"इतिहास सामान्य ज्ञान 2": अवतरणों में अंतर
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||'शतपथ ब्राह्मण' में वैदिक [[संस्कृत]] के सारस्वत मण्डल से पूर्व की ओर प्रसार होने का संकेत मिलता है। | ||'शतपथ ब्राह्मण' शुक्ल यजुर्वेद की दोनों शाखाओं 'काण्व' व 'माध्यन्दिनी' से सम्बद्ध है। यह सभी [[ब्राह्मण ग्रन्थ|ब्राह्मण ग्रन्थों]] में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण [[ग्रन्थ]] है। इसका रचयिता [[याज्ञवल्क्य]] को माना जाता है। '[[शतपथ ब्राह्मण]]' में वैदिक [[संस्कृत]] के सारस्वत मण्डल से पूर्व की ओर प्रसार होने का संकेत मिलता है। इसमें [[यज्ञ|यज्ञों]] को जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण कृत्य बताया गया है। हल सम्बन्धी अनुष्ठान का विस्तृत वर्णन भी इसमें प्राप्त होता है। [[अश्वमेध यज्ञ]] के सन्दर्भ में अनेक प्राचीन सम्राटों का उल्लेख इसमें है, जिसमें [[जनक]], [[दुष्यन्त]] और [[जनमेजय]] का नाम महत्त्वपूर्ण है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शतपथ ब्राह्मण]] | ||
{किस [[वेद]] की रचना गद्य एवं पद्य दोनों में की गई है? | {किस [[वेद]] की रचना गद्य एवं पद्य दोनों में की गई है? | ||
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+[[यजुर्वेद]] | +[[यजुर्वेद]] | ||
-[[अथर्ववेद]] | -[[अथर्ववेद]] | ||
||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]यजुर्वेद ग्रन्थ से पता चलता है | ||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]'यर्जुवेद' मूलतः कर्मकाण्ड वाला [[ग्रन्थ]] है। इसकी रचना [[कुरुक्षेत्र]] में मानी जाती है। [[यजुर्वेद]] में [[आर्य|आर्यों]] की धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की झाँकी मिलती है। 'यजुर्वेद ग्रन्थ' से पता चलता है कि आर्य '[[सप्त सिंघव]]' से आगे बढ़ गए थे और वे प्राकृतिक पूजा के प्रति उदासीन होने लगे थे। [[यजुर्वेद]] के [[मंत्र|मंत्रों]] का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक [[पुरोहित]] करता था। इस [[वेद]] में अनेक प्रकार के [[यज्ञ|यज्ञों]] को सम्पन्न करने की विधियों का उल्लेख है। यह 'गद्य' तथा 'पद्य' दोनों में लिखा गया है। गद्य को 'यजुष' कहा गया है। यजुर्वेद से '[[उत्तर वैदिक काल]]' की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[यजुर्वेद]] | ||
{ज्ञानमार्गी शाखा के [[कवि|कवियों]] को किस नाम से पुकारा जाता है? | {'ज्ञानमार्गी शाखा' के [[कवि|कवियों]] को किस नाम से पुकारा जाता है? | ||
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-सिद्ध कवि | -सिद्ध कवि | ||
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+[[सूरजमल]] | +[[सूरजमल]] | ||
-[[बदनसिंह]] | -[[बदनसिंह]] | ||
||[[चित्र:Maharaja-Surajmal-1.jpg|right| | ||[[चित्र:Maharaja-Surajmal-1.jpg|right|80px|राजा सूरजमल]]'राजा सूरजमल' ने [[ब्रज]] में एक स्वतंत्र [[हिन्दू]] राज्य को बना [[इतिहास]] में गौरव प्राप्त किया था। उसके शासन का समय सन 1755 से 1763 ई. तक है। वह सन 1755 से कई साल पहले से अपने [[पिता]] [[बदनसिंह]] के शासन के समय से ही राजकार्य सम्भालता था। [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में [[सूरजमल]] को 'जाटों का प्लेटो' कहकर भी सम्बोधित किया गया है। सूरजमल के दरबारी कवि '[[सूदन]]' ने राजा की तारीफ़ में '[[सुजानचरित -सूदन|सुजानचरित]]' नामक [[ग्रंथ]] लिखा था। इस [[ग्रंथ]] में सूदन ने राजा सूरजमल द्वारा लड़ी लड़ाईयों का आँखों देखा वर्णन किया है। इस ग्रन्थ में सन 1745 से सन 1753 तक के समय में लड़ी गयी लड़ाईयों का वर्णन है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरजमल]] | ||
{किस [[बौद्ध संगीति]] में [[बौद्ध धर्म]] के [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में [[संस्कृत]] का प्रयोग प्रारम्भ हुआ? | {किस [[बौद्ध संगीति]] में [[बौद्ध धर्म]] के [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में [[संस्कृत]] का प्रयोग प्रारम्भ हुआ? |
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- इतिहास प्रांगण, इतिहास कोश, ऐतिहासिक स्थान कोश
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