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<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 8 नवम्बर 2013|कभी ख़ुशी कभी ग़म]]</center>
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         यह सही है कि किसी भी नौकरी के लिए ईमानदारी न्यूनतम आवश्यकता है लेकिन इस आवश्यकता को कितने लोग पूर्ण कर रहे हैं। जो इसे पूर्ण कर रहे हैं उन्हें कोई विशेष महत्व क्यों नहीं मिल रहा। किसी ईमानदार को विशेष महत्व न देने की यह परिपाटी उस समय तो ठीक थी जब उन लोगों की संख्या कम थी जो ईमानदार नहीं थे। सन् 1960 के आस-पास भारत में भ्रष्टाचार का अंतरराष्ट्रीय सूचकांक 7 प्रतिशत के लगभग था। [[भारतकोश सम्पादकीय 8 नवम्बर 2013|...पूरा पढ़ें]]
         भारत में अभी तक शिक्षार्थियों का पढ़ाई लिए नौकरी करना या पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी करने का प्रचलन उतना नहीं है जितना कि पश्चिमी देशों में है। इन शिक्षार्थियों को होटलों या रेस्ताराओं में काम करने में शर्म महसूस होती है। यदि सरकार की ओर से इन शिक्षार्थियों को एक बिल्ला (Badge) दिया जाय जो इनके शिक्षार्थी-कर्मी होने की पहचान हो तो लोग इस बिल्ले को देखकर इनसे अपेक्षाकृत अच्छा व्यवहार करेंगे। जब सम्मान पूर्ण व्यवहार होगा तो शिक्षार्थियों को किसी भी नौकरी में लज्जा का अनुभव नहीं होगा। [[भारतकोश सम्पादकीय 8 नवम्बर 2013|...पूरा पढ़ें]]
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11:50, 8 नवम्बर 2013 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
कभी ख़ुशी कभी ग़म

         भारत में अभी तक शिक्षार्थियों का पढ़ाई लिए नौकरी करना या पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी करने का प्रचलन उतना नहीं है जितना कि पश्चिमी देशों में है। इन शिक्षार्थियों को होटलों या रेस्ताराओं में काम करने में शर्म महसूस होती है। यदि सरकार की ओर से इन शिक्षार्थियों को एक बिल्ला (Badge) दिया जाय जो इनके शिक्षार्थी-कर्मी होने की पहचान हो तो लोग इस बिल्ले को देखकर इनसे अपेक्षाकृत अच्छा व्यवहार करेंगे। जब सम्मान पूर्ण व्यवहार होगा तो शिक्षार्थियों को किसी भी नौकरी में लज्जा का अनुभव नहीं होगा। ...पूरा पढ़ें

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