"सुनहु राम स्वामी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
पंक्ति 38: पंक्ति 38:
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ
;भावार्थ
(बालि ने कहा-) हे श्री रामजी! सुनिए, स्वामी (आप) से मेरी चतुराई नहीं चल सकती। हे प्रभो! अंतकाल में आपकी गति (शरण) पाकर मैं अब भी पापी ही रहा?नहीं होता॥4॥
([[बालि]] ने कहा-) हे [[राम|श्री राम जी]]! सुनिए, स्वामी (आप) से मेरी चतुराई नहीं चल सकती। हे प्रभो! अंतकाल में आपकी गति (शरण) पाकर मैं अब भी पापी ही रहा?नहीं होता॥4॥
{{लेख क्रम4| पिछला=मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सुनत राम अति कोमल बानी}}
{{लेख क्रम4| पिछला=मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सुनत राम अति कोमल बानी}}



10:14, 20 मई 2016 के समय का अवतरण

सुनहु राम स्वामी
रामचरितमानस
रामचरितमानस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड किष्किंधा काण्ड
दोहा

सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि।
प्रभु अजहूँ मैं पापी अंतकाल गति तोरि॥9॥

भावार्थ

(बालि ने कहा-) हे श्री राम जी! सुनिए, स्वामी (आप) से मेरी चतुराई नहीं चल सकती। हे प्रभो! अंतकाल में आपकी गति (शरण) पाकर मैं अब भी पापी ही रहा?नहीं होता॥4॥


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
सुनहु राम स्वामी
आगे जाएँ
आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख