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'''सर चार्ल्स जेम्स नेपियर''' (1782-1853 ई.) एक प्रसिद्ध [[अंग्रेज़]] सेनानायक एवं राजनीतिज्ञ था। [[यूरोप]] के युद्धों में अपनी सैनिक योग्यता का परिचय देने के उपरान्त उसे 1824 ई. में [[भारत]] के [[सिंध]] प्रदेश में भारतीय और ब्रिटिश सेना के संचालन का भार सौंपा गया। वह स्वभाव से साम्राज्यवादी मनोवृत्ति तथा आक्रामक नीति का समर्थक था। पदभार सम्भालते ही उसने सिंध के लोगों और वहाँ के अमीरों के न्यायोचित अधिकारों की उपेक्षा करके समूचे प्रदेश को जीतने का संकल्प लिया।
'''सर चार्ल्स जेम्स नेपियर''' (1782-1853 ई.) एक प्रसिद्ध [[अंग्रेज़]] सेनानायक एवं राजनीतिज्ञ था। [[यूरोप]] के युद्धों में अपनी सैनिक योग्यता का परिचय देने के उपरान्त उसे 1824 ई. में [[भारत]] के [[सिंध]] प्रदेश में भारतीय और ब्रिटिश सेना के संचालन का भार सौंपा गया। वह स्वभाव से साम्राज्यवादी मनोवृत्ति तथा आक्रामक नीति का समर्थक था। पदभार सम्भालते ही उसने सिंध के लोगों और वहाँ के अमीरों के न्यायोचित अधिकारों की उपेक्षा करके समूचे प्रदेश को जीतने का संकल्प लिया।
==योग्य सेनानायक==
==योग्य सेनानायक==
अपनी आक्रामक नीति के आधार पर उसने जानबूझ कर सिंध के अमीरों से युद्ध ठाना। 1843 ई. में उसने मियानी के युद्ध में अमीरों को परास्त किया और पुन: [[हैदराबाद]] के युद्ध में उनकी समस्त सैन्य शक्ति नष्ट कर दी। उपरान्त वह 1847 ई. तक सिंध प्रदेश पर निरंकुश किन्तु योग्य शासक की भाँति हुकुमत करता रहा और एक महान सेनानायक का यश प्राप्त करके [[इंग्लैंण्ड]] वापस लौट गया। चिलियानवाला के प्रसिद्ध युद्ध के उपरान्त, जिसमें [[सिक्ख|सिखों]] के द्वारा ब्रिटिश सेना लगभग पराजित हो गई थी, नेपियर को [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की सेना के सर्वोच्च सेनाधिकारी के रूप में पुन: भारत बुलाया गया। किन्तु उसके भारत आने के पूर्व ही अंग्रेज़ों की विजय तथा सिख युद्ध की समाप्ति हो चुकी थी।
अपनी आक्रामक नीति के आधार पर उसने जानबूझ कर सिंध के अमीरों से युद्ध ठाना। 1843 ई. में उसने [[मियानी का युद्ध|मियानी के युद्ध]] में अमीरों को परास्त किया और पुन: [[हैदराबाद]] के युद्ध में उनकी समस्त सैन्य शक्ति नष्ट कर दी। उपरान्त वह 1847 ई. तक सिंध प्रदेश पर निरंकुश किन्तु योग्य शासक की भाँति हुकुमत करता रहा और एक महान सेनानायक का यश प्राप्त करके [[इंग्लैंण्ड]] वापस लौट गया। चिलियानवाला के प्रसिद्ध युद्ध के उपरान्त, जिसमें [[सिक्ख|सिखों]] के द्वारा ब्रिटिश सेना लगभग पराजित हो गई थी, नेपियर को [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की सेना के सर्वोच्च सेनाधिकारी के रूप में पुन: भारत बुलाया गया। किन्तु उसके भारत आने के पूर्व ही अंग्रेज़ों की विजय तथा सिख युद्ध की समाप्ति हो चुकी थी।<ref>{{cite book | last = भट्टाचार्य| first = सच्चिदानन्द | title = भारतीय इतिहास कोश | edition = द्वितीय संस्करण-1989| publisher = उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान| location =  भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =  हिन्दी| pages = 225| chapter =}}</ref>
==डलहौज़ी की फटकार व त्यागपत्र==
==डलहौज़ी की फटकार व त्यागपत्र==
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सर चार्ल्स जेम्स नेपियर (1782-1853 ई.) एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ सेनानायक एवं राजनीतिज्ञ था। यूरोप के युद्धों में अपनी सैनिक योग्यता का परिचय देने के उपरान्त उसे 1824 ई. में भारत के सिंध प्रदेश में भारतीय और ब्रिटिश सेना के संचालन का भार सौंपा गया। वह स्वभाव से साम्राज्यवादी मनोवृत्ति तथा आक्रामक नीति का समर्थक था। पदभार सम्भालते ही उसने सिंध के लोगों और वहाँ के अमीरों के न्यायोचित अधिकारों की उपेक्षा करके समूचे प्रदेश को जीतने का संकल्प लिया।

योग्य सेनानायक

अपनी आक्रामक नीति के आधार पर उसने जानबूझ कर सिंध के अमीरों से युद्ध ठाना। 1843 ई. में उसने मियानी के युद्ध में अमीरों को परास्त किया और पुन: हैदराबाद के युद्ध में उनकी समस्त सैन्य शक्ति नष्ट कर दी। उपरान्त वह 1847 ई. तक सिंध प्रदेश पर निरंकुश किन्तु योग्य शासक की भाँति हुकुमत करता रहा और एक महान सेनानायक का यश प्राप्त करके इंग्लैंण्ड वापस लौट गया। चिलियानवाला के प्रसिद्ध युद्ध के उपरान्त, जिसमें सिखों के द्वारा ब्रिटिश सेना लगभग पराजित हो गई थी, नेपियर को ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना के सर्वोच्च सेनाधिकारी के रूप में पुन: भारत बुलाया गया। किन्तु उसके भारत आने के पूर्व ही अंग्रेज़ों की विजय तथा सिख युद्ध की समाप्ति हो चुकी थी।[1]

डलहौज़ी की फटकार व त्यागपत्र

भारत आने पर उसने कम्पनी की सेनाओं के पुनर्गठन पर फिर से ध्यान दिया, परन्तु कम्पनी की सेवा में रत भारतीय सैनिकों के भत्ते सम्बन्धी नियमों में परिवर्तन कर देने के लिए उसे तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौज़ी की भर्त्सना सहनी पड़ी। फलत: उसने त्यागपत्र प्रेषित कर दिया और इंग्लैंण्ड वापस लौट गया। यद्यपि नेपियर योग्य सेनानायक था, तथापि एक राजनीतिज्ञ के रूप में वह औचित्य-अनौचित्य पर ध्यान न देने वाला तथा झगड़ालु प्रकृति का व्यक्ति भी था। उसे 1857 ई. के सिपाही विद्रोह का पूर्वाभास हो गया था। उसने तत्कालीन भारत सरकार के प्रशासकीय एवं सैनिक दोषों पर एक पुस्तक भी लिखी थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 225।

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