"सी. एन. अन्नादुराई": अवतरणों में अंतर
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{{सूचना बक्सा राजनीतिज्ञ | |||
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|चित्र का नाम=सी. एन. अन्नादुराई | |||
|पूरा नाम=कान्जीवरम नटराजन अन्नादुराई | |||
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|जन्म=[[15 सितम्बर]], [[1909]] | |||
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'''कान्जीवरम नटराजन अन्नादुराई''' (जन्म- [[15 सितम्बर]], [[1909]], [[तमिलनाडु]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[3 फ़रवरी]], [[1969]], [[मद्रास]]) [[तमिलनाडु]] की राजनीति में काफ़ी महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखते थे। उन्हें 'अन्ना' अर्थात 'बड़ा भाई' कहकर सम्बोधित किया जाता था। सी. एन. अन्नादुराई तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता, [[भारत]] के प्रथम गैर कांग्रेसी [[मुख्यमंत्री]] एवं 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' दल के संस्थापक थे। [[तम्बाकू]] से रचे दाँत, खूँटीदार दाढ़ी और लुभावनी शुष्क आवाज़ वाले अन्नादुराई के साथ आधुनिक तमिलनाडु की कहानी जुड़ी हुई है। सी. एन अन्नादुराई ऐसे प्रथम नेता थे, जिनकी देश के [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|स्वतंत्रता संग्राम]] में कोई भूमिका नहीं थी। अन्नादुराई भारतीय राजनीति के कभी भी खिलाफ़ नही रहे, किन्तु उन्होंने '[[भारतीय संविधान]]' में अपने राज्य के लिए अधिक स्वायत्तता चाही थी। | '''कान्जीवरम नटराजन अन्नादुराई''' (जन्म- [[15 सितम्बर]], [[1909]], [[तमिलनाडु]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[3 फ़रवरी]], [[1969]], [[मद्रास]]) [[तमिलनाडु]] की राजनीति में काफ़ी महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखते थे। उन्हें 'अन्ना' अर्थात 'बड़ा भाई' कहकर सम्बोधित किया जाता था। सी. एन. अन्नादुराई तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता, [[भारत]] के प्रथम गैर कांग्रेसी [[मुख्यमंत्री]] एवं 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' दल के संस्थापक थे। [[तम्बाकू]] से रचे दाँत, खूँटीदार दाढ़ी और लुभावनी शुष्क आवाज़ वाले अन्नादुराई के साथ आधुनिक तमिलनाडु की कहानी जुड़ी हुई है। सी. एन अन्नादुराई ऐसे प्रथम नेता थे, जिनकी देश के [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|स्वतंत्रता संग्राम]] में कोई भूमिका नहीं थी। अन्नादुराई भारतीय राजनीति के कभी भी खिलाफ़ नही रहे, किन्तु उन्होंने '[[भारतीय संविधान]]' में अपने राज्य के लिए अधिक स्वायत्तता चाही थी। | ||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
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अन्नादुराई ने अपनी शिक्षा-दीक्षा मद्रास तथां कांचीपुरम में पूर्ण की थी। 21 वर्ष की आयु में छात्र जीवन में ही सी. एन. अन्नादुराई का [[विवाह]] रानी अन्नादुराई से हुआ। उन्होंने सन [[1934]] में बी. ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद '[[मद्रास विश्वविद्यालय]]' से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। स्नातकोत्तर की परीक्षा के पश्चात उन्होंने लगभग एक [[वर्ष]] तक हाईस्कूल में [[अंग्रेज़ी]] अध्यापक के रूप में अध्यापन कार्य भी किया। तभी उनका रूख [[पत्रकारिता]] और राजनीति की ओर उन्मुख हुआ, जो कि उनके जीवन में प्रधान दिलचस्पी के रूप में था। | अन्नादुराई ने अपनी शिक्षा-दीक्षा मद्रास तथां कांचीपुरम में पूर्ण की थी। 21 वर्ष की आयु में छात्र जीवन में ही सी. एन. अन्नादुराई का [[विवाह]] रानी अन्नादुराई से हुआ। उन्होंने सन [[1934]] में बी. ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद '[[मद्रास विश्वविद्यालय]]' से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। स्नातकोत्तर की परीक्षा के पश्चात उन्होंने लगभग एक [[वर्ष]] तक हाईस्कूल में [[अंग्रेज़ी]] अध्यापक के रूप में अध्यापन कार्य भी किया। तभी उनका रूख [[पत्रकारिता]] और राजनीति की ओर उन्मुख हुआ, जो कि उनके जीवन में प्रधान दिलचस्पी के रूप में था। | ||
==संपादक तथा लेखक== | ==संपादक तथा लेखक== | ||
तमिल जागरण में अन्नादुराई के निबंधों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने 'जस्टिस' नामक तमिल पत्र के सहायक संपादक एवं बाद में 'विदुघलाई' नामक पत्र के संपादक के पद पर कार्य किया था। सी. एन. अन्नादुराई ने सन [[1942]] में तमिल साप्ताहिक 'द्रविड़नाड़', सन [[1957]] में अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'होमलैंड' तथा एक [[वर्ष]] पश्चात 'होमरूल' नामक पत्रिका निकाली थी। ये [[हिन्दी]] के प्रबल विरोधी तथा [[तमिल भाषा]] और साहित्य के पुनरुत्थानकर्ता थे। अन्नादुराई ने अनेक तमिल अखबारों, जैसे- 'विदुलहलाई', 'कुदी अरसु', 'देविनधन्दु', 'मैलई मनी' और 'कांची' इत्यादि को सहयोग दिया। उनकी [[साहित्य]] में भी गहरी दिलचस्पी थी तथा उन्होंने नाटककार एवं लेखक के रूप में लघु कथाएँ भी लिखी थीं। | तमिल जागरण में अन्नादुराई के [[निबंध|निबंधों]] ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने 'जस्टिस' नामक तमिल पत्र के सहायक संपादक एवं बाद में 'विदुघलाई' नामक पत्र के संपादक के पद पर कार्य किया था। सी. एन. अन्नादुराई ने सन [[1942]] में तमिल साप्ताहिक 'द्रविड़नाड़', सन [[1957]] में अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'होमलैंड' तथा एक [[वर्ष]] पश्चात 'होमरूल' नामक पत्रिका निकाली थी। ये [[हिन्दी]] के प्रबल विरोधी तथा [[तमिल भाषा]] और साहित्य के पुनरुत्थानकर्ता थे। अन्नादुराई ने अनेक तमिल अखबारों, जैसे- 'विदुलहलाई', 'कुदी अरसु', 'देविनधन्दु', 'मैलई मनी' और 'कांची' इत्यादि को सहयोग दिया। उनकी [[साहित्य]] में भी गहरी दिलचस्पी थी तथा उन्होंने नाटककार एवं लेखक के रूप में लघु कथाएँ भी लिखी थीं। | ||
====राजनीति में प्रवेश==== | ====राजनीति में प्रवेश==== | ||
सी. एन. अन्नादुराई ने अपने प्रारंभिक राजनैतिक कैरियर में 'जस्टीस पार्टी' को सहयोग दिया तथा [[कांग्रेस]] का विरोध किया। वे सन [[1934]] में पेरियार ई. वी. रामास्वामी के सम्पर्क में आये थे। 'जस्टीस पार्टी' का सन [[1949]] में 'द्रविड | सी. एन. अन्नादुराई ने अपने प्रारंभिक राजनैतिक कैरियर में 'जस्टीस पार्टी' को सहयोग दिया तथा [[कांग्रेस]] का विरोध किया। वे सन [[1934]] में पेरियार ई. वी. रामास्वामी के सम्पर्क में आये थे। 'जस्टीस पार्टी' का सन [[1949]] में 'द्रविड कड़गम' नाम से पुनः नामकरण किया गया। इसने अपने पूर्व ब्रिटिश दृष्टिकोण बदल दिया तथा यह पार्टी मानवीय मूल्यों पर आधारित पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई। | ||
==मुख्यमंत्री== | ==मुख्यमंत्री== | ||
1949 में ही 'द्रविड कड़गम' का विभाजन हो गया तथा अन्नादुराई ने 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' नाम से पार्टी की शुरुआत की। [[मद्रास]] में जल्दी ही 'डी. एम. के.' पार्टी मजबूत ताकत के रूप में उभरी तथा [[1967]] में पहली 'डी. एम .के.' पार्टी की सरकार बनी। सी. एन. अन्नादुराई [[मुख्यमंत्री]] के रूप में प्रतिष्ठित हुए। | 1949 में ही 'द्रविड कड़गम' का विभाजन हो गया तथा अन्नादुराई ने 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' नाम से पार्टी की शुरुआत की। [[मद्रास]] में जल्दी ही 'डी.एम.के.' पार्टी मजबूत ताकत के रूप में उभरी तथा [[1967]] में पहली 'डी.एम.के.' पार्टी की सरकार बनी। सी. एन. अन्नादुराई [[मुख्यमंत्री]] के रूप में प्रतिष्ठित हुए। | ||
==क्षेत्रीय भाषा के समर्थक== | ==क्षेत्रीय भाषा के समर्थक== | ||
अन्नादुराई जी राजकाज में क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के पक्षपाती थे। इन्होंने अपने प्रदेश में [[तमिल भाषा]] के प्रयोग को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। मद्रास राज्य का नामकरण 'तमिलनाडु' करने का श्रेय भी अन्नादुराई को ही जाता है। तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करने के पूर्व [[राज्य सभा]] के सदस्य के रूप में भी इन्होंने ख्याति प्राप्त की थी। सन [[1967]] के महानिर्वाचन में तमिलनाडु में 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' की अभूतपूर्व सफलता ने अन्नादुराई को अपने दल को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठापित करने की प्रेरणा प्रदान की थी। यदि असमय ही ये कालकवलित न हो गए होते तो संभवतः भविष्य में 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' का स्थान 'भारत मुन्नेत्र कड़गम' ने ले लिया होता। | अन्नादुराई जी राजकाज में क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के पक्षपाती थे। इन्होंने अपने प्रदेश में [[तमिल भाषा]] के प्रयोग को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। मद्रास राज्य का नामकरण 'तमिलनाडु' करने का श्रेय भी अन्नादुराई को ही जाता है। तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करने के पूर्व [[राज्य सभा]] के सदस्य के रूप में भी इन्होंने ख्याति प्राप्त की थी। सन [[1967]] के महानिर्वाचन में तमिलनाडु में 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' की अभूतपूर्व सफलता ने अन्नादुराई को अपने दल को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठापित करने की प्रेरणा प्रदान की थी। यदि असमय ही ये कालकवलित न हो गए होते तो संभवतः भविष्य में 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' का स्थान 'भारत मुन्नेत्र कड़गम' ने ले लिया होता। |
09:25, 2 अगस्त 2013 का अवतरण
सी. एन. अन्नादुराई
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पूरा नाम | कान्जीवरम नटराजन अन्नादुराई |
जन्म | 15 सितम्बर, 1909 |
जन्म भूमि | कांचीपुरम, तमिलनाडु |
मृत्यु | 3 फ़रवरी, 1969 |
मृत्यु स्थान | मद्रास |
पति/पत्नी | रानी अन्नादुराई |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ, पूर्व मुख्यमंत्री (तमिलनाडु) |
पार्टी | 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' (डी.एम.के.) |
कार्य काल | फ़रवरी, 1967 से 3 फ़रवरी, 1969 |
शिक्षा | बी.ए.; एम.ए. |
विद्यालय | 'मद्रास विश्वविद्यालय' |
विशेष योगदान | अन्नादुराई जी राजकाज में क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के पक्षपाती थे। इन्होंने अपने प्रदेश में तमिल भाषा के प्रयोग को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। |
अन्य जानकारी | मद्रास राज्य का नामकरण 'तमिलनाडु' करने का श्रेय भी अन्नादुराई को ही जाता है। इनकी असामयिक मूत्यु ने इन्हें मुख्यमंत्री के रूप में दो वर्ष से भी कम अवधि तक ही प्रदेशवासियों की सेवा करने का अवसर दिया। |
कान्जीवरम नटराजन अन्नादुराई (जन्म- 15 सितम्बर, 1909, तमिलनाडु, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 3 फ़रवरी, 1969, मद्रास) तमिलनाडु की राजनीति में काफ़ी महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखते थे। उन्हें 'अन्ना' अर्थात 'बड़ा भाई' कहकर सम्बोधित किया जाता था। सी. एन. अन्नादुराई तमिलनाडु के लोकप्रिय नेता, भारत के प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री एवं 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' दल के संस्थापक थे। तम्बाकू से रचे दाँत, खूँटीदार दाढ़ी और लुभावनी शुष्क आवाज़ वाले अन्नादुराई के साथ आधुनिक तमिलनाडु की कहानी जुड़ी हुई है। सी. एन अन्नादुराई ऐसे प्रथम नेता थे, जिनकी देश के स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं थी। अन्नादुराई भारतीय राजनीति के कभी भी खिलाफ़ नही रहे, किन्तु उन्होंने 'भारतीय संविधान' में अपने राज्य के लिए अधिक स्वायत्तता चाही थी।
जन्म
सी. एन. अन्नादुराई का जन्म 15 सितम्बर, 1909 में ब्रिटिशकालीन मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के निकट कांचीपुरम, तमिलनाडु में हुआ था। ये एक निम्न मध्यम वर्गीय हिन्दू परिवार से सम्बन्ध रखते थे। इनके पिता का नाम नटराजन एवं माता बांगरु अम्मल थीं। सी. एन. अन्नादुराई के पिता बुनकर का कार्य करते थे।
शिक्षा तथा विवाह
अन्नादुराई ने अपनी शिक्षा-दीक्षा मद्रास तथां कांचीपुरम में पूर्ण की थी। 21 वर्ष की आयु में छात्र जीवन में ही सी. एन. अन्नादुराई का विवाह रानी अन्नादुराई से हुआ। उन्होंने सन 1934 में बी. ए. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद 'मद्रास विश्वविद्यालय' से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। स्नातकोत्तर की परीक्षा के पश्चात उन्होंने लगभग एक वर्ष तक हाईस्कूल में अंग्रेज़ी अध्यापक के रूप में अध्यापन कार्य भी किया। तभी उनका रूख पत्रकारिता और राजनीति की ओर उन्मुख हुआ, जो कि उनके जीवन में प्रधान दिलचस्पी के रूप में था।
संपादक तथा लेखक
तमिल जागरण में अन्नादुराई के निबंधों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने 'जस्टिस' नामक तमिल पत्र के सहायक संपादक एवं बाद में 'विदुघलाई' नामक पत्र के संपादक के पद पर कार्य किया था। सी. एन. अन्नादुराई ने सन 1942 में तमिल साप्ताहिक 'द्रविड़नाड़', सन 1957 में अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'होमलैंड' तथा एक वर्ष पश्चात 'होमरूल' नामक पत्रिका निकाली थी। ये हिन्दी के प्रबल विरोधी तथा तमिल भाषा और साहित्य के पुनरुत्थानकर्ता थे। अन्नादुराई ने अनेक तमिल अखबारों, जैसे- 'विदुलहलाई', 'कुदी अरसु', 'देविनधन्दु', 'मैलई मनी' और 'कांची' इत्यादि को सहयोग दिया। उनकी साहित्य में भी गहरी दिलचस्पी थी तथा उन्होंने नाटककार एवं लेखक के रूप में लघु कथाएँ भी लिखी थीं।
राजनीति में प्रवेश
सी. एन. अन्नादुराई ने अपने प्रारंभिक राजनैतिक कैरियर में 'जस्टीस पार्टी' को सहयोग दिया तथा कांग्रेस का विरोध किया। वे सन 1934 में पेरियार ई. वी. रामास्वामी के सम्पर्क में आये थे। 'जस्टीस पार्टी' का सन 1949 में 'द्रविड कड़गम' नाम से पुनः नामकरण किया गया। इसने अपने पूर्व ब्रिटिश दृष्टिकोण बदल दिया तथा यह पार्टी मानवीय मूल्यों पर आधारित पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई।
मुख्यमंत्री
1949 में ही 'द्रविड कड़गम' का विभाजन हो गया तथा अन्नादुराई ने 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' नाम से पार्टी की शुरुआत की। मद्रास में जल्दी ही 'डी.एम.के.' पार्टी मजबूत ताकत के रूप में उभरी तथा 1967 में पहली 'डी.एम.के.' पार्टी की सरकार बनी। सी. एन. अन्नादुराई मुख्यमंत्री के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
क्षेत्रीय भाषा के समर्थक
अन्नादुराई जी राजकाज में क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग के पक्षपाती थे। इन्होंने अपने प्रदेश में तमिल भाषा के प्रयोग को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया। मद्रास राज्य का नामकरण 'तमिलनाडु' करने का श्रेय भी अन्नादुराई को ही जाता है। तमिलनाडु का मुख्यमंत्रित्व ग्रहण करने के पूर्व राज्य सभा के सदस्य के रूप में भी इन्होंने ख्याति प्राप्त की थी। सन 1967 के महानिर्वाचन में तमिलनाडु में 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' की अभूतपूर्व सफलता ने अन्नादुराई को अपने दल को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठापित करने की प्रेरणा प्रदान की थी। यदि असमय ही ये कालकवलित न हो गए होते तो संभवतः भविष्य में 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' का स्थान 'भारत मुन्नेत्र कड़गम' ने ले लिया होता।
निधन
तमिलनाडु की राजनीति में प्रसिद्धि पाने वाले और वहाँ अपनी विशेष पहचान कायम करने वाले सी. एन. अन्नादुराई का निधन 3 फ़रवरी, 1969 में हुआ। इनकी असामयिक मूत्यु ने इन्हें मुख्यमंत्री के रूप में दो वर्ष से भी कम अवधि तक प्रदेशवासियों की सेवा करने का ही अवसर दिया, तथापि यह अल्पावधि भी अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण साबित हुई।
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