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'''[[सूरदास]]''' [[हिन्दी साहित्य]] के [[भक्तिकाल]] में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी [[वात्सल्य रस]] के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने [[शृंगार रस|शृंगार]] और [[शान्त रस|शान्त रसों]] का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। [[आगरा]] के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास जी [[अष्टछाप कवि|अष्टछाप कवियों]] में एक थे। सूरदास की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना '[[सूरसागर]]' है। [[सूरदास|... और पढ़ें]] | '''[[सूरदास]]''' [[हिन्दी साहित्य]] के [[भक्तिकाल]] में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी [[वात्सल्य रस]] के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने [[शृंगार रस|शृंगार]] और [[शान्त रस|शान्त रसों]] का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। [[आगरा]] के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास जी [[अष्टछाप कवि|अष्टछाप कवियों]] में एक थे। सूरदास की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना '[[सूरसागर]]' है। [[सूरदास|... और पढ़ें]] |
09:12, 1 मार्च 2014 का अवतरण
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