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एक नये आधुनिक श्रेणी सिक्‍के का निर्माण किया गया जिसे महबुबिया सिक्‍का कहा जाता था, जिस पर पहले पहल निजाम महबूब अली खान के चित्र छापे हुआ करते थे। इस टकसाल द्वारा निम्‍न संख्‍या में उत्‍पादन शुरू किया गया। 1 रुपया, आठ आना, 4 आना एवं 2 आना चाँदी में तथा 6 पाई तथा 2 पाई कांस्‍य में बनाने लगे। इसके अतिरिक्‍त सोने के असरफी, 1/2 असरफी 1/4 असरफी तथा 1/8 असरफी का भी उत्‍पादनि‍ कया गया। हाँलाकि इसका सामान्‍य परिचालन नहीं हुआ करता था। सन् 1911 में निजाम उसमान अली खान द्वारा गद्यी पर बैठने के पश्‍चात इन सिक्‍कों को ओस्‍मानिया सिक्‍का के नाम से जाना गया। यह सिक्‍के पहले आधुनिक श्रेणी के सिक्‍के थे। आकार, आलय तथा वजन के मामले में यह बहुत ही पक्‍का थे। सन् 1911 में चलार्थ अधिनियम के अधिसूचित किया गया, जो उत्‍पादन में वास्‍ताविक पक्‍का था जो कानूनी विविदा के लिए उपयोग होता था। प्रथम विश्‍व युद्ध (1914-1918) अवधि के दौरान  चाँदी का मूल्‍य आसमान को छूने पर था तथा सभी निम्‍न संज्ञा के चाँदी सिक्‍कों को निकल तथा ताम्‍बे के सिक्‍कों में बदला गया पेपर मुद्रण अधिनियम को सन् 1918 में किया गया जिससे रु. 10 रु. 100 नोटों को जारी किया गया। पहले पहल इन नोटों को आयात यू.के. लेटर स्‍थान से किया गया। बाद में इसे [[भारत सरकार]], [[चलार्थ पत्र मुद्रणालय, नासिक]] द्वारा उत्‍पादन किया गया। इस अवधि दौरान बुलियन धातुयों के मूल्‍य बढ़ जाने के कारण, टकसाल को Q.A पर स्‍थानांतरण किया गया और निकल कास्‍य को सीएन तथा ब्रॉंज आलय में बदला गया। इन परिस्थितियों का सामना करते हुए, यह निश्‍चय किया गया था कि टकसाल में नोट का मुद्रण होगा जिसे राज्‍य के सरकारी केन्‍द्रीय प्रेस द्वारा उपलब्‍द कराया जाएगा। इन नोटों की कटाई तथा सांख्‍याक के लिए 3 लाख/प्रतिदिन क्षमता पर एक नया अनुभाग बनाया गया।<br />
एक नये आधुनिक श्रेणी सिक्‍के का निर्माण किया गया जिसे महबुबिया सिक्‍का कहा जाता था, जिस पर पहले पहल निजाम महबूब अली खान के चित्र छापे हुआ करते थे। इस टकसाल द्वारा निम्‍न संख्‍या में उत्‍पादन शुरू किया गया। 1 रुपया, आठ आना, 4 आना एवं 2 आना चाँदी में तथा 6 पाई तथा 2 पाई कांस्‍य में बनाने लगे। इसके अतिरिक्‍त सोने के असरफी, 1/2 असरफी 1/4 असरफी तथा 1/8 असरफी का भी उत्‍पादनि‍ कया गया। हाँलाकि इसका सामान्‍य परिचालन नहीं हुआ करता था। सन् 1911 में निजाम उसमान अली खान द्वारा गद्यी पर बैठने के पश्‍चात इन सिक्‍कों को ओस्‍मानिया सिक्‍का के नाम से जाना गया। यह सिक्‍के पहले आधुनिक श्रेणी के सिक्‍के थे। आकार, आलय तथा वजन के मामले में यह बहुत ही पक्‍का थे। सन् 1911 में चलार्थ अधिनियम के अधिसूचित किया गया, जो उत्‍पादन में वास्‍ताविक पक्‍का था जो कानूनी विविदा के लिए उपयोग होता था। प्रथम विश्‍व युद्ध (1914-1918) अवधि के दौरान  चाँदी का मूल्‍य आसमान को छूने पर था तथा सभी निम्‍न संज्ञा के चाँदी सिक्‍कों को निकल तथा ताम्‍बे के सिक्‍कों में बदला गया पेपर मुद्रण अधिनियम को सन् 1918 में किया गया जिससे रु. 10 रु. 100 नोटों को जारी किया गया। पहले पहल इन नोटों को आयात यू.के. लेटर स्‍थान से किया गया। बाद में इसे [[भारत सरकार]], [[चलार्थ पत्र मुद्रणालय, नासिक]] द्वारा उत्‍पादन किया गया। इस अवधि दौरान बुलियन धातुयों के मूल्‍य बढ़ जाने के कारण, टकसाल को Q.A पर स्‍थानांतरण किया गया और निकल कास्‍य को सीएन तथा ब्रॉंज आलय में बदला गया। इन परिस्थितियों का सामना करते हुए, यह निश्‍चय किया गया था कि टकसाल में नोट का मुद्रण होगा जिसे राज्‍य के सरकारी केन्‍द्रीय प्रेस द्वारा उपलब्‍द कराया जाएगा। इन नोटों की कटाई तथा सांख्‍याक के लिए 3 लाख/प्रतिदिन क्षमता पर एक नया अनुभाग बनाया गया।<br />
सन् 1948 में हैदराबाद राज्‍य [[भारत सरकार]] के नियंत्रण में आ चुका था। हैदराबाद निजाम को हैदराबाद का राजा प्राईमसी बनाया गया। पचास के मध्‍य तक ओमनी सिक्‍का की ढलाई सैफाबाद टकसाल पर की जाने लगी। तत्‍पश्‍चात सन् 1957 में भारत सरकार द्वारा जल्‍दी ही 1 पैसा, 2 पैसा, 3 पैसा, 5 पैसा, 10 पैसा, 25 पैसा तथा 50 पैसा का निर्माण किया जाने लगा। प्रशासनिक तोर पर, टकसाल का नियंत्रण सन् 1948 से 1962 तक श्री बी.एस.आयर द्वारा हैदराबाद टकसाल के मास्‍टर मिंट के रूप में नियंत्रण में लाने तक बॉम्‍बें टकसाल के अधीन था। तत्‍पश्‍चात हैदराबाद टकसाल स्‍वातंत्र रूप से कार्य करने लगा तथा सीधे वित्‍त मंत्रालय, आर्थिक कार्य विभाग, भारत सरकार, नई दिल्‍ली के अधीन सीधे रिपोर्ट करने लगा। दूसरी पारी का कागज उत्‍पादन बढ़ाने हेतु किया गया। कामगार और कर्मचारियों की संख्‍या लगभग 1200 तक पहुँच गई। उत्‍पादन 200 मिलियन पिसेस् तक होने लगा। पहले पहल निम्‍न संज्ञा के 50 पैसे तक हैदराबाद टकसाल में बनाने लगे। धीरे धीरे उच्‍च संज्ञा की मॉग बढ़ाने लगी और हैदराबाद टकसाल ने रु.5, रु.2, रु.1 आदि का निर्माण अन्‍य टकसालों की तरह करने लगा तथा इसके परिणाम स्‍वारूप हैदराबाद टकसाल को अधिक मात्रा में धातुओं का उपयोग करने लगा। वर्तमान स्‍थान अधिक धातुओं तथा कामगारों के लिए कम पड़ने लगा। पूरानी मशीनरी को नई मशीनरी में तबदील करना था तथा तकनीकी को भी विश्‍व के स्थिर पर लाना और उच्‍च कोटी के सिक्‍का का उत्‍पादन करना था। सन् 1991 में भारत सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया था कि तीनों टकसालों, [[मुम्बई]], [[कोलकाता]] तथा <ref>हैदराबाद </ref>को उच्‍च स्‍तर पर आधुनिकिकरण किया जाए। वर्तमान जगह टकसाल के लिए काफी नहीं थी तब यह निश्‍चय किया गया कि नये टकसाल का निर्माण हो और सैफाबाद टकसाल के सभी गतिविधियों का नये टकसाल पर स्‍थानांतरण हो तदानुसार एक नये टकसाल का निर्माण विकासित मशीनरी द्वारा किया गया और उसका उद्घाटन दिनांक: 20 अगस्‍त, 1997 को चेरलापल्‍ली में किया गया। इसका परिणाम स्‍वारूप सभी तरह का संचालन को चेरलापल्‍ली पर स्‍थानांतरित किया गया। वर्तमान में सैफाबाद एवं चेरलापल्‍ली दोनों टकसालों पर उत्‍पादन किया जा रहा है।<ref name="IGMH"/>
सन् 1948 में हैदराबाद राज्‍य [[भारत सरकार]] के नियंत्रण में आ चुका था। हैदराबाद निजाम को हैदराबाद का राजा प्राईमसी बनाया गया। पचास के मध्‍य तक ओमनी सिक्‍का की ढलाई सैफाबाद टकसाल पर की जाने लगी। तत्‍पश्‍चात सन् 1957 में भारत सरकार द्वारा जल्‍दी ही 1 पैसा, 2 पैसा, 3 पैसा, 5 पैसा, 10 पैसा, 25 पैसा तथा 50 पैसा का निर्माण किया जाने लगा। प्रशासनिक तोर पर, टकसाल का नियंत्रण सन् 1948 से 1962 तक श्री बी.एस.आयर द्वारा हैदराबाद टकसाल के मास्‍टर मिंट के रूप में नियंत्रण में लाने तक बॉम्‍बें टकसाल के अधीन था। तत्‍पश्‍चात हैदराबाद टकसाल स्‍वातंत्र रूप से कार्य करने लगा तथा सीधे वित्‍त मंत्रालय, आर्थिक कार्य विभाग, भारत सरकार, नई दिल्‍ली के अधीन सीधे रिपोर्ट करने लगा। दूसरी पारी का कागज उत्‍पादन बढ़ाने हेतु किया गया। कामगार और कर्मचारियों की संख्‍या लगभग 1200 तक पहुँच गई। उत्‍पादन 200 मिलियन पिसेस् तक होने लगा। पहले पहल निम्‍न संज्ञा के 50 पैसे तक हैदराबाद टकसाल में बनाने लगे। धीरे धीरे उच्‍च संज्ञा की मॉग बढ़ाने लगी और हैदराबाद टकसाल ने रु.5, रु.2, रु.1 आदि का निर्माण अन्‍य टकसालों की तरह करने लगा तथा इसके परिणाम स्‍वारूप हैदराबाद टकसाल को अधिक मात्रा में धातुओं का उपयोग करने लगा। वर्तमान स्‍थान अधिक धातुओं तथा कामगारों के लिए कम पड़ने लगा। पूरानी मशीनरी को नई मशीनरी में तबदील करना था तथा तकनीकी को भी विश्‍व के स्थिर पर लाना और उच्‍च कोटी के सिक्‍का का उत्‍पादन करना था। सन् 1991 में भारत सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया था कि तीनों टकसालों, [[मुम्बई]], [[कोलकाता]] तथा <ref>हैदराबाद </ref>को उच्‍च स्‍तर पर आधुनिकिकरण किया जाए। वर्तमान जगह टकसाल के लिए काफ़ी नहीं थी तब यह निश्‍चय किया गया कि नये टकसाल का निर्माण हो और सैफाबाद टकसाल के सभी गतिविधियों का नये टकसाल पर स्‍थानांतरण हो तदानुसार एक नये टकसाल का निर्माण विकासित मशीनरी द्वारा किया गया और उसका उद्घाटन दिनांक: 20 अगस्‍त, 1997 को चेरलापल्‍ली में किया गया। इसका परिणाम स्‍वारूप सभी तरह का संचालन को चेरलापल्‍ली पर स्‍थानांतरित किया गया। वर्तमान में सैफाबाद एवं चेरलापल्‍ली दोनों टकसालों पर उत्‍पादन किया जा रहा है।<ref name="IGMH"/>


==सिक्‍कों का निर्माण==
==सिक्‍कों का निर्माण==

14:11, 1 नवम्बर 2014 का अवतरण

भारत सरकार टकसाल, हैदराबाद
रु. 5 निकल ब्रास सिक्के, हैदराबाद टकसाल
रु. 5 निकल ब्रास सिक्के, हैदराबाद टकसाल
विवरण भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड की चारों टकसालों में से एक है, जो भारत सरकार के लिए सिक्‍कों का निर्माण तथा उनके प्रचालन हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक को आपूर्ति करने का कार्य करती है।
स्थापना 13 जुलाई, 1903
स्वामित्व भारत सरकार
मुख्यालय आई.डी. फेस-II, चेरलापल्‍ली, तेलंगाना
संबंधित लेख टकसाल, कोलकाता टकसाल, मुम्बई टकसाल, नोएडा टकसाल
अन्य जानकारी टकसाल परिसर 80 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। उच्‍च प्रतिभूति मुद्रण परिसर के अलावा, महत्‍वपूर्ण कर्मचारियों के लिए सभी सुविधाओं से युक्‍त इसका आवासीय परिसर है (लगभग100 मकान) है।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट

भारत सरकार टकसाल, हैदराबाद (अंग्रेज़ी: India Government Mint, Hyderabad) भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड (भारत सरकार के पूर्ण स्‍वामित्‍वाधीन) की चारों टकसालों में से एक है, जो भारत सरकार के लिए सिक्‍कों का निर्माण तथा उनके प्रचालन हेतु भारतीय रिज़र्व बैंक को आपूर्ति करने का कार्य करती है। वर्तमान में यह आई.डी. फेस-II, चेरलापल्‍ली में स्थित है, जो सिकन्‍दराबाद रेलवे स्‍टेशन से 20 किलोमीटर तथा हैदराबाद हवाई अड्डे से 48 किलोमीटर की दूरी पर है।

स्थापना

सन 1950 में संघीय वित्‍तीय एककीकरण होने के परिणामस्‍वरूप हैदराबाद स्थित निजाम की पूर्ववर्ती टकसाल भारत सरकार द्वारा अधिग्रहण की गई। निजाम टकसाल का इतिहास सन 1803 से जुडा हुआ है, जब तीसरे निजाम नवाब सिकन्‍दर जाह के अधीन अधिकारिक टकसाल स्‍थापित की गई, इसके बाद 13 जुलाई, 1903 को सैफाबाद में इसका निर्माण किया गया तथा 700 मिलियन सिक्‍कों तथा 950 मिलियन कोरे सिक्‍कों की बढ़ती मांगपूर्ति के लिए उत्‍पादन की क्षमतायुक्‍त अत्‍याधुनिक मशीनों के साथ वर्तमान टकसाल को दिनांक: 20 अगस्‍त, 1997 से चेरलापल्‍ली में प्रारंभ किया गया।

इतिहास

पिछले शतकीय का आरम्‍भ होने से पूर्व सिक्‍का ढलाई की प्रक्रिया को इस देश में विभिन्‍न दारूज-जराब में किया जाता था। इस निजी टकसालों का प्रचालन ओमरास् (Wealthy Men), साहूकार (Bussinessmen) तथा जागीरदार(Counts) द्वारा किया जाता था। वे रायल इक्‍सेज्‍जर को सिक्‍का ढलाई के लाईसेन्‍स प्राप्‍त करने के लिए बहुत बढी रकम दी जाती थी। वे दिल्ली के सम्राट के नाम पर, फिदवी को जोड़ कर अपने द्वारा दिये गए खिताब देकर और साथ में एक अक्षर यारे-वाफा-दार देकर उत्‍पन्‍न करते थे। एक विचित्र उदाहरण यह है कि पेसटन, मिहेरजी बाम्‍बे के एक साहूकार जिन्‍हें दिवान चन्‍दुलाल से लाईसेन्‍स प्राप्‍त था, वे औरंगाबाद में इन सिक्‍कों का उत्‍पन्‍न करते थे। इसें पेसटन साही सिक्‍के से इन सिक्‍कों को जाना जाता था।

सिक्‍का ढ़लाई का इतिहास

सन 1803 (1212 फास्‍ली, 1218 हिजरी) में आसिफ जाही सलतनत के तीसरे निजाम, नवाब सिकन्‍दर जहां के अधीन हैदराबाद में चारमीनार, मोगलपूरा के समीप सुलतान साही संस्‍थान पर पहली रॉंयल टकसाल की स्‍थानना की गई। पहले बताए गए अनुसार रॉयल टकसाल के परिचालन के साथ साथ दूसरे अन्‍य निजी टकसालें भी उसी तरह के सिक्‍कें का उप्‍पादन करते थे। सन् 1839 में इसे एम अन्‍य जगह पूराने शहर में दारूश शफिया के संस्‍थान पर बदला गया। आज भी वहीं भवन उपलब्‍ध है जिसे कुली कुतुब शाही शहरी विकास प्रतिष्ठान द्वारा उपयोग किया जा रहा है। उन दिनों निर्माण की प्रक्रिया बहुत ही पुरातन थी। अधिकतर सोना, चाँदी तथा कांस्य का उपयोग किया जाता था। यह सिक्‍के गोल आकार में होते थे जो सिक्‍के के आकार के लगभग होते थे।
यदि वे बहुत ही भारी होते थे, उसे छेनी से ठीक-ठाक किया जाता था, यदि वे हल्‍के होते थे, उसे अतिरिक्‍त धातु के टुकड़े से मारा जाता था। इन ब्‍लैंक्‍स को इमली से धोकर तथा एक बढ़े पत्‍थर पर मारा जाता था। एक डाई को पत्‍थर पर रखा जाता था तथा दूसरे को ब्‍लैंक के निकट रखा जाता था। प्रत्‍येक डाई स्‍टील द्वारा शक्‍त एंग्रेवर होती थी। न तो मास्‍टर डाई होती थी न तो दूसरे का इसमें प्रावधान था। अत: डाई का विभिन्‍न आकारों में होने से उसका परिणाम में अजीब होता था, केवल थोडा सा ही वास्‍ताविकता सिक्‍कें पर पाया जाता था। वास्‍ताविक सिक्‍के का मुद्रण आपकों नीचे बताए जाता है। विभिन्‍न निजी टकसालों की विभिन्‍न विस्‍तारण धिक्‍कतें पैदा कर रही थी, सिक्‍कें में अलय का मिश्रण जिसे व्‍यापार के लिए बहुत ही अड़चन पैदा कर रहा थी। अलय में मिश्रण के बदलाव को देखते हुए सन् 1857 में नेपा नायार डबल के शासन काल में उच्‍चस्‍तर बदलाव अलय के मिश्रण में हुआ था। तब सभी निजी टकसालों को समाप्‍त कर दिया गया तथा केवल रॉयल मिंट ही राज्‍य में प्राधिकृत संस्‍थान बन गई ततपश्‍चात लोगों को अपने ही बुलियन टकसाल में सिक्‍के में तबदीली हेतु सीजीनोरज के भुगतान पर लाने की अनुमति दी गई। सीजीनोरज की दर रु.2 प्रति सोने के सिक्‍के पर तथा 100 चाँदी के सिक्‍कों पर थी। यह प्रणाली को 1907 में बर्खास्‍त किया गया क्‍योकि परख करने में अधिक दिक्‍कते आ रही थी तथा सरकार को सिक्‍का ढ़लाई लाभ बताने में असमर्थ थी।

हाली सिक्‍का मुद्रा

सन 1858 में मुटीनी के पश्‍चात तथा मुगल साम्राज्‍य को अंग्रेजों द्वारा खत्‍म करने पर भारत में स्थ्ति सभी टकसालों को बर्खास्‍त किया गया केवल प्रिविलेज राज्‍य जैसे निजाम तथा भारत सरकार के दो टकसालों तथा कोलकाता को छोड़ कर दिल्‍ली में सुलतान के नाम पर बनाये जाने वाले सिक्‍कों को रोक दिया गया। हैदराबाद रॉयल मिंट द्वारा निजाम के नाम और साथ साथ सलतनत का नाम तथा संख्‍या विषयक 92 जारी किये जाने लगे। यह संख्‍या में जातिवाद का महत्‍व था तथा इसे जोड़े गए संज्ञा को प्रोफेट का नाम दिया गया। इन सिक्‍कों को हाली सिक्‍का कहा जाता था जिसका तात्‍पर्य है चालू सिक्‍का इस सिक्‍कों का निर्माण दारूल-उल-सफा पर बना होता था तथा इसकी गुणवत्‍ता पिछले सिक्‍कों के आसपास की ही रहती थी।

चरखी सिक्‍का

चरखी सिक्‍का मतलब यंत्र द्वारा बनाया गया सिक्‍का। सन 1895 में, यंत्रों का उपयोग पहली बार किया गया तथा इस श्रेणी में एक नये सिक्‍का का वर्ग उत्‍पन्‍न हुए जिसे चरखी के नाम से प्रसिद्व हुआ। चरखी द्वारा बनाया गया रुपया को नीचे बताया जाता है जिससे पता चलता है कि हस्‍त द्वारा बनाया गया सिक्‍कों से आधुनिक तकनीकी का विकास हुआ हैं।

सैफाबाद टकसाल

सन् 1903 में, संपूर्ण सिक्‍का ढलाई को पुन: कल पतन किया गया और यूरोपियन टकसालों की तरह किया गया तथा टकसाल को राज्‍य सचिवालय के समीप स्‍थानांतरण किया जिसका मूल्‍य था रु. 2,67,424/- तथा आधुनिक मशीनीरी तथा उपकारणों का स्‍थापित किया गया जिसका मूल्‍य रु. 4,89,906/- इसका पूर्ण खर्चा हुआ था रु. 7,57,330/- बाद में समय समय पर और भी जोड़ा गया था।

आधुनिक श्रेणी

रु. 10 का सिक्का, हैदराबाद टकसाल

एक नये आधुनिक श्रेणी सिक्‍के का निर्माण किया गया जिसे महबुबिया सिक्‍का कहा जाता था, जिस पर पहले पहल निजाम महबूब अली खान के चित्र छापे हुआ करते थे। इस टकसाल द्वारा निम्‍न संख्‍या में उत्‍पादन शुरू किया गया। 1 रुपया, आठ आना, 4 आना एवं 2 आना चाँदी में तथा 6 पाई तथा 2 पाई कांस्‍य में बनाने लगे। इसके अतिरिक्‍त सोने के असरफी, 1/2 असरफी 1/4 असरफी तथा 1/8 असरफी का भी उत्‍पादनि‍ कया गया। हाँलाकि इसका सामान्‍य परिचालन नहीं हुआ करता था। सन् 1911 में निजाम उसमान अली खान द्वारा गद्यी पर बैठने के पश्‍चात इन सिक्‍कों को ओस्‍मानिया सिक्‍का के नाम से जाना गया। यह सिक्‍के पहले आधुनिक श्रेणी के सिक्‍के थे। आकार, आलय तथा वजन के मामले में यह बहुत ही पक्‍का थे। सन् 1911 में चलार्थ अधिनियम के अधिसूचित किया गया, जो उत्‍पादन में वास्‍ताविक पक्‍का था जो कानूनी विविदा के लिए उपयोग होता था। प्रथम विश्‍व युद्ध (1914-1918) अवधि के दौरान चाँदी का मूल्‍य आसमान को छूने पर था तथा सभी निम्‍न संज्ञा के चाँदी सिक्‍कों को निकल तथा ताम्‍बे के सिक्‍कों में बदला गया पेपर मुद्रण अधिनियम को सन् 1918 में किया गया जिससे रु. 10 रु. 100 नोटों को जारी किया गया। पहले पहल इन नोटों को आयात यू.के. लेटर स्‍थान से किया गया। बाद में इसे भारत सरकार, चलार्थ पत्र मुद्रणालय, नासिक द्वारा उत्‍पादन किया गया। इस अवधि दौरान बुलियन धातुयों के मूल्‍य बढ़ जाने के कारण, टकसाल को Q.A पर स्‍थानांतरण किया गया और निकल कास्‍य को सीएन तथा ब्रॉंज आलय में बदला गया। इन परिस्थितियों का सामना करते हुए, यह निश्‍चय किया गया था कि टकसाल में नोट का मुद्रण होगा जिसे राज्‍य के सरकारी केन्‍द्रीय प्रेस द्वारा उपलब्‍द कराया जाएगा। इन नोटों की कटाई तथा सांख्‍याक के लिए 3 लाख/प्रतिदिन क्षमता पर एक नया अनुभाग बनाया गया।
सन् 1948 में हैदराबाद राज्‍य भारत सरकार के नियंत्रण में आ चुका था। हैदराबाद निजाम को हैदराबाद का राजा प्राईमसी बनाया गया। पचास के मध्‍य तक ओमनी सिक्‍का की ढलाई सैफाबाद टकसाल पर की जाने लगी। तत्‍पश्‍चात सन् 1957 में भारत सरकार द्वारा जल्‍दी ही 1 पैसा, 2 पैसा, 3 पैसा, 5 पैसा, 10 पैसा, 25 पैसा तथा 50 पैसा का निर्माण किया जाने लगा। प्रशासनिक तोर पर, टकसाल का नियंत्रण सन् 1948 से 1962 तक श्री बी.एस.आयर द्वारा हैदराबाद टकसाल के मास्‍टर मिंट के रूप में नियंत्रण में लाने तक बॉम्‍बें टकसाल के अधीन था। तत्‍पश्‍चात हैदराबाद टकसाल स्‍वातंत्र रूप से कार्य करने लगा तथा सीधे वित्‍त मंत्रालय, आर्थिक कार्य विभाग, भारत सरकार, नई दिल्‍ली के अधीन सीधे रिपोर्ट करने लगा। दूसरी पारी का कागज उत्‍पादन बढ़ाने हेतु किया गया। कामगार और कर्मचारियों की संख्‍या लगभग 1200 तक पहुँच गई। उत्‍पादन 200 मिलियन पिसेस् तक होने लगा। पहले पहल निम्‍न संज्ञा के 50 पैसे तक हैदराबाद टकसाल में बनाने लगे। धीरे धीरे उच्‍च संज्ञा की मॉग बढ़ाने लगी और हैदराबाद टकसाल ने रु.5, रु.2, रु.1 आदि का निर्माण अन्‍य टकसालों की तरह करने लगा तथा इसके परिणाम स्‍वारूप हैदराबाद टकसाल को अधिक मात्रा में धातुओं का उपयोग करने लगा। वर्तमान स्‍थान अधिक धातुओं तथा कामगारों के लिए कम पड़ने लगा। पूरानी मशीनरी को नई मशीनरी में तबदील करना था तथा तकनीकी को भी विश्‍व के स्थिर पर लाना और उच्‍च कोटी के सिक्‍का का उत्‍पादन करना था। सन् 1991 में भारत सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया था कि तीनों टकसालों, मुम्बई, कोलकाता तथा [1]को उच्‍च स्‍तर पर आधुनिकिकरण किया जाए। वर्तमान जगह टकसाल के लिए काफ़ी नहीं थी तब यह निश्‍चय किया गया कि नये टकसाल का निर्माण हो और सैफाबाद टकसाल के सभी गतिविधियों का नये टकसाल पर स्‍थानांतरण हो तदानुसार एक नये टकसाल का निर्माण विकासित मशीनरी द्वारा किया गया और उसका उद्घाटन दिनांक: 20 अगस्‍त, 1997 को चेरलापल्‍ली में किया गया। इसका परिणाम स्‍वारूप सभी तरह का संचालन को चेरलापल्‍ली पर स्‍थानांतरित किया गया। वर्तमान में सैफाबाद एवं चेरलापल्‍ली दोनों टकसालों पर उत्‍पादन किया जा रहा है।[2]

सिक्‍कों का निर्माण

यह इकाई तभी से विभिन्‍न मूल्‍य वर्ग के सिक्‍कों के निर्माण में लगी हुई है, जिसमें विभिन्‍न प्रक्रिया जैसे गलन, रोलिंग, ब्‍लैंकिग एनांलिग, पिकलिंग एवं पॉलिशंग तथा स्‍टॅम्पिग आदि शामिल हैं। अपने संप्रभु कार्यों के सफलता निर्वहन करते हुए, यह टकसाल वर्तमान में रु. 10/- रु. 2/- रु. 1/- तथा 50 पैसे का निर्माण कर रही है तथा भारत में प्रचालित हाने वाले बायो मेंटालिक सिक्‍के के रु. 10/- मूल्‍यवर्ग के उत्‍पादन का प्रयास कर रही है। इसके लिए परीक्षण की प्रक्रिया जारी है। इसकी मशीनरी तथा प्रतिभूति प्रसंस्‍करण विश्‍व में अग्रणी मैसर्स एम.एस. सल्‍चन, जर्मनी (एनांलिंग भट्टीयाँ) मेसर्स मेंकान, भारत(रोलिंग मिल), मेसर्स माईनों, इटली (स्‍ट्रीप मिल्लिंग एम/सी), मेसर्स वरटली, स्‍वीट्जरलैंड (कंटीनियुस कास्‍टींग फरनैंस) द्वारा आपूर्ति की जाती है।

परिसर

टकसाल परिसर 80 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है। उच्‍च प्रतिभूति मुद्रण परिसर के अलावा, महत्‍वपूर्ण कर्मचारियों के लिए सभी सुविधाओं से युक्‍त इसका आवासीय परिसर है (लगभग100 मकान) है। कारखाना तथा इसकी कॉलोनी सभी तरह की मूलभूत सुविधाओं से परिपूर्ण है। यह टकसाल हैदराबाद एवं सिकन्‍दराबाद दोनों शहरों के प्रतिष्ठित संगठनों में से एक है। यह विशाल कार्य केन्‍द्रीय लोक निर्माण विभाग के पर्यवेक्षण तथा मैकॉन की परामर्श की द्वारा सफलतापूर्वक संपन्‍न किया गया। केन्‍द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल इस प्‍लांट को सुरक्षा प्रदान कर रहा है।

अनुभवी एवं प्रशिक्षित कर्मचारी

सरकार द्वारा उत्‍पादन, नियंत्रण तथा रखरखाव क्षेत्रों में प्रभावी एवं निपुणता से कार्य करने के उत्‍तरदायित्‍व को निभाने के लिए टकसाल में लगभग 800 अनुभवी, प्रवीण तथा प्रशिक्षित कर्मचारी हैं। टकसाल के आरंभ होने के समय अधिकतर कार्मिकों को अपेक्षित प्रशिक्षण दिया गया तथा इकाई में स्‍थापित नई मशीनों के लिए निरंतर उपयुक्‍त प्रशिक्षण प्रदान कर उन्‍हें अद्यतन किया जाता है। इस इकाई में अधिकारियों, कर्मचारियों तथा कामगारों का एक समर्पित दल है जो सभी इकाईयों में निर्धारित लक्ष्‍यों की पूर्ति में अग्रणीय रहते हुए टकसाल के लिए सम्‍मान प्राप्‍त किया है। अपने विगत 100 विख्‍यात वर्षों के दौरान ने कई कीर्तिमान से बढकर कार्य किया है और हर समय भारतीय रिजर्व बैंक की टकसाल संबंधी आवश्‍यकताओं तथा मांग की पूर्ति में विश्‍वसनीयता कायम की है।[2]

चेरलापल्‍ली टकसाल

चेरलापल्‍ली टकसाल एशिया के सबसे बड़े टकसालों में से एक है और आधुनिक तकनीकी होने से भारत में सिक्‍कों तथा मेडल बनाने के लिए पुराने टकसाल सहित एक विकसित निर्माण कारक बन गया। 100 वर्पों से, विश्‍वशता, गुणवत्‍ता तथा प्रवर्तित के लिए प्रतिष्‍ठा बनाये रखना ही इसका मुख्‍य उद्येश्‍य है। सिक्‍का उत्‍पादन के अतिरिक्‍त, हैदराबाद टकसाल को स्‍मारक तथा डेवलप्‍मेंट ओरियंटल सिक्‍के बनाने के लिए प्रस्‍ताव रखा गया है। भारत के सभी सिक्‍कों की ढ़लाई करने के अतिरिक्‍त, हैदराबाद टकसाल को कॉईन ब्‍लैंक्‍स की आपूर्ति अन्‍य टकसालों को भी करना होता है तथा विश्‍व के अन्‍य देशों को भी ब्‍लैंक्‍स तथा सिक्‍के की आपूर्ति करने के लिए हैदराबाद टकसाल समर्थ है। इसके अतिरिक्‍त यह पर सोना/चाँदी के बारस का अशुद्धि सोना/चाँदी से बदली डालरों तथा देवस्‍थानलयों के निविदा द्वारा बदली का भी केन्‍द्र है। यह टकसाल विभिन्‍न प्रकार के पुलिस बहादुरी पुरस्‍कार मेडल आदि का भी तैयार करते आ रहा है। सुरक्षा गृह मंत्रालय, शैक्षणिक संस्‍थानें, सामाजिक सेवा संस्‍थान, बैजस, टोकन आदि का मेडल बनाने राष्‍ट्रीय तथा अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म उत्‍सव पर मेडलियनस का बनाना हैदराबाद टकसाल के लिए बहुत ही गौरव की बात है।

आधुनिकीकरण

हैदराबाद टकसाल का आधुनिकीकरण में, इंडक्‍सन मेलटिंग फार्नैस, उच्‍च स्‍तरीय का कन्‍टीनियूस कास्टिंग प्‍लैंट, 4 एचआई गोल्‍ड रिफाईनिंग मिल, स्‍ट्रीप मिलिंग मशीन, एनांलिंग फरनैस, ब्‍लैकिंग प्रेस, पिकलिंग तथा पॉलिशिंग लाईन्‍स, हाई स्‍पीड कॉयनिंग प्रेस से विकसित है। इन सभी यंत्रों को नये निर्माण टकसाल में उचित योजना के साथ क्‍लोज सरकिट टीवी प्रणाली के साथ, चेरलापल्‍ली पर पूर्ण सुरक्षा का भार पैरा मिलट्री बल (केऔसुब) तथा पुराने टकसाल जो सैफाबाद हैदराबाद पर स्थित है, देते हुए इसकी स्‍थापना की गई है। पुराना टकसाल परिसर को भी दोनों ओर से सिक्‍कों का उत्‍पादन देने हेतु पूर्ण परिचालन में रखा गया है। तत्‍पश्‍चात क्राफटमैन तथा कलात्‍मक श्रेणी को सामान्‍यता संरक्षाण दिया गया है। हैदराबाद टकसाल को यह गौरव प्राप्‍त है कि कई संख्‍या में गुणत्‍माक तथा उप्‍पादित को सिक्‍के के उत्‍पादन के क्षेत्र में प्राप्‍त करने पर प्राप्‍त हुआ है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हैदराबाद
  2. 2.0 2.1 2.2 मुखपृष्ठ (हिंदी) आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 7 सितम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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