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निर्वाणी सोलहवें जैन तीर्थकर की संरक्षिका, सेविका यक्षिणी और शासन देवी मानी गई हैं। जैन आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार सुन्दर काया वाली, कमल के आसन पर विराजमान, चतुर्भुजा निर्वाणी सोलहवें जैन तीर्थकर की संरक्षिका-सेविका यक्षिणी हैं।

  • इसके एक सीधे हाथ में पुस्तक, दूसरे में नील कमल तथा एक बाएँ हाथ में जल-कलश और कमल पुष्प हैं।
  • भट्टाचार्य के अनुसार लखनऊ के संग्रहालय में निर्वाणी यक्षिणी की अलग से एक पाषाण प्रतिमा मौजूद है।
  • ग्वालियर में भी इस यक्षिणी की सेविका के रूप में मूर्तियाँ मिलती हैं।
  • निर्वाणी यक्षिणी के हाथ में पुस्तक और कमल पुष्प हिन्दुओं की विद्या की देवी सरस्वती की याद दिलाते हैं।
  • इसके हाथ में जल-कलश, पुष्प जैन यक्ष परम्परा के प्रतीक हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 450 |

  1. हेमचन्द्र : त्रिशस्ति/भट्टाचार्य, बी.सी. : जैन मूर्तिकला।

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