"विपात्र -गजानन माधव मुक्तिबोध": अवतरणों में अंतर
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08:56, 22 दिसम्बर 2014 का अवतरण
विपात्र -गजानन माधव मुक्तिबोध
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लेखक | गजानन माधव 'मुक्तिबोध' |
मूल शीर्षक | 'विपात्र' |
प्रकाशक | भारतीय ज्ञानपीठ |
प्रकाशन तिथि | 25 जून, सन 2000 |
ISBN | 81-263-0644-0 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
विधा | कहानी |
मुखपृष्ठ रचना | अजिल्द |
पुस्तक क्रमांक | 1265 |
विपात्र भारत के प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि और हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व गजानन माधव 'मुक्तिबोध' द्वारा लिखी गई पुस्तक है। यह पुस्तक 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा 1 जनवरी, सन 2001 में प्रकाशित की गई थी। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे। यह पुस्तक ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘एक साहित्यिक की डायरी’ तथा ‘काठ का सपना’ के बाद गजानन माधव मुक्तिबोध की एक समर्थ कृति है। इन्हें भी देखें: विपात्र (कहानी) -गजानन माधव मुक्तिबोध
सारांश
एक लघु उपन्यास या एक लम्बी कहानी, या डायरी का एक अंश, या लम्बा रम्य गद्य, या चौंकाने वाला एक विशेष प्रयोग-कुछ भी संज्ञा इस पुस्तक को दी जा सकती है। इन सबसे विशेष है यह कथा-कृति, जिसका प्रत्येक अंश अपने आपमें परिपूर्ण और इतना जीवन्त है कि पढ़ना आरम्भ करे तो पूरी पढ़ने का मन हो, और कहीं भी छोड़े तो लगे कि एक पूर्ण रचना पढ़ने का सुख मिला।
जैसे मुक्तिबोध की लम्बी कविता अपने आपमें विशिष्ट, एक नया प्रयोग; जैसे मुक्तिबोध की डायरी साहित्य को एक अनुपमेय देन; जैसे मुक्तिबोध की शीर्षकरहित कहानियाँ की कहीं भी पूर्ण हो जाएँ या जिनका ओर-छोर भी न मिले, वैसे ही है यह ‘विपात्र’-मुक्तिबोध की एक अद्भुत सृष्टि।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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