"दिल्ली जब दहल गयी -दिनेश सिंह": अवतरणों में अंतर
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गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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काँप उठा था देश ये सारा | काँप उठा था देश ये सारा | ||
काँप गई थी दिल्ली सारी | काँप गई थी दिल्ली सारी | ||
वह | वह दृश्य भयानक था कितना | ||
वह रात थी कितनी काली | वह रात थी कितनी काली | ||
उसकी करुण चीख निकलकर | उसकी करुण चीख निकलकर | ||
हर मानव के | हर मानव के हृदय समायी | ||
सोये | सोये शासकों के कानों में | ||
आवाज़ दे रही थी जनता सारी | |||
जन मानस का क्रोध उमड़कर | जन मानस का क्रोध उमड़कर | ||
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कहीं कहीं क्यों मौन रहे | कहीं कहीं क्यों मौन रहे | ||
सोच रहा है मन मेरा | सोच रहा है मन ये मेरा | ||
क्या सोच रहा था मन तेरा | क्या सोच रहा था मन तेरा | ||
क्या व्यथा रही होगी हिय में | क्या व्यथा रही होगी हिय में | ||
इस जग को जब | इस जग को जब तुमने छोड़ा | ||
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09:05, 20 जुलाई 2014 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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