"कवि प्रदीप": अवतरणों में अंतर
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कवि प्रदीप
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पूरा नाम | रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी |
प्रसिद्ध नाम | कवि प्रदीप |
जन्म | 6 फ़रवरी 1915 |
जन्म भूमि | उज्जैन, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 11 दिसंबर 1998 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
संतान | भद्रा बेन |
कर्म भूमि | मुम्बई (भारत) |
कर्म-क्षेत्र | कवि, गीतकार, गायक |
मुख्य रचनाएँ | ऐ मेरे वतन के लोगो, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ, दे दी हमें आज़ादी, हम लाये हैं तूफ़ान से आदि |
विषय | देशप्रेम, भक्ति |
शिक्षा | स्नातक |
विद्यालय | 'शिवाजी राव हाईस्कूल', इंदौर; 'दारागंज हाईस्कूल', इलाहाबाद; लखनऊ विश्वविद्यालय' |
पुरस्कार-उपाधि | दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1998), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1961) |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | कवि प्रदीप गाँधी विचारधारा के कवि थे। उन्होंने जीवन मूल्यों की कीमत पर धन-दौलत को कभी महत्त्व नहीं दिया। उनका मानना था कि 'यदि आपस में हम लोगों में ईर्ष्या-द्वेष न होता तो हम गुलाम न होते'। |
प्रदीप (अंग्रेज़ी:Pradeep, जन्म: 6 फ़रवरी, 1915, उज्जैन, मध्य प्रदेश; मृत्यु: 11 दिसंबर, 1998, मुम्बई, महाराष्ट्र) का मूल नाम रामचंद्र नारायण द्विवेदी था। प्रदीप हिंदी साहित्य जगत और हिंदी फ़िल्म जगत के एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे। कवि प्रदीप 'ऐ मेरे वतन के लोगों' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के 'भारत-चीन युद्ध' के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। 'भारत रत्न' से सम्मानित स्वर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारण किया गया था।
जन्म
देश प्रेम और देश-भक्ति से ओत-प्रोत भावनाओं को सुन्दर शब्दों में पिरोकर जन-जन तक पहुँचाने वाले कवि प्रदीप का जन्म 6 फ़रवरी, 1915 में मध्य प्रदेश में उज्जैन के बड़नगर नामक क़स्बे में हुआ था। प्रदीप जी का असल नाम 'रामचंद्र नारायण द्विवेदी' था। इनके पिता का नाम नारायण भट्ट था। प्रदीप जी उदीच्य ब्राह्मण थे।
शिक्षा
कवि प्रदीप की शुरुआती शिक्षा इंदौर के 'शिवाजी राव हाईस्कूल' में हुई, जहाँ वे सातवीं कक्षा तक पढ़े। इसके बाद की शिक्षा इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल में संपन्न हुई। इसके बाद इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। दारागंज उन दिनों साहित्य का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 1933 से 1935 तक का इलाहाबाद का काल प्रदीप जी के लिए साहित्यिक दृष्टीकोंण से बहुत अच्छा रहा। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की एवं अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही हिन्दी काव्य लेखन एवं हिन्दी काव्य वाचन में उनकी गहरी रुचि थी। कवि प्रदीप का विवाह भद्रा बेन के साथ हुआ था।
कविता का शौक़
किशोरावस्था में ही कवि प्रदीप को लेखन और कविता का शौक़ लगा। कवि सम्मेलनों में वे ख़ूब दाद बटोरा करते थे। कविता तो आमतौर पर हर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी करता ही है, परंतु रामचंद्र द्विवेदी की कविता केवल कुछ क्षणों का शौक़ या समय बिताने का साधन नहीं थी, वह उनकी सांस-सांस में बसी थी, उनका जीवन थी। इसीलिए अध्यापन छोड़कर वे कविता की सरंचना में व्यस्त हो गए।
फ़िल्मी पदार्पण
सन 1939 में 'बाम्बे टॉकीज' के मालिक हिमांशु राय ने कवि प्रदीप की उत्कृष्ट काव्य शैली से प्रभावित होकर उनको ‘कंगन’ फ़िल्म के लिए अनुबंधित किया। इस फ़िल्म में अशोक कुमार एवं देविका रानी ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थीं। कवि प्रदीप ने 1939 में ‘कंगन’ फ़िल्म के लिए चार गाने लिखे, उनमें से तीन उन्होंने स्वयं गाये और सभी गाने अत्यंत लोकप्रिय हुए। इस प्रकार ‘कंगन’ फ़िल्म के द्वारा भारतीय हिंदी फ़िल्म उद्योग को गीतकार, संगीतकार एवं गायक के रूप में एक नयी प्रतिभा मिली। सन 1943 में मुंबई की 'बॉम्बे टॉकीज' की पांच फ़िल्मों- ‘अंजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिये भी कवि प्रदीप ने गीत लिखे।
प्रदीप से 'कवि प्रदीप'
कवि सम्मेलनों में सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजी जैसे महान साहित्यिक को प्रभावित कर सकने की क्षमता रामचंद्र द्विवेदी में थी।
उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र 'प्रदीप' कहलाने लगे। प्रदीप का वास्तविक नाम रामचन्द्र नारायण दिवेदी था, किन्तु एक बार हिमांशु राय ने कहा कि ये रेलगाड़ी जैसा लम्बा नाम ठीक नही है, तभी से उन्होंने अपना नाम प्रदीप रख लिया।
प्रदीप नाम के पीछे उनके जीवन का एक रोचक प्रसंग भी है। उन दिनों मुम्बई में अभिनेता और कलाकार प्रदीप कुमार भी प्रसिद्ध हो रहे थे, जिस कारण अक्सर गलती से डाकिया कवि प्रदीप की चिठ्ठी अभिनेता प्रदीप के पते पर डाल देता था। डाकिया सही पते पर पत्र दे, इस वजह से उन्होंने प्रदीप के पहले 'कवि' शब्द जोड़ दिया और यहीं से कवि प्रदीप के नाम से वे प्रख्यात हुए।[1] कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे और उनकी मधुर आवाज़ का सदुपयोग अनेक संगीत निर्देशकों ने अलग-अलग समय पर किया।
स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान
कवि प्रदीप गाँधी विचारधारा के कवि थे। प्रदीप जी ने जीवन मूल्यों की कीमत पर धन-दौलत को कभी महत्व नहीं दिया। कठोर संघर्षों के बावजूद उनके निवास स्थान ‘पंचामृत’ पर स्वर्ण के कंगुरे भले ही न मिलें, परन्तु वैश्विक ख्याति का कलश जरूर दिखेगा। प्रदीप जी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। एक बार स्वतंत्रता के आन्दोलन में उनका पैर फ्रैक्चर हो गया था और कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। वे अंग्रेज़ों के अनाचार-अत्याचार आदि से बहुत दु:खी होते थे। उनका मानना था कि यदि आपस में हम लोगों में ईर्ष्या-द्वेष न होता तो हम गुलाम न होते। परम देशभक्त चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत पर कवि प्रदीप का मन करुणा से भर गया था और उन्होंने अपने अंर्तमन से एक गीत रच डाला था, जिसके बोल निम्न प्रकार थे[1]-
वह इस घर का एक दिया था,
विधी ने अनल स्फुलिंगों से उसके जीवन का वसन सिया था
जिसने अनल लेखनी से अपनी गीता का लिखा प्रक्कथन
जिसने जीवन भर ज्वालाओं के पथ पर ही किया पर्यटन
जिसे साध थी दलितों की झोपड़ियों को आबाद करुं मैं
आज वही परिचय-विहीन सा पूर्ण कर गया अन्नत के शरण।
देशभक्ति के गीत
इसके बाद 1940 में निर्माता एस. मुखर्जी एवं दिग्दर्शक ज्ञान मुखर्जी की फ़िल्म ‘बंधन’ आयी। ‘चल चल रे नौजवान’ जैसे गाने के साथ आपके इस गाने को काफ़ी लोकप्रियता मिली। उस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था और हर प्रभात फेरी में इस देश भक्ति के गीत को गाया जाता था। इस गीत ने भारतीय जनमानस पर जादू-सा प्रभाव डाला था। यह राष्ट्रीय गीत बन गया था। सिंध और पंजाब की विधान सभा ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता दी और ये गीत विधान सभा में गाया जाने लगा। बलराज साहनी उस समय लंदन में थे। उन्होने इस गीत को लंदन बी.बी.सी. से प्रसारित कर दिया। अहमदाबाद में महादेव भाई ने इसकी तुलना उपनिषद के मंत्र ‘चरैवेति-चरैवेति’ से की। जब भी ये गीत सिनेमा घर में बजता, लोग 'वन्स मोर-वन्स मोर' कहते थे और ये गीत फिर से दिखाना पड़ता था।
देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में शिथिलता आ गई थी। देश के सब बड़े-बड़े नेता जेल में बन्द थे। उस समय कवि प्रदीप की कलम से एक हुंकार जगा "आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है" कवि प्रदीप का लिखा यह गीत अंग्रेज़ सत्ता पर सीधा प्रहार था, जिसकी वजह से कवि प्रदीप गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हो गये थे। प्रदीप ने स्वतंत्रता से पूर्व एवं स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में जो योगदान दिया, वह उनकी देशभक्ति का प्रमाण है।[2]
फ़िल्म 'जागृति'
सन 1954 में बनी ‘जागृति’ फ़िल्म कवि प्रदीप के गानों के लिए आज भी स्मरणीय है। इस फ़िल्म के निम्न गीत आज भी गुनगुनाये जाते हैं-
- आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की।
- हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्हाल के।
- दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।
'ऐ मेरे वतन के लोगों' की रचना
'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी' साठ के दशक में चीनी आक्रमण के समय लता मंगेशकर द्वारा गाया गया था। यह गीत कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया था। कौन-सा सच्चा हिन्दुस्तानी इसे भूल सकता है? यह गीत आज इतने वर्षों के बाद भी उतना ही लोकप्रिय है। इस गीत के कारण 'भारत सरकार' ने कवि प्रदीप को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया था। दाल, चावल और सादा जीवन व्यतीत करने वाले कवि प्रदीप ने यह लिखकर दिया कि- "ऐ मेरे वतन के लोगों" गीत से मिलने वाली रॉयल्टी की राशि शहीद सैनिकों की विधवा पत्नियों को दी जाए।" इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रदीप कवि के साथ-साथ एक उदार और सच्चे देशभक्त लेखक भी थे।
प्रदीप ने ‘नास्तिक’ एवं ‘जागृति’ फ़िल्मों के लिए जो गीत लिखे, स्वयं उन्होंने ही उन्हें गाया भी था। उससे सामाजिक विघटन की एक झलक मिलती है- ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान। चांद न बदला सूरज न बदला, कितना बदल गया इंसान।।’ 'पैगाम' फ़िल्म के लिए कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा’ यह गाना भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ था। अपने गीतों के बलबूते पर बॉक्स ऑफिस पर रिकार्ड तोड़ व्यवसाय करने वाली फ़िल्म थी ‘जय संतोषी मां’ जो कवि प्रदीप के जीवन में एक अविस्मरणीय यशस्वी फ़िल्म का उदाहरण बनी थी।[2]
स्वतंत्रता प्राप्ति का आह्वान
कवि प्रदीप ने देशवासियों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए आह्वान किया। उन्होंने फ़िल्मी गीत जरूर लिखे, लेकिन उसमें देशप्रेम की धारा को प्रवाहित करने में कामयाब रहे। साहित्य समिक्षा के मान दण्डों के आधार पर कवि प्रदीप एक उच्च कोटी के साहित्यकार थे। वे राष्ट्रीय चेतना के प्रतिनिधी कवियों की अग्रिम पंक्ति में अपना स्थान रखते थे। भाषा की दृष्टी से कवि प्रदीप का स्थान अन्य गीतकारों से श्रेष्ठ है। समाज की बिगड़ती दशा को देखकर उनकी अंतरआत्मा ईश्वर से कहती है कि[1]-
"देख तेरे संसार की हालत क्या होगई भगवान कितना बदल गया इंसान।"
समाजिकता की भावना से ओतप्रोत होकर विश्वबंधुत्व की भावना में उन्होंने लिखा था-
इंसान से इंसान का हो भाई चारा, यही पैगाम हमारा।
संसार में गूँजे समता का इकतारा, यही पैगाम हमारा।
लोकप्रियता
पहली ही फ़िल्म में कवि प्रदीप को गीतकार के साथ-साथ गायक के रूप में भी लिया गया था, परंतु गायक के रूप में उनकी लोकप्रियता का माध्यम बना `जागृति' फ़िल्म का गीत जिसके बोल हैं - आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की संगीत निर्देशक हेमंत कुमार, सी. रामचंद्र, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल आदि ने समय-समय पर कवि प्रदीप के लिखे कुछ गीतों का उन्हीं की आवाज में रिकॉर्ड किया। `पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय', `टूट गई है माला मोती बिखर गए', कोई लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे न रे भाई', जैसा भावना प्रधान गीतों को बहुत आकर्षक अंदाज में गाकर कवि प्रदीप ने फ़िल्म जगत के गायकों में। अपना अलग ही महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया था, एक गीत यद्यपि कवि प्रदीप ने स्वयं गाया नहीं था, लेकिन उनकी लिखी इस रचना ने ब्रिटिश शासकों को हिला दिया था, जिसके बोल हैं- आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है। ब्रिटिश अधिकारी ढूंढ़ने लगे कवि प्रदीप को। जब उनके कुछ मित्रों को पता चला कि ब्रिटिश शासक कवि प्रदीप को पकड़कर कड़ी सजा देना चाहते हैं तो उन्हें कवि प्रदीप की जान खतरे में नजर आने लगी। मित्रों और शुभचिंतकों के दबाव में कवि प्रदीप को भूमिगत हो जाना पड़ा।[3]
लेखनी का कमाल
आज़ादी के बाद 1954 में उन्होंने फ़िल्म 'जागृति' में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को बख़ूबी फ़िल्म के गानों में उतारा। इसे लेखनी का ही कमाल कहेंगे कि जब पाकिस्तान में फ़िल्म 'जागृति' की रीमेक बेदारी बनाई गई तो जो बस देश की जगह मुल्क कर दिया गया और पाकिस्तानी गीत बन गया....हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस मुल्क़ को रखना मेरे बच्चों संभाल के..। कुछ इसी तरह ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ की जगह पाकिस्तानी गाना बन गया..... यूँ दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ऐ क़ायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान। ऐसे ही था बेदारी का ये पाकिस्तानी गाना....आओ बच्चे सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की, जिसकी खातिर हमने दी क़ुर्बानी लाखों जान की। ये गाना असल में था आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की...[4]
प्रमुख गीत
गीत | फ़िल्म |
---|---|
ऐ मेरे वतन के लोगों | - |
साबरमती के संत | जाग्रति |
हम लाये हैं तूफ़ान से | जाग्रति |
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ | जाग्रति |
चल अकेला चल अकेला | संबंध |
चल चल रे नौजवान | बंधन |
चने जोर गरम बाबू | बंधन |
दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है | किस्मत |
कितना बदल गया इंसान | नास्तिक |
चलो चलें माँ | जाग्रति |
तेरे द्वार खड़ा भगवान | वामन अवतार |
दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले | दशहरा |
पिंजरे के पंछी रे | नागमणि |
कोई लाख करे चतुराई | चंडी पूजा |
इंसान का इंसान से हो भाईचारा | पैग़ाम |
ओ दिलदार बोलो एक बार | स्कूल मास्टर |
हाय रे संजोग क्या घडी दिखलाई | कभी धूप कभी छाँव |
चल मुसाफिर चल | कभी धूप कभी छाँव |
मारने वाला है भगवन बचाने वाला है भगवन | हरिदर्शन |
मैं तो आरती उतारूँ | जय संतोषी माँ |
यहाँ वहां जहाँ तहां | जय संतोषी माँ |
रचनाओं का पाकिस्तान में प्रयोग
कवि प्रदीप की लेखनी में एक ख़ासियत ये थी कि उनकी रचनाएं किसी वर्ग विशेष या फिर किसी राजनीतिक विचारधारा से ओत-प्रोत नहीं थी। यही कारण था कि प्रदीप की रचनाएं छोटे-छोटे फेरबदल के साथ पाकिस्तान ने भी प्रयोग की। जैसे- फ़िल्म 'जागृति' का "दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल", ये गीत पाकिस्तान को इतना भाया कि पाकिस्तान की फ़िल्मों में ये गीत कुछ इस प्रकार आया- "यूं दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ए कायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान।" इसी प्रकार "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दोस्तान की", गीत को पाकिस्तान में कुछ ऐसे गाया गया- "आओ बच्चो सैर कराएं तुमको पाकिस्तान की।" यह प्रदीप जी की सशक्त लेखनी का ही कमाल था कि पाकिस्तान ने प्रभावित होकर हिन्दी फ़िल्म ‘जागृति’ का रीमेक ‘बेदारी’ बना डाला, जो वहां पर आज भी लोकप्रिय है।[6]
सम्मान और पुरस्कार
कवि प्रदीप को अनेक सम्मान प्राप्त हुए थे, जिनमें 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' (1961) तथा 'फ़िल्म जर्नलिस्ट अवार्ड' (1963) शामिल हैं। फ़िल्मों में प्रदीप के अमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1998 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' दिया गया था। उनका हर फ़िल्मी-ग़ैर फ़िल्मी गीत अर्थपूर्ण होता था और जीवन को कोई न कोई दर्शन समझा जाता था। खेद का विषय यह है कि ऐसे महान देश भक्त, गीतकार एवं संगीतकार को भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ से सम्मानित नहीं किया, न ही आज तक उन पर स्मारक डाक टिकट निकला।
निधन
कवि प्रदीप ने अपने जीवन में 1700 गाने लिखे। 83 वर्ष की आयु में कवि प्रदीप 11 दिसंबर, 1998 को अपने पीछे अपनी पत्नी तथा दो पुत्रियों को छ़ोडकर इस नश्वर संसार से प्रस्थान कर गये। उनकी मृत्यु कैंसर के कारण हुई। वे अपने अमर व बेहतरीन गीतों के साथ आज भी हम सबके बीच हैं और सदा रहेंगे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 कवि प्रदीप, आँखें नम कर देने वाले 10 बेहतरीन गीत (हिन्दी) सहदेव। अभिगमन तिथि: 07 फरवरी, 2015।
- ↑ 2.0 2.1 हिन्दी फ़िल्मों के निराले कवि प्रदीप (हिन्दी) हरि शर्मा.ब्लॉगस्पॉट। अभिगमन तिथि: 07 फ़रवरी, 2015।
- ↑ कई सदियों तक गूंजेंगे प्रदीप के गीत (हिन्दी) (पी.एच.पी) हिन्दी मीडिया इन। अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2012।
- ↑ कवि प्रदीप: सिनेमा से आम जन तक पहुँचे (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) बीबीसी हिन्दी। अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2012।
- ↑ Odeon (a company of the EMI group)
- ↑ आम आदमी की रगों में दौड़ता एक कवि प्रदीप (हिन्दी) आवाज। अभिगमन तिथि: 07 फरवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
- कई सदियों तक गूंजेंगे प्रदीप के गीत
- कवि प्रदीप: सिनेमा से आम जन तक पहुँचे
- Obituary: Kavi Pradeep
- Kavi Pradeep, master of the patriotic song, dies at 84
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