पावत पर्यटन
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विवरण | प्रकृति की गोद में बसा उत्तराखण्ड का यह छोटा-सा नगर स्वयं में बड़ा इतिहास समेटे है। |
राज्य | उत्तराखण्ड |
ज़िला | चम्पावत ज़िला |
मार्ग स्थिति | यह शहर सड़कमार्ग द्वारा टनकपुर लगभग 75 कि.मी. दूरी पर स्थित है। |
प्रसिद्धि | देवीधुरा मेला, बग्वाल, एवटमाउन्ट, पूर्णागिरि मेला |
कैसे पहुँचें | किसी भी शहर से बस और टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है। |
पन्तनगर, नैनी सैनी हवाई अड्डा, पिथौरागढ़ | |
टनकपुर रेलवे स्टेशन | |
क्या देखें | उत्तराखण्ड पर्यटन |
क्या ख़रीदें | गहत स्थानीय दाल, |
एस.टी.डी. कोड | 0176 |
सावधानी | बरसात में भूस्खलन |
गूगल मानचित्र, हवाई अड्डा | |
अन्य जानकारी | चम्पावत में आप बग्वाल का भी आनन्द ले सकते हैं। |
चम्पावत | चम्पावत पर्यटन | चम्पावत ज़िला |
चम्पावत कई वर्षों तक कुमाऊँ के शासकों की राजधानी रहा है। चम्पावत नगर में कत्यूरी वंश के राजाओं द्वारा स्थापित तेरहवीं शताब्दी का बालेश्वर मंदिर तत्काली शिल्प कला का एक उत्कृष्ट नमूना है।[1]
पर्यटन
पर्यटकों के लिये यहाँ ब्रिटिश काल का एक सरकारी बंगला, मायावती अद्वैत आश्रम, एवटमाउन्ट गिरजाघर, वाणासुर का क़िला और चाय बागान भी हैं। उत्तराखण्ड के इस ऐतिहासिक शहर का धार्मिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से अग्रणी स्थान है। इस शहर का उल्लेख भारत के धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है।[1]
पूर्णागिरि मंदिर
पूर्णागिरि समुद्र तल से 3000 मीटर की उंचाई पर है। यह काली नदी के दांये किनारे पर स्थित है। यहाँ विश्वत संक्रांति को मेला आरंभ होकर लभगग चालीस दिन तक चलता है। मार्च अप्रैल के मध्य चैत्र मास की नवरात्रि में यहाँ अपार श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं। जनपद चम्पावत के टनकपुर उप संभाग के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फिट की उंचाई पर यह शक्ति पीठ स्थापित है। धार्मिक आस्था के साथ ही नैसर्गिक सौंदर्य के लिये भी यह स्थल महत्वपूर्ण है। इस स्थल पर जाने हेतु टनकपुर से लगभग 20 किमी तक मोटर मार्ग से तथा 3 किमी पैदल चलकर पहुँचा जा सकता है।
श्यामलाताल
टनकपुर से चम्पावत की ओर लगभग 22 किमी दूरी पर स्थित है। सूचीढांड नामक स्थान से 5 किमी इस पवित्र एवं मनोहारी स्थल हेतु मोटर मार्ग से पहुंचा जा सकता है। यहाँ पर स्वामी विवेकानन्द जी की ध्यान स्थली के रूप में वर्तमान में एक आश्रम स्थापित है। श्यामलाताल के स्वच्छ एवं नीले जल पर नौका विहार का आनन्द लिया जा सकता है। रात्रि विश्राम हेतु यहां पर पर्यटक आवास ग्रह उपलब्ध है।
मीठा रीठा साहिब
मीठा रीठा साहिब लोहाघाट से लगभग 64 किमी की दूरी पर स्थित है। सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह यहाँ आये थे एवं उन्होंने यहाँ पर रीठे के वृक्ष के नीचे विश्राम किया था। गुरु के प्रताप से उनके शिष्य ने जिस वृक्ष से अपनी क्षुधा शान्त करने हेतु रीठे तोडे थे, उस वृक्ष के रीठे मीठे हो गये थे। इस स्थल को मीठा रीठा साहिब भी कहा जाता है। यहाँ पर सिक्खों द्वारा भव्य गुरुद्वारा निर्मित किया गया है। प्रति वर्ष वैशाखी पर यहाँ पर बहुत विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है।
आदिगुरु गोरखनाथ की धूनी
आदिगुरु गोरखनाथ की धूनी चम्पावत से लगभग 33 किमी की दूरी पर स्थित है। चनामक स्थान से इस स्थल हेतु लगभग 1.5 किमी की दूरी पैदल तय करने के उपरांत इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है। जनश्रुति है कि यह धूनी सतयुग से लगातार प्रज्वलित है। यह स्थल नैसर्गिक सौंदर्यता से परिपूर्ण है।
पंचेश्वर महादेव मंदिर
पंचेश्वर महादेव मंदिर लोहाघाट से लगभग 38 किमी की दूरी पर काली एवं सरयू नदी के संगम पर स्थित है। यह स्थल मत्स्य आखेट एवं रिवर राफ्टिंग के लिये विख्यात है। इस स्थल पर मकर संक्रान्ति के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है।
वाणासुर का क़िला
लोहाघाट से लगभग 7 किमी की दूरी पर कर्णरायत नामक स्थान से लगभग 1.5 किमी की दूरी पैदल तय करने के उपरांत इस स्थल पर पहुंचा जा सकता है। किंवदंती है कि यहां पर कृष्ण के द्वारा अपने पौत्र का अपहरण किये जाने से क्रुद्ध होकर वाणासुर का वध किया गया था। इस स्थल पर पुरातात्विक दृष्टि से मशहूर क़िला आज भी विद्यमान है। इस स्थल से एक ओर भव्य हिमालय शृंखलाओं का दृश्य देखा जा सकता है तो दूसरी ओर लोहाघाट सहित मायावती अद्वैत आश्रम एवं अन्य नैसर्गिक छटाओं का भी आनन्द लिया जा सकता है।
मायावती अद्वैत आश्रम
मायावती अद्वैत आश्रम लोहाघाट से 9 किमी की दूरी पर सघन बांज एवं बुरांस वृक्षों के बीच स्थापित मायावती आश्रम स्वामी विवेकानन्द का आश्रय स्थल रहा है। यहाँ पर स्वामी विवेकानन्द 1901 में आये थे एवं लगभग एक सप्ताह तक इस स्थल पर उन्होंने निवास किया था। यहां पर वर्तमान में एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी आश्रम द्वारा संचालित किया जाता है।
देवीधुरा मंदिर
देवीधुरा स्थल चम्पावत हल्द्वानी मोटर मार्ग पर चम्पावत से लगभग 60 किमी की दूरी पर समुद्र सतह से लगभग 6500 फिट की उंचाई पर स्थित है। श्रावण मास की पूर्णिमा को हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला पौराणिक धार्मिक एवं एतिहासिक स्थल देवीधुरा अपने अनूठे तरह के पाषाण युद्ध के लिये पूरे भारत प्रसिद्ध है। इस स्थल से लगभग 300 किमी लम्बी हिम शृंखलाओं के भव्य दृश्य का आनंद लिया जा सकता है।
एवटमाउन्ट
लोहाघाट से 9 किमी की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 7000 फिट की उंचाई पर स्थित यह स्थल अत्यन्त दर्शनीय है यहां पर 1945 में स्थापिन चर्च भी विद्यमान है। यह स्थल पूर्व मे ऐंग्लो इन्डियन कालोनी के रूप में विद्यमान रहा है। इस स्थल के उत्तर की ओर भव्य हिमालय श्रंखलाओं का विहंगम दृश्य दृष्टिगोचर होता है। तो दूसरी ओर प्राकृतिक छटाओं का भी आनन्द लिया जा सकता है।
लोहाघाट
लोहाघाट चम्पावत नगर से 13 किमी की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे सघन देवदार वृक्षों से आच्छादित स्थल है जो समुद्र सतह से लगभग 5500 फिट की उंचाई पर लोहवती नदी के समीप स्थित है। स्वास्थ्य लाभ के लिये यह स्थल अत्यंत उपयुक्त माना गया है।[1]
वीथिका
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चम्पावत में चाय का बृक्षारोपण
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देवीधुरा कस्बे की प्राकृतिक छटा
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माँ बाराही की गुफा का उत्तरी प्रवेश मार्ग
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बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) में बचाव के उपयोग में लायी जाने वाली ढालें
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युद्ध स्थल मंदिर प्रांगण
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बग्वाल (पत्थर मार युद्ध) का स्थल
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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