"पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी": अवतरणों में अंतर
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दयानन्द जी के देहान्त के बाद गुरुदत्त ने उनकी स्मृति में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना का प्रस्ताव रखा। इसका उपस्थित सभी लोगों ने समर्थन किया और उसी समय आठ ह़जार रुपये एकत्र भी हो गये। इस विद्यालय के कार्य के लिये गुरुदत्त ने देश के कई भागों में सभाएं कीं और वैदिक ज्ञान के साथ [[अंग्रेज़ी]] के ज्ञान की महत्ता भी बताई। उनके इस काम में लाला लाजपत राय भी शामिल हो गये। लाजपत राय के जोशीले भाषण, गुरुदत्त की अपील और लाला हंसराज के प्रयत्नों से तीन साल में 20 ह़जार ऩकद और 44 ह़जार रुपये के आश्वासन उन्हें मिले। अन्त में [[1 जून]], [[1886]] को [[लाहौर]] में डीएवी स्कूल की स्थापना हो गई। [[लाला हंसराज]] इस विद्यालय के प्रथम प्राचार्य नियुक्त हुए।<ref>{{cite web |url=http://www.jagran.com/uttar-pradesh/jhansi-city-11263623.html|title=गुरुदत्त विद्यार्थी की जन्म तिथि आज|accessmonthday=12 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | दयानन्द जी के देहान्त के बाद गुरुदत्त ने उनकी स्मृति में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना का प्रस्ताव रखा। इसका उपस्थित सभी लोगों ने समर्थन किया और उसी समय आठ ह़जार रुपये एकत्र भी हो गये। इस विद्यालय के कार्य के लिये गुरुदत्त ने देश के कई भागों में सभाएं कीं और वैदिक ज्ञान के साथ [[अंग्रेज़ी]] के ज्ञान की महत्ता भी बताई। उनके इस काम में लाला लाजपत राय भी शामिल हो गये। लाजपत राय के जोशीले भाषण, गुरुदत्त की अपील और लाला हंसराज के प्रयत्नों से तीन साल में 20 ह़जार ऩकद और 44 ह़जार रुपये के आश्वासन उन्हें मिले। अन्त में [[1 जून]], [[1886]] को [[लाहौर]] में डीएवी स्कूल की स्थापना हो गई। [[लाला हंसराज]] इस विद्यालय के प्रथम प्राचार्य नियुक्त हुए।<ref>{{cite web |url=http://www.jagran.com/uttar-pradesh/jhansi-city-11263623.html|title=गुरुदत्त विद्यार्थी की जन्म तिथि आज|accessmonthday=12 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी जी के दो [[अंग्रेज़ी]] लेख 'वैदिक संज्ञा विज्ञान' तथा 'वैदिक संज्ञा विज्ञान व यूरोप के विद्वान' को ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था। क्षय रोग के कारण [[19 मार्च]], [[1890]] को महज 26 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हो गया। किन्तु उतने ही समय में उन्होंने अपनी विद्वता की छाप छोड़ी और अनेकानेक विद्वतापूर्ण ग्रन्थों की रचना की। | पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी जी के दो [[अंग्रेज़ी]] लेख 'वैदिक संज्ञा विज्ञान' तथा 'वैदिक संज्ञा विज्ञान व यूरोप के विद्वान' को ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था। [[क्षय रोग]] के कारण [[19 मार्च]], [[1890]] को महज 26 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हो गया। किन्तु उतने ही समय में उन्होंने अपनी विद्वता की छाप छोड़ी और अनेकानेक विद्वतापूर्ण ग्रन्थों की रचना की। | ||
08:06, 17 मई 2014 का अवतरण
पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी
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पूरा नाम | पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी |
जन्म | 26 अप्रैल, 1864 |
जन्म भूमि | मुल्तान, पाकिस्तान (ब्रिटिश भारत) |
मृत्यु | 19 मार्च, 1890 |
गुरु | स्वामी दयानन्द सरस्वती |
कर्म भूमि | भारत |
शिक्षा | विज्ञान से एम.ए. |
विशेष योगदान | गुरुदत्त विद्यार्थी तथा लाला लाजपत राय के प्रयत्नों से ही लाहौर में डीएवी कॉलेज की स्थापना हुई थी। |
नागरिकता | नागरिकता |
संबंधित लेख | आर्य समाज, स्वामी दयानन्द सरस्वती, लाला लाजपत राय, महात्मा हंसराज |
अन्य जानकारी | 1883 में जब स्वामी दयानन्द सरस्वती बीमार थे, तब लाहौर से दो लोगों को उनकी सेवा के लिये भेजा गया था, जिसमें से गुरुदत्त विद्यार्थी भी एक थे। |
पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी (अंग्रेज़ी: Pandit Gurudatta Vidyarthi; जन्म- 26 अप्रैल, 1864, मुल्तान, पाकिस्तान; मृत्यु- 19 मार्च, 1890) आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता थे। वे स्वामी दयानन्द सरस्वती के शिष्य थे। पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी की गिनती आर्य समाज के पाँच प्रमुख नेताओं में की जाती थी। दयानन्द सरस्वती के देहान्त के बाद गुरुदत्त विद्यार्थी ने उनकी स्मृति में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। गुरुदत्त विद्यार्थी, लाला लाजपत राय और लाला हंसराज के प्रयत्नों से ही 1 जून, 1886 को लाहौर, पाकिस्तान में डीएवी स्कूल की स्थापना हुई थी।
जन्म तथा शिक्षा
पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी का जन्म 26 अप्रैल, 1864 ई. में ब्रिटिशकालीन पाकिस्तान के मुल्तान में प्रसिद्ध वीर सरदाना कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम लाला रामकृष्ण था, जो फ़ारसी के प्रसिद्ध विद्वान थे। गुरुदत्त जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा मुल्तान में पाई और फिर लाहौर आ गए। यहाँ लाला हंसराज और लाला लाजपत राय भी पढ़ रहे थे। तीनों की आपस में बहुत घनिष्ठता हो गई। गुरुदत्त को विज्ञान में रुचि थी, इसके कारण वे हर चीज को विज्ञान की कसौटी पर कस कर देखते थे। उनके इस स्वभाव के कारण उनका व्यवहार नास्तिक हो गया था। पण्डित गुरुदत्त ने विज्ञान वर्ग से एम.ए. तक की शिक्षा प्राप्त की थी।
दयानन्द सरस्वती की सेवा
कुछ समय बाद पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी आर्य समाज के सम्पर्क में आये। समाज के उद्देश्य और ज्ञान का अध्ययन करने के बाद वे आस्तिक हो गये। 1883 में जब स्वामी दयानन्द सरस्वती बीमार थे, तो लाहौर से दो लोगों को उनकी सेवा के लिये भेजा गया, जिसमें से एक गुरुदत्त भी थे।
डीएवी कॉलेज की स्थापना
दयानन्द जी के देहान्त के बाद गुरुदत्त ने उनकी स्मृति में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना का प्रस्ताव रखा। इसका उपस्थित सभी लोगों ने समर्थन किया और उसी समय आठ ह़जार रुपये एकत्र भी हो गये। इस विद्यालय के कार्य के लिये गुरुदत्त ने देश के कई भागों में सभाएं कीं और वैदिक ज्ञान के साथ अंग्रेज़ी के ज्ञान की महत्ता भी बताई। उनके इस काम में लाला लाजपत राय भी शामिल हो गये। लाजपत राय के जोशीले भाषण, गुरुदत्त की अपील और लाला हंसराज के प्रयत्नों से तीन साल में 20 ह़जार ऩकद और 44 ह़जार रुपये के आश्वासन उन्हें मिले। अन्त में 1 जून, 1886 को लाहौर में डीएवी स्कूल की स्थापना हो गई। लाला हंसराज इस विद्यालय के प्रथम प्राचार्य नियुक्त हुए।[1]
निधन
पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी जी के दो अंग्रेज़ी लेख 'वैदिक संज्ञा विज्ञान' तथा 'वैदिक संज्ञा विज्ञान व यूरोप के विद्वान' को ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था। क्षय रोग के कारण 19 मार्च, 1890 को महज 26 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हो गया। किन्तु उतने ही समय में उन्होंने अपनी विद्वता की छाप छोड़ी और अनेकानेक विद्वतापूर्ण ग्रन्थों की रचना की।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गुरुदत्त विद्यार्थी की जन्म तिथि आज (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 मई, 2014।
संबंधित लेख