"मनुष्यता -मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर
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सहानुभूति चाहिए¸ महाविभूति है वही; | सहानुभूति चाहिए¸ महाविभूति है वही; | ||
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। | वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। | ||
विरुद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा¸ | |||
विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे? | विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे? | ||
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे¸ | अहा! वही उदार है परोपकार जो करे¸ |
15:26, 17 अक्टूबर 2015 का अवतरण
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विचार लो कि मत्र्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ |
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