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'''फालेन की होली''' [[मथुरा]], [[उत्तर प्रदेश]] के एक [[ग्राम]] फालेन में मनाई जाती है। फालेन ग्राम की यह अनूठी [[होली]] विश्व प्रसिद्ध है। इसमें [[होलिका दहन]] के समय एक पुरोहित, जिसे पण्डा कहा जाता है, नंगे पाँव जलती हुई [[अग्नि]] के बीच से निकलता हुआ एक कुण्ड में कूद जाता है। आश्चर्य का विषय यह है कि उस पर जलती हुई अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह जलती हुई अग्नि से [[प्रह्लाद]] के अनाहत, अक्षत रूप से निकलने का प्रतीक है।  
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==होली महोत्सव की तैयारियाँ==
==होली महोत्सव की तैयारियाँ==
<blockquote>'''कैसा है यह देश निगोरा, सब जग होरी या ब्रज होरा'''</blockquote>
<blockquote>'''कैसा है यह देश निगोरा, सब जग होरी या ब्रज होरा'''</blockquote>
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पुरातन धार्मिक [[कथा]] के अनुसार, कहा जाता है कि [[दैत्य|दैत्यों]] का राजा [[हिरण्यकशिपु]] बहुत ही अत्याचारी और अधर्मी राजा था, परन्तु उसका पुत्र [[प्रह्लाद]] बहुत ही दयालु और धार्मिक था और [[भगवान विष्णु]] का परम [[भक्त]] था। क्योंकि हिरण्यकशिपु विष्णु विरोधी था, इसीलिए उसे यह पसन्द नहीं था। अतः राजा हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के लिये योजना बनाई और अपनी बहन [[होलिका]] को प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर [[अग्नि]] में बैठने को कहा। [[ब्रह्मा]] के वरदान के अनुसार होलिका को अग्नि जला नहीं सकती थी, अतः होलिका बालक प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर धधकती अग्नि में प्रवेश कर गयी। [[भक्ति]] की शक्ति के प्रताप के कारण प्रह्लाद तो बच गये, परन्तु होलिका रूपी पाप अग्नि की उन पवित्र लपटों में जलकर खाक हो गया। फालेन का यह होली महोत्सव इसी पुरातन कथा को चरितार्थ करता है।<ref>{{cite web |url= http://www.brajdarshan.in/%E0%A4%AB%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%85%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%96%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A5%80/|title=फालेन की अनोखी होली|accessmonthday= 05 मार्च|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= ब्रजदर्शन|language= हिन्दी}}</ref>
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==पण्डा द्वारा अग्नि में प्रवेश==
==पण्डा द्वारा अग्नि में प्रवेश==
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==धार्मिक परम्परा==
==धार्मिक परम्परा==

06:41, 5 मार्च 2015 का अवतरण

फालेन की होली
होलिका दहन, मथुरा
होलिका दहन, मथुरा
विवरण 'फालेन की होली' प्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा के एक ग्राम 'फालेन' में मनाई जाती है। यहाँ जलती हुई अग्नि के बीच से एक पण्डा गुजरता है, जिसे अग्नि से कोई हानि नहीं पहुँचती।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला मथुरा
ग्राम फालेन
धार्मिक आस्था पण्डा का अग्नि से बच निकलना, जलती हुई अग्नि से भक्त प्रह्लाद के अनाहत, अक्षत रूप से निकलने का प्रतीक है।
संबंधित लेख होली, होलिका, होलिका दहन, प्रह्लाद, हिरण्यकशिपु
अन्य जानकारी फालेन में प्रह्लाद का एक प्राचीन मन्दिर और एक कुण्ड है। ग्राम का एक पण्डा भक्त प्रह्लाद के आशीर्वाद से सज्जित माला को धारण किये हुए होली की पवित्र अग्नि में प्रवेश करता है।

फालेन की होली मथुरा, उत्तर प्रदेश के एक ग्राम फालेन में मनाई जाती है। फालेन ग्राम की यह अनूठी होली विश्व प्रसिद्ध है। इसमें होलिका दहन के समय एक पुरोहित, जिसे पण्डा कहा जाता है, नंगे पाँव जलती हुई अग्नि के बीच से निकलता हुआ एक कुण्ड में कूद जाता है। आश्चर्य का विषय यह है कि उस पर जलती हुई अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह जलती हुई अग्नि से प्रह्लाद के अनाहत, अक्षत रूप से निकलने का प्रतीक है।

होली महोत्सव की तैयारियाँ

कैसा है यह देश निगोरा, सब जग होरी या ब्रज होरा

उपरोक्त पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए ब्रजमण्डल में बड़े ही उत्साह के साथ 40 दिवसीय होली महोत्सव की तैयारियाँ शुरु हो जाती हैं। जहाँ ब्रज के मन्दिर फाग के रसियों की धुन से गुंजायमान रहते हैं, वहीं दूसरी ओर कोसी से करीब 58 किलोमिटर आगे ब्रज के फालेन नामक ग्राम में होने वाले अनूठे होली महोत्सव की तैयारियाँ भी जोरों पर रहती है। होली की पुरातन-पारंपरिक कथा से प्रभावित फालेन का यह अनूठा होली महोत्सव "बुराई पर अच्छाई की जीत" को दर्शाता है।

पुरातन कथा

पुरातन धार्मिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु बहुत ही अत्याचारी और अधर्मी राजा था, परन्तु उसका पुत्र प्रह्लाद बहुत ही दयालु और धार्मिक था और भगवान विष्णु का परम भक्त था। क्योंकि हिरण्यकशिपु विष्णु विरोधी था, इसीलिए उसे यह पसन्द नहीं था। अतः राजा हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के लिये योजना बनाई और अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठने को कहा। ब्रह्मा के वरदान के अनुसार होलिका को अग्नि जला नहीं सकती थी, अतः होलिका बालक प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर धधकती अग्नि में प्रवेश कर गयी। भक्ति की शक्ति के प्रताप के कारण प्रह्लाद तो बच गये, परन्तु होलिका रूपी पाप अग्नि की उन पवित्र लपटों में जलकर खाक हो गया। फालेन का यह होली महोत्सव इसी पुरातन कथा को चरितार्थ करता है।[1]

पण्डा द्वारा अग्नि में प्रवेश

फालेन की होली में पण्डा द्वारा अग्नि में प्रवेश

फालेन में प्रह्लाद का एक प्राचीन मन्दिर और एक कुण्ड है। हर वर्ष होलिका दहन के दिन प्रह्लाद कुण्ड में स्नान करने और वहां स्थित मन्दिर में पूजा करने के पश्चात ग्राम का एक पण्डा भक्त प्रह्लाद के आशीर्वाद से सज्जित माला को धारण किये हुए होली की पवित्र अग्नि में प्रवेश करता है और धधकते अंगारो पर चलते हुए सकुशल बाहर निकल आता है। रात्रि के जिस समय यह पण्डा होली की धधकती ज्वाला को पार करता है, तब सारा गांव ढोल-नगाड़ों और रसियों की आवाज़ से गुंजायमान हो उठता है। साहस और भक्ति का ये अनोखा कृत्य यहां मौजूद सभी दर्शकों को अचंभित कर देता है।

धार्मिक परम्परा

फालेन ग्राम में यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। फालेन महोत्सव में होने वाले इस अनूठे और साहसिक कृत्य को देखने के लिये भारी संख्या में देशी ही नहीं, अपितु विदेशी पर्यटक भी होली से पूर्व यहां जमा होने लगते हैं और होली के इस अनोखे उत्सव का आनन्द लेते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. फालेन की अनोखी होली (हिन्दी) ब्रजदर्शन। अभिगमन तिथि: 05 मार्च, 2015।

संबंधित लेख

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