"नेहरू जी के प्रेरक प्रसंग": अवतरणों में अंतर

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[[भारत]] के प्रथम [[प्रधानमंत्री]] पंडित [[जवाहरलाल नेहरू]] के कुछ प्रेरक प्रसंग इस प्रकार हैं-
[[भारत]] के प्रथम [[प्रधानमंत्री]] पंडित [[जवाहरलाल नेहरू]] के कुछ प्रेरक प्रसंग इस प्रकार हैं-
* बात उस समय की है जब जवाहरलाल नेहरू किशोर अवस्था के थे। पिता [[मोतीलाल नेहरू]] उन दिनों [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] से [[भारत]] को आज़ाद कराने की मुहिम में शामिल थे। इसका असर बालक जवाहर पर भी पड़ा। मोतीलाल ने पिंजरे में [[तोता]] पाल रखा था। एक दिन जवाहर ने तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मोतीलाल को तोता बहुत प्रिय था। उसकी देखभाल एक नौकर करता था। नौकर ने यह बात मोतीलाल को बता दी। मोतीलाल ने जवाहर से पूछा, 'तुमने तोता क्यों उड़ा दिया। जवाहर ने कहा, 'पिताजी पूरे देश की जनता आज़ादी चाह रही है। तोता भी आज़ादी चाह रहा था, सो मैंने उसे आज़ाद कर दिया।' मोतीलाल जवाहर का मुंह देखते रह गये।  
* बात उस समय की है जब जवाहरलाल नेहरू किशोर अवस्था के थे। पिता [[मोतीलाल नेहरू]] उन दिनों [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] से [[भारत]] को आज़ाद कराने की मुहिम में शामिल थे। इसका असर बालक जवाहर पर भी पड़ा। मोतीलाल ने पिंजरे में [[तोता]] पाल रखा था। एक दिन जवाहर ने तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मोतीलाल को तोता बहुत प्रिय था। उसकी देखभाल एक नौकर करता था। नौकर ने यह बात मोतीलाल को बता दी। मोतीलाल ने जवाहर से पूछा, 'तुमने तोता क्यों उड़ा दिया। जवाहर ने कहा, 'पिताजी पूरे देश की जनता आज़ादी चाह रही है। तोता भी आज़ादी चाह रहा था, सो मैंने उसे आज़ाद कर दिया।' मोतीलाल जवाहर का मुंह देखते रह गये।  
*जवाहर लाल नेहरू जी ने अपने बचपन का किस्सा बयान करते हुये अपनी पुस्तक मेरी कहानी में लिखा है कि वे अपने पिता मोतीलाल नेहरू जी का बहुत सम्मान करते थे। हांलांकि वे कडकमिजाज थे सो वे उनसे डरते भी बहुत थे क्योकि उन्होंने नौकर चाकरों आदि पर उन्हें बिगडते कई बार देखा था । उनकी तेज मिजाजी का एक किस्सा बताते हुये नेहरू जी ने लिखा है कि उनकी तेज मिजाजी की एक घटना मुझे याद है क्योंकि बचपन ही में मैं उसका शिकार हो गया था । कोई 5-6 वर्ष की उम्र रही होगी । एक रोज मैने पिताजी की मेज पर दो फाउन्टेन पेन पडे देखे। मेरा जी ललचाया मैने दिन में कहा पिताजी एक साथ दो पेनों का क्या करेंगे? एक मैने अपनी जेब मे डाल लिया। बाद में बडी जोरों की तलाश हुई कि पेन कहां चला गया? तब तो मैं घबराया। मगर मैने बताया नहीं । पेन मिल गया और मैं गुनहगार करार दिया गया। पिताजी बहुत नाराज हुऐ और मेरी खूब मरम्मम की। मैं दर्द व अपमान से अपना सा मुंह लिये मां की गोद मे दौडा गया और कई दिन तक मेरे दर्द करते हुए छोटे से बदन पर क्रीम और मरहम लगाये गये। लेकिन मुझे याद नहीं पडत कि इस सजा के कारण पिताजी को मैने कोसा हो। मैं समझता हूं मेरे दिल ने यही कहा होगा कि सजा तो तुझे वाजिब ही मिली है, मगर थी जरूरत से ज्यादा।
*जवाहरलाल नेहरू जी ने अपने बचपन का किस्सा बयान करते हुये अपनी पुस्तक मेरी कहानी में लिखा है कि वे अपने पिता मोतीलाल नेहरू जी का बहुत सम्मान करते थे। हालांकि वे कड़कमिजाज थे सो वे उनसे डरते भी बहुत थे क्योंकि उन्होंने नौकर चाकरों आदि पर उन्हें बिगडते कई बार देखा था। उनकी तेज मिजाजी का एक किस्सा बताते हुये नेहरू जी ने लिखा है कि उनकी तेज मिजाजी की एक घटना मुझे याद है क्योंकि बचपन में ही मैं उसका शिकार हो गया था। कोई 5-6 वर्ष की उम्र रही होगी। एक रोज मैंने पिताजी की मेज पर दो फाउन्टेन पेन पड़े देखे। मेरा जी ललचाया मैंने दिन में कहा पिताजी एक साथ दो पेनों का क्या करेंगे? एक मैंने अपनी जेब मे डाल लिया। बाद में बड़ी ज़ोरों की तलाश हुई कि पेन कहां चला गया? तब तो मैं घबराया। मगर मैने बताया नहीं। पेन मिल गया और मैं गुनहगार करार दिया गया। पिताजी बहुत नाराज़ हुऐ और मेरी खूब मरम्मत की। मैं दर्द व अपमान से अपना सा मुंह लिये मां की गोद में दौड़ा गया और कई दिन तक मेरे दर्द करते हुए छोटे से बदन पर क्रीम और मरहम लगाये गये। लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता कि इस सज़ा के कारण पिताजी को मैंने कोसा हो। मैं समझता हूं मेरे दिल ने यही कहा होगा कि सज़ा तो तुझे वाजिब ही मिली है, मगर थी ज़रूरत से ज़्यादा।
*जवाहरलाल नेहरू अपने कुछ ख़ास सहयोगियों के साथ एक दिन ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर रहे थे। एक खेत में उन्होंने चने की फ़सल देखी। अधपके चने देखकर सबके मुंह में पानी आ गया और कच्चे चने खाने के लिये कार रुकवाई। सब लोग खेत में घुस गये। नेहरू जी ने चने की केवल फलियां ही फलियां तोड़ी। कुछ लोगों ने पौधे ही उखाड़ लिए। इस पर नेहरू जी ने उन्हें डांटा, 'पौधों में कुछ फलियां अभी लगी ही हैं जिनमें दाना नहीं है। तुम केवल दाने वाली फलियां ही तोड़ो जिनकी तुम्हें जरुरत हैं। पौधे उखाड़ लेने से नुक़सान हो रहा है। ऐसा तो जानवर करते हैं।  
*जवाहरलाल नेहरू अपने कुछ ख़ास सहयोगियों के साथ एक दिन ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर रहे थे। एक खेत में उन्होंने चने की फ़सल देखी। अधपके चने देखकर सबके मुंह में पानी आ गया और कच्चे चने खाने के लिये कार रुकवाई। सब लोग खेत में घुस गये। नेहरू जी ने चने की केवल फलियां ही फलियां तोड़ी। कुछ लोगों ने पौधे ही उखाड़ लिए। इस पर नेहरू जी ने उन्हें डांटा, 'पौधों में कुछ फलियां अभी लगी ही हैं जिनमें दाना नहीं है। तुम केवल दाने वाली फलियां ही तोड़ो जिनकी तुम्हें जरुरत हैं। पौधे उखाड़ लेने से नुक़सान हो रहा है। ऐसा तो जानवर करते हैं।  
* [[भाखड़ा बांध]] से सिंचाई योजना का उद्घाटन होना था। नेहरूजी को योजना के व्यवस्थापकों ने [[चांदी]] का फावड़ा उदघाटन करने के लिए पकड़ाया। इस पर नेहरू झुंझला गये। उन्होंने पास में पड़ा लोहे का फावड़ा उठाया और उसे ज़मीन पर चलाते हुए कहा, 'भारत का किसान क्या चांदी के फावड़े से काम करता है।  
* [[भाखड़ा बांध]] से सिंचाई योजना का उद्घाटन होना था। नेहरूजी को योजना के व्यवस्थापकों ने [[चांदी]] का फावड़ा उद्घाटन करने के लिए पकड़ाया। इस पर नेहरू झुंझला गये। उन्होंने पास में पड़ा लोहे का फावड़ा उठाया और उसे ज़मीन पर चलाते हुए कहा, 'भारत का किसान क्या चांदी के फावड़े से काम करता है।  
* [[महाराष्ट्र]] में [[अकाल]] पड़ा तो वहाँ भूख से तमाम मौतें हुईं। नेहरूजी अकालग्रस्त क्षेत्रों के मुआयने के लिए गये। एक स्थान पर लोगों की भीड़ में से नन्हें ग्रामीण बच्चे को हाथों में ऊपर उठा लिया और उसकी ठोड़ी पकड़ कर सिर ऊंचा किया। लोग नेहरूजी का आशय समझ गये कि मुसीबत में मनोबल बनाए रखकर साहस के साथ मुक़ाबला करना चाहिए।  
* [[महाराष्ट्र]] में [[अकाल]] पड़ा तो वहाँ भूख से तमाम मौतें हुईं। नेहरूजी अकालग्रस्त क्षेत्रों के मुआयने के लिए गये। एक स्थान पर लोगों की भीड़ में से नन्हें ग्रामीण बच्चे को हाथों में ऊपर उठा लिया और उसकी ठोड़ी पकड़ कर सिर ऊंचा किया। लोग नेहरूजी का आशय समझ गये कि मुसीबत में मनोबल बनाए रखकर साहस के साथ मुक़ाबला करना चाहिए।  
* एक मेले से नेहरूजी की कार गुज़र रही थी और सुरक्षाबल लोगों को हटाकर कार के लिए रास्ता बना रहे थे। भीड़ में से एक बुढ़िया ने चिल्लाकर कहा, 'ओ नेहरू तू इत्ता बड़ा हो गया कि लोग तुझसे मिल नहीं सकते।' नेहरूजी कार से उतर पड़े, बुढ़िया के पास हाथ जोड़ते हुए गये और बोले, 'कहां बड़ा हो गया मां, बड़ा हो जाता तो तू मुझसे ऐसे बोल पाती। फिर उन्होंने उसकी परेशानी पूछी। उसने अपनी फटेहाली बताई तो नेहरूजी ने अफ़सरों को सख्त हिदायत दी कि उसके लिए आर्थिक सहायता का इंतज़ाम तुरंत किया जाए।
* एक मेले से नेहरूजी की कार गुज़र रही थी और सुरक्षाबल लोगों को हटाकर कार के लिए रास्ता बना रहे थे। भीड़ में से एक बुढ़िया ने चिल्लाकर कहा, 'ओ नेहरू तू इत्ता बड़ा हो गया कि लोग तुझसे मिल नहीं सकते।' नेहरूजी कार से उतर पड़े, बुढ़िया के पास हाथ जोड़ते हुए गये और बोले, 'कहां बड़ा हो गया मां, बड़ा हो जाता तो तू मुझसे ऐसे बोल पाती। फिर उन्होंने उसकी परेशानी पूछी। उसने अपनी फटेहाली बताई तो नेहरूजी ने अफ़सरों को सख्त हिदायत दी कि उसके लिए आर्थिक सहायता का इंतज़ाम तुरंत किया जाए।
* एक कार्यक्रम में एक छात्र ने उनसे ऑटोग्राफ लेने के लिए अपनी कॉपी उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा, 'इसमें सिग्नेचर कर दीजिए। 'नेहरू जी ने उसमें अपने दस्तख्त [[अंग्रेज़ी]] में कर दिए। छात्र को पता था कि नेहरूजी आमतौर पर [[हिन्दी]] में ही [[हस्ताक्षर]] करते हैं। उसने पूछ लिया, 'आप तो हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं। फिर मेरी कॉपी में आपने अंग्रेज़ी में किए, ऐसा क्यों। नेहरूजी मुस्कराते हुए बोले, 'भाई, तुमने सिग्नेचर करने को बोला था, हस्ताक्षर करने को नहीं।'  
* एक कार्यक्रम में एक छात्र ने उनसे ऑटोग्राफ लेने के लिए अपनी कॉपी उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा, 'इसमें सिग्नेचर कर दीजिए। 'नेहरू जी ने उसमें अपने दस्तखत [[अंग्रेज़ी]] में कर दिए। छात्र को पता था कि नेहरूजी आमतौर पर [[हिन्दी]] में ही [[हस्ताक्षर]] करते हैं। उसने पूछ लिया, 'आप तो हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं। फिर मेरी कॉपी में आपने अंग्रेज़ी में किए, ऐसा क्यों। नेहरूजी मुस्कराते हुए बोले, 'भाई, तुमने सिग्नेचर करने को बोला था, हस्ताक्षर करने को नहीं।'  




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09:06, 11 फ़रवरी 2014 का अवतरण

जवाहरलाल नेहरू

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कुछ प्रेरक प्रसंग इस प्रकार हैं-

  • बात उस समय की है जब जवाहरलाल नेहरू किशोर अवस्था के थे। पिता मोतीलाल नेहरू उन दिनों अंग्रेजों से भारत को आज़ाद कराने की मुहिम में शामिल थे। इसका असर बालक जवाहर पर भी पड़ा। मोतीलाल ने पिंजरे में तोता पाल रखा था। एक दिन जवाहर ने तोते को पिंजरे से आज़ाद कर दिया। मोतीलाल को तोता बहुत प्रिय था। उसकी देखभाल एक नौकर करता था। नौकर ने यह बात मोतीलाल को बता दी। मोतीलाल ने जवाहर से पूछा, 'तुमने तोता क्यों उड़ा दिया। जवाहर ने कहा, 'पिताजी पूरे देश की जनता आज़ादी चाह रही है। तोता भी आज़ादी चाह रहा था, सो मैंने उसे आज़ाद कर दिया।' मोतीलाल जवाहर का मुंह देखते रह गये।
  • जवाहरलाल नेहरू जी ने अपने बचपन का किस्सा बयान करते हुये अपनी पुस्तक मेरी कहानी में लिखा है कि वे अपने पिता मोतीलाल नेहरू जी का बहुत सम्मान करते थे। हालांकि वे कड़कमिजाज थे सो वे उनसे डरते भी बहुत थे क्योंकि उन्होंने नौकर चाकरों आदि पर उन्हें बिगडते कई बार देखा था। उनकी तेज मिजाजी का एक किस्सा बताते हुये नेहरू जी ने लिखा है कि उनकी तेज मिजाजी की एक घटना मुझे याद है क्योंकि बचपन में ही मैं उसका शिकार हो गया था। कोई 5-6 वर्ष की उम्र रही होगी। एक रोज मैंने पिताजी की मेज पर दो फाउन्टेन पेन पड़े देखे। मेरा जी ललचाया मैंने दिन में कहा पिताजी एक साथ दो पेनों का क्या करेंगे? एक मैंने अपनी जेब मे डाल लिया। बाद में बड़ी ज़ोरों की तलाश हुई कि पेन कहां चला गया? तब तो मैं घबराया। मगर मैने बताया नहीं। पेन मिल गया और मैं गुनहगार करार दिया गया। पिताजी बहुत नाराज़ हुऐ और मेरी खूब मरम्मत की। मैं दर्द व अपमान से अपना सा मुंह लिये मां की गोद में दौड़ा गया और कई दिन तक मेरे दर्द करते हुए छोटे से बदन पर क्रीम और मरहम लगाये गये। लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता कि इस सज़ा के कारण पिताजी को मैंने कोसा हो। मैं समझता हूं मेरे दिल ने यही कहा होगा कि सज़ा तो तुझे वाजिब ही मिली है, मगर थी ज़रूरत से ज़्यादा।
  • जवाहरलाल नेहरू अपने कुछ ख़ास सहयोगियों के साथ एक दिन ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण कर रहे थे। एक खेत में उन्होंने चने की फ़सल देखी। अधपके चने देखकर सबके मुंह में पानी आ गया और कच्चे चने खाने के लिये कार रुकवाई। सब लोग खेत में घुस गये। नेहरू जी ने चने की केवल फलियां ही फलियां तोड़ी। कुछ लोगों ने पौधे ही उखाड़ लिए। इस पर नेहरू जी ने उन्हें डांटा, 'पौधों में कुछ फलियां अभी लगी ही हैं जिनमें दाना नहीं है। तुम केवल दाने वाली फलियां ही तोड़ो जिनकी तुम्हें जरुरत हैं। पौधे उखाड़ लेने से नुक़सान हो रहा है। ऐसा तो जानवर करते हैं।
  • भाखड़ा बांध से सिंचाई योजना का उद्घाटन होना था। नेहरूजी को योजना के व्यवस्थापकों ने चांदी का फावड़ा उद्घाटन करने के लिए पकड़ाया। इस पर नेहरू झुंझला गये। उन्होंने पास में पड़ा लोहे का फावड़ा उठाया और उसे ज़मीन पर चलाते हुए कहा, 'भारत का किसान क्या चांदी के फावड़े से काम करता है।
  • महाराष्ट्र में अकाल पड़ा तो वहाँ भूख से तमाम मौतें हुईं। नेहरूजी अकालग्रस्त क्षेत्रों के मुआयने के लिए गये। एक स्थान पर लोगों की भीड़ में से नन्हें ग्रामीण बच्चे को हाथों में ऊपर उठा लिया और उसकी ठोड़ी पकड़ कर सिर ऊंचा किया। लोग नेहरूजी का आशय समझ गये कि मुसीबत में मनोबल बनाए रखकर साहस के साथ मुक़ाबला करना चाहिए।
  • एक मेले से नेहरूजी की कार गुज़र रही थी और सुरक्षाबल लोगों को हटाकर कार के लिए रास्ता बना रहे थे। भीड़ में से एक बुढ़िया ने चिल्लाकर कहा, 'ओ नेहरू तू इत्ता बड़ा हो गया कि लोग तुझसे मिल नहीं सकते।' नेहरूजी कार से उतर पड़े, बुढ़िया के पास हाथ जोड़ते हुए गये और बोले, 'कहां बड़ा हो गया मां, बड़ा हो जाता तो तू मुझसे ऐसे बोल पाती। फिर उन्होंने उसकी परेशानी पूछी। उसने अपनी फटेहाली बताई तो नेहरूजी ने अफ़सरों को सख्त हिदायत दी कि उसके लिए आर्थिक सहायता का इंतज़ाम तुरंत किया जाए।
  • एक कार्यक्रम में एक छात्र ने उनसे ऑटोग्राफ लेने के लिए अपनी कॉपी उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा, 'इसमें सिग्नेचर कर दीजिए। 'नेहरू जी ने उसमें अपने दस्तखत अंग्रेज़ी में कर दिए। छात्र को पता था कि नेहरूजी आमतौर पर हिन्दी में ही हस्ताक्षर करते हैं। उसने पूछ लिया, 'आप तो हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं। फिर मेरी कॉपी में आपने अंग्रेज़ी में किए, ऐसा क्यों। नेहरूजी मुस्कराते हुए बोले, 'भाई, तुमने सिग्नेचर करने को बोला था, हस्ताक्षर करने को नहीं।'


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