"नैना देवी मंदिर, नैनीताल": अवतरणों में अंतर

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==स्‍थापना==  
==स्‍थापना==  
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मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारे में माना जाता है कि जब [[शिव]] सती की मृत देह को लेकर [[कैलाश पर्वत]] जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां [[शक्तिपीठ|शक्तिपीठों]] की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसी से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्‍थापना की गई है।

09:11, 22 नवम्बर 2014 का अवतरण

नैना देवी मंदिर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- नैना देवी मंदिर
नैना देवी मंदिर, नैनीताल

नैना देवी मंदिर नैनीताल में नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर स्थित है। 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्‍ट हो गया था। बाद में इसे दुबारा बनाया गया। यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। यह मंदिर हिंदू देवी, ‘नैना देवी’ को समर्पित है। नैना देवी की प्रतिमा के साथ भगवान श्री गणेश और काली माता की मूर्तियाँ भी इस मंदिर में प्रतिष्ठापित हैं। पीपल का एक विशाल वृक्ष मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित है। इन्हें भी देखें: नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश

स्‍थापना

मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारे में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसी से प्रेरित होकर इस मंदिर की स्‍थापना की गई है।

धार्मिक मान्यता

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु यह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपनी निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरूप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्यवं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र-रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु, सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरू कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ-जहाँ पर शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्तिपीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे; वहीं पर नैनादेवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अप्पुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिव पत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है। नैनीताल के ताल की बनावट भी देखें तो वह आँख की आकृति का 'ताल' है। इसके पौराणिक महत्व के कारण ही इस ताल की श्रेष्ठता बहुत आँकी जाती है। नैनी (नंदा) देवी की पूजा यहाँ पर पुराण युग से होती रही है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नैनीताल (हिन्दी) www.ignca.nic.in। अभिगमन तिथि: 22 नवम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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