"कहहिं सचिव सठ ठकुर सोहाती": अवतरणों में अंतर
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बारिधि नाघि एक कपि आवा। तासु चरित मन महुँ सबु गावा॥ | बारिधि नाघि एक कपि आवा। तासु चरित मन महुँ सबु गावा॥ | ||
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07:50, 26 मई 2016 के समय का अवतरण
कहहिं सचिव सठ ठकुर सोहाती
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | 'रामचरितमानस' |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि। |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | दोहा, चौपाई और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | लंकाकाण्ड |
कहहिं सचिव सठ ठकुर सोहाती। नाथ न पूर आव एहि भाँती॥ |
- भावार्थ
ये सभी मूर्ख (खुशामदी) ठकुरसुहाती (मुँहदेखी) कह रहे हैं। हे नाथ! इस प्रकार की बातों से पूरा नहीं पड़ेगा। एक ही बंदर समुद्र लाँघकर आया था। उसका चरित्र सब लोग अब भी मन-ही-मन गाया करते हैं (स्मरण किया करते हैं)।
कहहिं सचिव सठ ठकुर सोहाती |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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