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'''चीड़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pine'') एक सपुष्पक, किन्तु अनावृतबीजी पौधा है। यह सीधा [[पृथ्वी]] पर खड़ा रहता है। इसमें शाखाएँ तथा प्रशाखाएँ निकलकर शंक्वाकार शरीर की रचना करती हैं। पूरे विश्व में चीड़ ली 115 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये 03 से 80 मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। चीड़ के वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं। इनकी 90 जातियाँ उत्तर में वृक्ष रेखा से लेकर दक्षिण में शीतोष्ण कटिबंध तथा उष्ण कटिबंध के ठंडे पहाड़ों पर फैली हुई हैं। इनके विस्तार के मुख्य स्थान उत्तरी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ़्रीका के शीतोष्ण भाग तथा [[एशिया]] में [[भारत]], [[बर्मा]], [[जावा द्वीप|जावा]], सुमात्रा, बोर्नियो और फिलीपींस द्वीपसमूह हैं। | '''चीड़''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pine'') एक सपुष्पक, किन्तु अनावृतबीजी पौधा है। यह सीधा [[पृथ्वी]] पर खड़ा रहता है। इसमें शाखाएँ तथा प्रशाखाएँ निकलकर शंक्वाकार शरीर की रचना करती हैं। पूरे विश्व में चीड़ ली 115 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये 03 से 80 मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। चीड़ के वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं। इनकी 90 जातियाँ उत्तर में वृक्ष रेखा से लेकर दक्षिण में शीतोष्ण कटिबंध तथा उष्ण कटिबंध के ठंडे पहाड़ों पर फैली हुई हैं। इनके विस्तार के मुख्य स्थान उत्तरी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ़्रीका के शीतोष्ण भाग तथा [[एशिया]] में [[भारत]], [[बर्मा]], [[जावा द्वीप|जावा]], सुमात्रा, बोर्नियो और फिलीपींस द्वीपसमूह हैं। | ||
==संरचना== | ==संरचना== | ||
चीड़ के कम उम्र के छोटे पौधों में निचली शाखाओं के अधिक दूर तक फैलने तथा ऊपरी शाखाओं के कम दूर तक फैलने के करण इनका सामान्य आकार पिरामिड जैसा हो जाता है। पुराने होने पर वृक्षों का आकार धीरे-धीरे गोलाकार हो जाता है। जगलों में उगने वाले वृक्षों की निचली शाखाएँ शीघ्र गिर जाती हैं और इनका तना काफी सीधा, ऊँचा, स्तंभ जैसा हो जाता है। इनकी कुछ जातियों में एक से अधिक मुख्य तने पाए जाते हैं। छाल साधारणत: मोटी और खुरदरी होती है, परंतु कुछ जातियों में पतली भी होती है।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.pragatiparyavaran.in/cheed.php|title= चीड़ का पेड़|accessmonthday=20 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रगति पर्यावरण|language=हिन्दी}}</ref> | चीड़ के कम उम्र के छोटे पौधों में निचली शाखाओं के अधिक दूर तक फैलने तथा ऊपरी शाखाओं के कम दूर तक फैलने के करण इनका सामान्य आकार पिरामिड जैसा हो जाता है। पुराने होने पर वृक्षों का आकार धीरे-धीरे गोलाकार हो जाता है। जगलों में उगने वाले वृक्षों की निचली शाखाएँ शीघ्र गिर जाती हैं और इनका तना काफी सीधा, ऊँचा, स्तंभ जैसा हो जाता है। इनकी कुछ जातियों में एक से अधिक मुख्य तने पाए जाते हैं। छाल साधारणत: मोटी और खुरदरी होती है, परंतु कुछ जातियों में पतली भी होती है।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.pragatiparyavaran.in/cheed.php|title= चीड़ का पेड़|accessmonthday=20 जून|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रगति पर्यावरण|language=हिन्दी}}</ref> |
08:09, 21 जून 2014 का अवतरण
चीड़
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जगत | पादप |
वर्ग | पिनोप्सिडा (Pinopsida) |
गण | पायनालेज़ (Pinales) |
कुल | पायनेसीए (Pinaceae) |
प्रजाति | पाइनस (Pinus) |
विभाग | कोणधारी (Pinophyta) |
अन्य जानकारी | चीड़ की लकड़ी काफी आर्थिक महत्व की हाती है। विश्व की सब उपयोगी लकड़ियों का लगभग आधा भाग चीड़ द्वारा पूरा होता है। अनेकानेक कार्यों में, जैसे- पुल निर्माण में, बड़ी-बड़ी इमारतों में, रेलगाड़ी की पटरियों के लिये, कुर्सी, मेज, संदूक और खिलौने इत्यादि बनाने में इसका उपयोग होता है। |
चीड़ (अंग्रेज़ी: Pine) एक सपुष्पक, किन्तु अनावृतबीजी पौधा है। यह सीधा पृथ्वी पर खड़ा रहता है। इसमें शाखाएँ तथा प्रशाखाएँ निकलकर शंक्वाकार शरीर की रचना करती हैं। पूरे विश्व में चीड़ ली 115 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये 03 से 80 मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। चीड़ के वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं। इनकी 90 जातियाँ उत्तर में वृक्ष रेखा से लेकर दक्षिण में शीतोष्ण कटिबंध तथा उष्ण कटिबंध के ठंडे पहाड़ों पर फैली हुई हैं। इनके विस्तार के मुख्य स्थान उत्तरी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ़्रीका के शीतोष्ण भाग तथा एशिया में भारत, बर्मा, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो और फिलीपींस द्वीपसमूह हैं।
संरचना
चीड़ के कम उम्र के छोटे पौधों में निचली शाखाओं के अधिक दूर तक फैलने तथा ऊपरी शाखाओं के कम दूर तक फैलने के करण इनका सामान्य आकार पिरामिड जैसा हो जाता है। पुराने होने पर वृक्षों का आकार धीरे-धीरे गोलाकार हो जाता है। जगलों में उगने वाले वृक्षों की निचली शाखाएँ शीघ्र गिर जाती हैं और इनका तना काफी सीधा, ऊँचा, स्तंभ जैसा हो जाता है। इनकी कुछ जातियों में एक से अधिक मुख्य तने पाए जाते हैं। छाल साधारणत: मोटी और खुरदरी होती है, परंतु कुछ जातियों में पतली भी होती है।[1]
पत्तियाँ
चीड़ के वृक्ष में दो प्रकार की टहनियाँ पाई जाती हैं- एक लंबी, जिन पर शल्क पत्र लगे होते हैं, तथा दूसरी छोटी टहनियाँ, जिन पर सुई के आकार की लंबी, नुकीली पत्तियाँ गुच्छों में लगी होती हैं। नए पौधों में पत्तियाँ एक या दो सप्ताह में ही पीली होकर गिर जाती हैं। वृक्षों के बड़े हो जाने पर पत्तियाँ इतनी जल्दी नहीं गिरतीं। सदा हरी रहने वाली पत्तियों की अनुप्रस्थ काट[2] तिकोनी, अर्धवृत्ताकार तथा कभी-कभी वृत्ताकार भी होती है। पत्तियाँ दो, तीन, पाँच या आठ के गुच्छों में या अकेली ही टहनियों से निकलती हैं। इनकी लंबाई दो से लेकर 14 इंच तक होती है और इनके दोनों तरु रंध्र[3] कई पंक्तियों में पाए जाते हैं। पत्ती के अंदर एक या दो वाहिनी बंडल[4] और दो या अधिक रेजिन नलिकाएँ होती हैं।
नर और मादा शंकु
वसंत ऋतु में एक ही पेड़ पर नर और मादा कोन या शंकु निकलते हैं। नर शंकु कत्थई अथवा पीले रंग का साधारणत: एक इंच से कुछ छोटा होता है। प्रत्येक नर शंकु में बहुत से द्विकोषीय लघु बीजाणुधानियाँ[5] होती हैं। ये लघुबीजाणुधानियाँ छोटे-छोटे सहस्त्रों परागकणों से भरी होती हैं। परागकणों के दोनों सिरों का भाग फूला होने से ये हवा में आसानी से उड़कर दूर-दूर तक पहुँच जाते हैं। मादा शंकु चार इंच से लेकर 20 इंच तक लंबी होती है। इसमें बहुत से बीजांडी शल्क[6] चारों तरफ से निकले होते हैं। प्रत्येक शल्क पर दो बीजांड[7] लगे होते हैं। अधिकतर जातियों में बीज पक जाने पर शंकु की शल्कें खुलकर अलग हो जाती हैं और बीज हव में उड़कर फैल जाते हैं। कुछ जातियों में शकुं नहीं भी खुलते और भूमि पर गिर जाते हैं। बीज का ऊपरी भाग कई जातियों में काग़ज़ की तरह पतला और चौड़ा हो जाता है, जो बीज को हवा द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में सहायता करता है। बीज के चारों ओर मजबूत कोशिकाओं निर्मित आवरण या छिलका रहता है। इसके भीतर तीन से अठारह तक बीजपत्र उपस्थित होते हैं।[1]
पौध तैयार करना
चीड़ के पौधे को उगाने के लिये काफी अच्छी भूमि तैयार करनी पड़ती है। छोटी-छोटी क्यारियों में मार्च-अप्रैल के महीने में बीज मिट्टी में एक या दो इंच नीचे बो दिया जाता है। चूहों, चिड़ियों और अन्य जंतुओं से इनकी रक्षा की विशेष आवश्यकता करनी पड़ती है। अंकुर निकल आने पर इन्हें कड़ी धूप से बचाना चाहिए। एक या दो वर्ष पश्चात् इन्हें खोदकर उचित स्थान पर लगा देते हैं। खोदते समय सावधानी रखनी चाहिए, जिसमें जड़ों को किसी प्रकार की हानि न पहुँचे, अन्यथा चीड़, जो स्वभावत: जड़ की हानि नहीं सहन कर सकता, मर जायगा।
प्रकार
चीड़ दो प्रकार के होते हैं-
- कोमल या सफ़ेद, जिसे 'हैप्लोज़ाइलॉन'[8] कहा जाता है। इसकी पत्तियों में एक वाहिनी बंडल होता है, और एक गुच्छे में पाँच, या कभी-कभी से कम, पत्तियाँ होती हैं। वसंत और सूखे मौसम की बनी लकड़ियों में विशेष अंतर नहीं होता।
- कठोर या पीला चीड़, जिसे 'डिप्लोज़ाइलॉन'[9] इसमें एक गुच्छे में दो अथव तीन पत्तियाँ होती हैं। इनकी वसंत और सूखे ऋतु की लकड़ियों में काफी अंतर होता है।
आर्थिक महत्त्व
चीड़ की लकड़ी काफी आर्थिक महत्व की हाती है। विश्व की सब उपयोगी लकड़ियों का लगभग आधा भाग चीड़ द्वारा पूरा होता है। अनेकानेक कार्यों में, जैसे- पुल निर्माण में, बड़ी-बड़ी इमारतों में, रेलगाड़ी की पटरियों के लिये, कुर्सी, मेज, संदूक और खिलौने इत्यादि बनाने में इसका उपयोग होता है। कठोर चीड़ की लकड़ियाँ अधिक मजबूत होती हैं। अच्छाई के आधार पर इन्हें पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है। इन वर्गों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं[1]-
- पाइनस पालुस्ट्रिस (Pinus palustris), पाइनस केरीबिया (Pinus caribaea)
- पाइनस सिलवेस्ट्रिस (Pinus sylvestris), पाइनस रेजिनोसा (Pinus resinosa)
- पाइनस पांडेरोसा (Pinus ponderosa)
- पाइनस पिनिया (Pinus pinea), पाइनस लौंजिफोलिया (Pinus longifolia) तथा पाइनस रेडिएटा Pinus radiata)
- पाइनस बैंक्सियाना (Pinus banksiana)
रोग
चीड़ के वृक्ष में पाये जाने वाले मुख्य रोग इस प्रकार हैं-
सफेद चीड़ ब्लिस्टर रतुआ - यह रोग 'क्रोनारटियम रिबिकोला'[10] नामक फफूँद के आक्रमण के फलस्वरूप होता है। चीड़ की छाल इस रोग के कारण विशेष रूप से प्रभावित होती हैं।
आरमिलेरिया जड़ सड़न - यह रोग 'आरमिलेरिया मीलिया'[11] नामक "गिल फफूँदी" द्वारा होता है। यह जड़ पर जमने लगती है और उसे सड़ा देती है। कभी-कभी तो सैकड़ों वृक्ष इस रोग के कारण नष्ट हो जाते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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