"कवि का हृदय सूना -दिनेश सिंह": अवतरणों में अंतर

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13:18, 8 मई 2014 का अवतरण

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चाँद संग है चांदनी
धरा भी है स्वरमयी
विपिन संग है खग दल का कलरव
पर्वतों संग झरनो का स्वर
सकल जग है स्वरमयी
नहीं रिक्त है कोई भी कोना
किन्तु कवि का ह्रदय सूना

सागर संग नदियों के धारे
लहरों के संग है किनारे
शोर कर बहती पवन को
छितिज पर मिलता ठिकाना
किन्तु कवि का ह्रदय सूना

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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