"आश्रम (जीवन अवस्थाएँ)": अवतरणों में अंतर

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#REDIRECT [[आश्रम]]
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==आश्रम (मानव जीवन अवस्थाएँ)==
'''सम्पूर्ण मानवजीवन मोटे''' तौर पर चार विकासक्रमों में बाँटा जा सकता है-
#बाल्य और किशोरावस्था
#यौवन
#प्रौढ़ावस्था और
#वृद्धावस्था
===चार आश्रम===
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'''मानव के चार विकासक्रमों के''' अनुरूप ही चार आश्रमों की कल्पना की गई थी, जो निम्न प्रकार हैं-
#ब्रह्मचर्य- इसका पालनकर्ता ब्रह्मचारी अपने गुरु, शिक्षक के प्रति समर्पित और आज्ञाकारी होता है।
#गार्हस्थ्य- इसका पालनकर्ता गृहस्थ अपने परिवार का पालन करता है और [[ईश्वर]] तथा पितरों के प्रति कर्तव्यों का पालन करते हुए [[पुरोहित|पुरोहितों]] को अवलंब प्रदान करता है।
#[[वानप्रस्थ संस्कार|वानप्रस्थ]]- इसका पालनकर्ता भौतिक वस्तुओं का मोह त्यागकर तप और योगमय वानप्रस्थ जीवन जीता है।
#संन्यास- इसका पालनकर्ता संन्यासी सभी वस्तुओं का त्याग करके देशाटन और भिक्षा ग्रहण करता है तथा केवल शाश्वत का मनन करता है।
 
'''शास्त्रीय पद्धति में मोक्ष''' (सांसारिक लगावों से स्व की मुक्ति) की गहन खोज जीवन के अन्तिम दो चरणों से गुज़र रहे व्यक्तियों के लिए सुरक्षित है। लेकिन वस्तुत: कई संन्यासी कभी विवाह नहीं करते तथा बहुत कम गृहस्थ ही अन्तिम दो आश्रमों में प्रवेश करते हैं।
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
[[Category:नया पन्ना जनवरी-2013]]
 
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13:39, 12 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

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