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12:24, 14 जुलाई 2010 का अवतरण
आचार्य कुमारनन्दि
- ये अकलंकदेव के उत्तरवर्ती और आचार्य विद्यानन्द के पूर्ववर्ती अर्थात 8वीं, 9वीं शताब्दी के विद्वान है।
- विद्यानन्द ने इनका और इनके 'वादन्याय' का अपने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक[1], प्रमाण-परीक्षा[2]और पत्र-परीक्षा[3]में नामोल्लेख किया है[4]तथा उनके इस ग्रन्थ से कुछ प्रासंगिक कारिकाएँ उद्धृत की हैं।
- एक जगह[5]तो विद्यानन्द ने इन्हें बहुसम्मान देते हुए 'वादन्यायविचक्षण' भी कहा है।
- इनका यह 'वादन्याय' ग्रन्थ आज उपलब्ध नहीं है।
- बौद्ध विद्वान धर्मकीर्ति[6] का 'वादन्याय' उपलब्ध है।
- संभव है कुमारनन्दि को अपना 'वादन्याय' रचने की प्रेरणा उसी से मिली हो।
- दु:ख है कि जैनों ने अपने वाङमय की रक्षा करने में घोर प्रमाद किया तथा उसकी उपेक्षा की है।
- आज भी वही स्थिति है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।