"दिल्ली जब दहल गयी -दिनेश सिंह": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('<!-- सबसे पहले इस पन्ने को संजोएँ (सेव करें) जिससे आपको य...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:04, 16 दिसम्बर 2013 का अवतरण

दिल्ली जब दहल गयी -दिनेश सिंह

चित्र:दिल्ली जब दहल गयी -दिनेश सिंह
दिल्ली जब दहल गयी -दिनेश सिंह लिंक पर क्लिक करके चित्र अपलोड करें
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

काँप उठा था देश ये सारा
काँप गई थी दिल्ली सारी
वह द्रश्य भयानक था कितना
वह रात थी कितनी काली

उसकी करुण चीख निकलकर
हर मानव के ह्रदय समायी
सॊये शासको के कानो में
आवाज दे रही थी जनता सारी

जन मानस का का क्रोध उमड़कर
दिल्ली के पथ पर आया
अपने मन की असहनीय व्यथा को
दीप जलाकर बतलाया

प्रश्न चिन्ह ये ज्वलनशील है
जागे तो हम कितना जागे
कहीं कहीं अति रोष जताया
कहीं कहीं क्यों मौन रहे

सोच रहा है मन मेरा
क्या सोच रहा था मन तेरा
क्या व्यथा रही होगी हिय में
इस जग को जब तुम ने था छोड़ा

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख