"हिन्दी सामान्य ज्ञान": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
| | | | ||
<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{चीनी-तिब्बती भाषा समूह की [[भाषा|भाषाओं]] के बोलने वालों को कहा जाता है | {चीनी-तिब्बती भाषा समूह की [[भाषा|भाषाओं]] के बोलने वालों को कहा जाता है- | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[किरात]] | -[[किरात]] | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
||'निषाद' एक अत्यन्त प्राचीन [[शूद्र|शूद्र जाति]] थी। इस जाति के लोग [[समुद्र]] के मध्य दूर सुदूर क्षेत्र में रहते थे। [[निषाद]] मत्स्य जीवी थे। यह प्राचीन जाति [[पर्वत]], घाटियों और वनांचलों तथा नदियों के तटों पर भी निवास करती थी। निषादों को [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] की भार्याओं से उत्पन्न 'शूद्र' पुत्र माना गया। फिर वनवासी जातियों के मिश्रण से निषाद पैदा होते रहे। [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के पुत्र [[राम]] को वन जाते समय निषादों ने ही नदी पार कराई थी। [[महाभारत]] में भी निषादों का कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[निषाद]] | ||'निषाद' एक अत्यन्त प्राचीन [[शूद्र|शूद्र जाति]] थी। इस जाति के लोग [[समुद्र]] के मध्य दूर सुदूर क्षेत्र में रहते थे। [[निषाद]] मत्स्य जीवी थे। यह प्राचीन जाति [[पर्वत]], घाटियों और वनांचलों तथा नदियों के तटों पर भी निवास करती थी। निषादों को [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] की भार्याओं से उत्पन्न 'शूद्र' पुत्र माना गया। फिर वनवासी जातियों के मिश्रण से निषाद पैदा होते रहे। [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के पुत्र [[राम]] को वन जाते समय निषादों ने ही नदी पार कराई थी। [[महाभारत]] में भी निषादों का कई स्थानों पर उल्लेख हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[निषाद]] | ||
{[[अपभ्रंश]] के योग से [[राजस्थानी भाषा]] का जो साहित्यिक रूप बना, उसे कहा जाता है | {[[अपभ्रंश]] के योग से [[राजस्थानी भाषा]] का जो साहित्यिक रूप बना, उसे क्या कहा जाता है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-पिंगल भाषा | -पिंगल भाषा | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
||'ब्रजभाषा' मूलत: [[ब्रज|ब्रजक्षेत्र]] की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] में साहित्यिक [[भाषा]] रहने के कारण [[ब्रज]] की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और '[[ब्रजभाषा]]' नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]] और [[अलीगढ़|अलीगढ़ ज़िलों]] में बोली जाती है। इसे हम 'केंद्रीय ब्रजभाषा' भी कह सकते हैं। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रजभाषा]] | ||'ब्रजभाषा' मूलत: [[ब्रज|ब्रजक्षेत्र]] की बोली है। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] में साहित्यिक [[भाषा]] रहने के कारण [[ब्रज]] की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ भाषा नाम प्राप्त किया और '[[ब्रजभाषा]]' नाम से जानी जाने लगी। शुद्ध रूप में यह आज भी [[मथुरा]], [[आगरा]], [[धौलपुर]] और [[अलीगढ़|अलीगढ़ ज़िलों]] में बोली जाती है। इसे हम 'केंद्रीय ब्रजभाषा' भी कह सकते हैं। आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ब्रजभाषा]] | ||
{निम्नलिखित में से 'छायावाद' के प्रवर्तक का नाम क्या है? | {निम्नलिखित में से '[[छायावाद]]' के प्रवर्तक का नाम क्या है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[सुमित्रानंदन पंत]] | -[[सुमित्रानंदन पंत]] | ||
पंक्ति 40: | पंक्ति 40: | ||
||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|100px|जयशंकर प्रसाद]]'जयशंकर प्रसाद' [[कविता]], [[नाटक]], [[कहानी]] और [[उपन्यास]], इन सभी क्षेत्रों में एक नवीन 'स्कूल' और नवीन 'जीवन-दर्शन' की स्थापना करने में सफल हुये हैं। वे 'छायावाद' के संस्थापकों और उन्नायकों में से एक हैं। वैसे सर्वप्रथम कविता के क्षेत्र में इस नव-अनुभूति के वाहक [[जयशंकर प्रसाद]] ही रहे हैं, और प्रथम विरोध भी उन्हीं को सहना पड़ा है। [[भाषा]]-शैली और शब्द-विन्यास के निर्माण के लिये जितना संघर्ष प्रसाद जी को करना पङा है, उतना दूसरों को नही। कथा साहित्य के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद की देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम माने जाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जयशंकर प्रसाद]] | ||[[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|right|100px|जयशंकर प्रसाद]]'जयशंकर प्रसाद' [[कविता]], [[नाटक]], [[कहानी]] और [[उपन्यास]], इन सभी क्षेत्रों में एक नवीन 'स्कूल' और नवीन 'जीवन-दर्शन' की स्थापना करने में सफल हुये हैं। वे 'छायावाद' के संस्थापकों और उन्नायकों में से एक हैं। वैसे सर्वप्रथम कविता के क्षेत्र में इस नव-अनुभूति के वाहक [[जयशंकर प्रसाद]] ही रहे हैं, और प्रथम विरोध भी उन्हीं को सहना पड़ा है। [[भाषा]]-शैली और शब्द-विन्यास के निर्माण के लिये जितना संघर्ष प्रसाद जी को करना पङा है, उतना दूसरों को नही। कथा साहित्य के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद की देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम माने जाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जयशंकर प्रसाद]] | ||
{[[अमीर ख़ुसरो]] ने जिन [[मुकरी (पहेली)|मुकरियों]], पहेलियों और दो सुखनों की रचना की है, उसकी मुख्य भाषा है? | {[[अमीर ख़ुसरो]] ने जिन [[मुकरी (पहेली)|मुकरियों]], पहेलियों और दो सुखनों की रचना की है, उसकी मुख्य [[भाषा]] कौन-सी है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[दक्खिनी हिन्दी|दक्खिनी]] | -[[दक्खिनी हिन्दी|दक्खिनी]] |
13:26, 10 दिसम्बर 2013 का अवतरण
सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राज्यों के सामान्य ज्ञान
- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- भाषा प्रांगण, हिन्दी भाषा
पन्ने पर जाएँ
|
पन्ने पर जाएँ
सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी
राज्यों के सामान्य ज्ञान